आर्थिक सर्वेक्षण ने बढ़ती अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य खपत पर जताई चिंता, स्वास्थ्य कर का रखा प्रस्ताव 

Economic survey expressed concern over increasing ultra-processed food consumption

Economic survey expressed concern over increasing ultra-processed food consumption

Economic survey expressed concern over increasing ultra-processed food consumption- नई दिल्ली। आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार भारत में चीनी, नमक और असंतृप्त वसा से भरपूर और पोषक तत्वों की कमी वाले अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों (यूपीएफ) की बढ़ती खपत कई पुरानी बीमारियों और यहां तक ​​कि मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे रही है।

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से शुक्रवार को संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में भी खपत कम करने के लिए 'स्वास्थ्य कर' का प्रस्ताव किया गया है।

सर्वेक्षण में कहा गया है, "मीठे नाश्ते के अनाज, शीतल पेय और ऊर्जा पेय से लेकर तला हुआ चिकन और पैकेज्ड कुकीज तक खाद्य पदार्थों ने निस्संदेह रोजमर्रा के आहार में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा दी है।"

नोवा खाद्य वर्गीकरण प्रणाली यूपीएफ को खाने के लिए तैयार उत्पादों के रूप में परिभाषित करती है, जिन्हें खाद्य पदार्थों से निकाले गए पदार्थों से बने औद्योगिक फॉर्मूलेशन के रूप में जाना जाता है। स्वाद बढ़ाने के लिए, ये यूपीएफ परिरक्षकों, मिठास और इमल्सीफायर्स जैसे एडिटिव्स का उपयोग करते हैं।

सर्वेक्षण में कहा गया है, "सुविधा, अत्यधिक स्वादिष्टता, लंबी शेल्फ लाइफ तथा सशक्त विज्ञापन और विपणन रणनीतियों ने भारत में यूपीएफ के फलते-फूलते कारोबार के लिए अनुकूल वातावरण तैयार किया है।"

डब्ल्यूएचओ इंडिया के आंकड़ों के अनुसार, 2011 से 2021 के बीच यूपीएफ सेगमेंट में खुदरा बिक्री का मूल्य 13.7 प्रतिशत की सीएजीआर से बढ़ा।

सर्वेक्षण में उस शोध की ओर भी इशारा किया गया है, जो दिखाता है कि कैसे आहार संबंधी प्रथाओं में यूपीएफ वस्तुओं की ओर बदलाव से लोगों को मोटापे, पुरानी सूजन संबंधी विकारों, हृदय रोगों और मानसिक विकारों से लेकर कई तरह के प्रतिकूल स्वास्थ्य परिणामों का सामना करना पड़ता है।

फाइबर सामग्री में कम होने के कारण, यूपीएफ वयस्कों और बच्चों में वजन बढ़ने और मोटापे का कारण बनता है, जो कई बीमारियों का कारण बनता है।

सर्वेक्षण में बताया गया है कि खाद्य पदार्थों की अत्यधिक स्वादिष्टता और भ्रामक विज्ञापनों तथा उपभोक्ता व्यवहार को लक्षित करने वाले सेलिब्रिटी समर्थन वाली मार्केटिंग रणनीतियों ने भारत में यूपीएफ बाजार को बढ़ावा दिया है। अक्सर अस्वास्थ्यकर पैकेज्ड खाद्य पदार्थों को स्वस्थ उत्पादों के रूप में विज्ञापित और विपणन किया जाता है।

सर्वेक्षण में कहा गया है, "यूपीएफ पर भ्रामक पोषण संबंधी दावों और सूचनाओं से निपटने की जरूरत है और उन्हें जांच के दायरे में लाया जाना चाहिए।"

इसमें नमक और चीनी के स्वीकार्य स्तरों के लिए मानक निर्धारित करने और नियमों का पालन करने के लिए यूपीएफ ब्रांडों की जांच सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया गया है।

सर्वेक्षण में खपत को कम करने के लिए यूपीएफ पर कर लगाने का भी प्रस्ताव किया गया।

"यूपीएफ के लिए उच्च कर दर को 'स्वास्थ्य कर' उपाय के रूप में भी माना जा सकता है, जो विशेष रूप से विज्ञापन देने वाले ब्रांडों/उत्पादों पर लक्षित है।"

सर्वेक्षण में यूपीएफ के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता लाने तथा स्वस्थ भोजन विकल्पों को स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की भी सिफारिश की गई है।

साथ ही, इसने स्थानीय और मौसमी फलों और सब्जियों को बढ़ावा देने तथा संपूर्ण खाद्य पदार्थों, बाजरा, फलों और सब्जियों जैसे स्वस्थ खाद्य पदार्थों के लिए सकारात्मक सब्सिडी की सुविधा प्रदान करने की आवश्यकता पर बल दिया।