गरीबी की दास्तां! शादी समारोह में जूठन से जुटाई रोटियां, बोझ भारी लगा तो सड़क पर बैठ किया बंटवारा

गरीबी की दास्तां! शादी समारोह में जूठन से जुटाई रोटियां, बोझ भारी लगा तो सड़क पर बैठ किया बंटवारा

Tales of Poverty

Tales of Poverty

Tales of Poverty: कहते हैं दुनिया में भूख से बढ़कर कोई दुख नहीं होता है। ऐसे ही गरीबी(poverty) अक्सर शहरों में देखी जाती है। ऐसे ही कल बानी उत्तर प्रदेश के जनपद फिरोजाबाद में देखने को मिली। जहां 1  मां  अपने बच्चे की भूख मिटाने के लिए(to satisfy hunger) जूठन से रोटियां जुटाई(collected breads from lies) और जब इन रोटियों का बहुत भारी लगा तो रोशनी देखकर सड़क पर बैठ गई बटवारा करने लगी। मां के इस वाक्य को देखकर जिसने भी देखा उसका दिल पसीज गया। वैसे तो अक्सर यह दास्तान देखने को मिलती रहती है लेकिन यह बंटवारा तंत्र के संवेदना और सरकारी दावों पर सवाल अपने आप में एक सवाल उठाता है और हम सब की इंसानियत और मानवता को झकझोर देता है। खुद से एक सवाल पूछता है कि कब खत्म होगा बुक का या दर्दनाक काल?.

यह कोई पहली बार नहीं है जब कोई मां अपने भूखे बच्चे को पेट भरने के लिए जूठन की रोटियां बनकर उसका पेट भर रही हो । अक्सर यह देखा जाता है लेकिन लोग इसको नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन इस बार की यह दास्तां हर बार की दास्तां से कुछ अलग थी। रात के करीब 11:00 बज रहे थे लेबर कॉलोनी से रेलवे फाटक की तरह बंद सुनसान सड़क पर स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठी दो महिलाएं के बंटवारे को लेकर झूठी रोटियां का बंटवारा कर रही थी, वही झूठी रोटियां जो उन्होंने शादी समारोह में प्लेंटे धोते समय इकट्ठा की थी। उन महिलाओं की इस दर्दनाक मंजर को देखकर जब एक राहगीर ने पूछा तो उसने बताया कि अकेली इन रोटियों का यह बोल उठ नहीं रहा था इसलिए अपना अपना हिस्सा बांट रही हूं और यह हिस्से में आई रोटियां घर में भूखे बच्चों को खिलाएंगी।

दरअसल, वह माल है कोई और नहीं श्रमिक बाहुल्य शहर में काम करने वाली महिलाएं थी जो लेबर कॉलोनी में रहकर अपना गुजर-बसर करती हैं। दोनों महिलाओं मैं एक की उम्र 60 वर्ष से अधिक जबकि दूसरी महिला 50 वर्ष की आयु सीमा कोलांग चुकी थी। कई दिनों से भूखी इन महिलाओं को एक महिला ठेकेदार ने शादी समारोह में प्लेट धोने के लिए भेजा था। महिलाओं ने बताया कि लेटे धोने के बदले ठेकेदारों ने कुछ रुपए और साथ में पेड़ बनने के लिए कुछ भोजन देने को कहा था और घर लाने के लिए कुछ भोजन की व्यवस्था की थी लेकिन उस भोजन से पूरे घर का पेट नहीं भर सकता था इसलिए भी झूठी प्लेटों में बची हुई रोटियों के टुकड़े एक छोटी बोरी में खट्टी करती रही। क्योंकि घर में बहुत सारे निवाली और रोटियों की आस में बैठे हुए थे।

बता दें कि आज दुनिया के दस्तूर में यह सच भी है सामना करने वाले सो रहे हैं गरीबी दुनिया की सबसे बुरी चीज होती है, और इसकी गवाही उन दोनों माताओं के चेहरे में देखी जा सकती थी। जब दोनों माताओं से गरीबी को लेकर प्रश्न किया गया तो मानो ऐसा प्रतीत हो रहा हो जैसे उन्होंने इन रोटियों के टुकड़ों को बटोर कर कोई अपराध किया। भयभीत के चलते दोनों माताओं ने कहा कोई बात हो गई क्या हम केवल रोटियां लाए हैं और कुछ नहीं इन्हें लेकर चल नहीं पा रहे

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