Love towards Baba Ji is meaningful only then

बाबा जी के प्रति प्रेम तभी सार्थक है, जब हम उनकी सिखलाईयो पर चलें : सतगुरू माता सुदीक्षा जी महाराज

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Love towards Baba Ji is meaningful only then

हृदय सम्राट सतगुरू बाबा हरदेव सिंह जी महाराज को समर्पित श्रद्धालुओ के श्रद्धा सुमन
 
चंडीगढ़ / समालखा। ‘सतगुरू बाबा हरदेव सिंह जी के प्रति प्रेम तभी सार्थक है, जब हम उनकी सिखलाईयो पर चलें। हमें उनकी शिक्षाओ को केवल बोलचाल में ही नहीं अपितु उसे अपने वास्तविक जीवन में भी अपनाना है। सिखलाईयों के रूप में जो मोती हमें बाबा जी ने दिये उन्हें अपने जीवन में धारण करना है। प्रेम, समर्पण एवं गुरू के प्रति जो सत्कार है वह सच्चा हो न कि केवल दिखावा मात्र। अपना मनथन हमें स्वयं करना है। प्रत्यक्ष को प्रमाण वाली बात कि हमारे जीवन में गुरू के प्रति प्रेम समर्पण का भाव सच्चा हो। केवल एक विशेष दिन के रूप में हम उन्हें याद न करके उनके द्वारा दी गयी सिखलाईयों से नित प्रेरणा लेते हुए, अपने जीवन को सार्थक बनाये।’ यह आशीष वचन सतगुरू माता सुदीक्षा जी महाराज ने विशाल रूप में एकत्रित हुए श्रद्धालुओं को व्यक्त किये। 

यह जानकारी श्री ओ पी निरंकारी जी जोनल इंचार्ज चंडीगढ़ ज़ोन ने दी | उन्होंने आगे बताया कि “समर्पण दिवस” चंडीगढ़, मनीमाजरा, पंचकुला, मोहाली और ज़ोन कि सभी ब्रांचो में भी आयोजित किया गया| जिसमे सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी कि सिखलाईयो को याद किया गया |
 
बाबा हरदेव सिंह जी की स्मृति में ‘समर्पण दिवस’ समागम का आयोजन दिनांक 13 मई, दिन शनिवार को सतगुरू माता सुदीक्षा जी महाराज एवं निरंकारी राजपिता जी के पावन सान्निध्य में, संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल, समालखा में आयोजित हुआ जिसमें दिल्ली, एन. सी. आर. सहित सीमावर्ती राज्यों से हज़ारो की संख्या में भक्तों ने सम्मिलित होकर बाबा जी के परोपकारों को न केवल स्मरण किया अपितु हृदयपूर्वक श्रद्धा सुमन भी अर्पित किये।

सतगुरू माता जी ने उदारहण सहित समझाया कि जिस प्रकार दूध में मधाणी मारने से केवल मलाई एवं मक्खन ही निकलेगा इसके विपरीत पानी में वह अवस्था बिलकुल भी संभव नहीं। अतः सच्ची भक्ति ईश्वर से जुड़कर ही प्राप्त हो सकती है तब ही हमारा मन प्रेम, सत्कार से सराबोर होगा और फिर गुरु के प्रति सच्ची प्रेमाभक्ति ही हृदय में उत्पन्न होगी इसीलिए यह आवश्यक है कि सत्गुरू का सच्चा संदेश केवल बोलचाल में ही न रह जाये।
 
सतगुरु माता जी के प्रवचनों से पूर्व निरंकारी राजपिता जी ने अपने सम्बोधन में फरमाया कि बाबा जी का संपूर्ण जीवन ही उपकारो, वरदानों एवं मेहरबानीयों से युक्त रहा। बाबा जी ने समूचे संसार में केवल प्रेम और अमन का ही दिव्य संदेश दिया। प्रेम का वास्तविक अर्थ हमें बाबा जी की सिखलाईयों से ही प्राप्त हुआ और उन्होनें सदैव प्रेम और अपनी दिव्य मुस्कुराहट से न केवल सभी को निहाल किया अपितु समूची मानव जाति के प्रति करूणा दया का भाव रखते हुए उनके जीवन को सार्थक किया। बाबा जी का यही दृष्टिकोण था कि जीवन में यदि प्रेम का भाव होगा तो झुकना सरल हो जायेगा। उनका यह मानना था कि ऊँचाईयो को ऐसे प्राप्त किया जाये कि माया का कोई भी दुष्प्रभाव गुरसिख पर न हो। बाबा जी ने पात्रता एवं प्रयास के भाव को न देखते हुए सभी के प्रति केवल समानता और करूणा वाला भाव ही दर्शाया। अंत में निरंकारी राजपिता जी ने यही अरदास करी कि हम सभी का जीवन सतगुरू के कहे अनुसार ही निभ जाये।
 

‘समर्पण दिवस’ के अवसर पर मिशन के वक्तागणों ने व्याख्यान, गीत, भजन एवम् कवितायों के माध्यम से बाबा जी के प्रेम, करूणा, दया एवं समर्पण जैसे दिव्य गुणों को अपने शुभ भावों द्वारा व्यक्त किया। निसंदेह बाबा हरदेव सिंह जी की करूणामयी अनुपम छवि, प्रत्येक निरंकारी श्रद्धालु भक्त के हृदय में अमिट छाप के रूप में अंकित है जिससे प्रेरणा लेते हुए आज प्रत्येक भक्त अपने जीवन को धन्य बना रहा है।

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