Law against conversion is the great need of the day
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मतांतरण के खिलाफ कानून आज की बड़ी जरूरत

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Law against conversion is the great need of the day

Law against conversion is the great need of the day : सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के समक्ष केंद्र सरकार का यह हलफनामा (Central government affidavit) की धार्मिक स्वतंत्रता (Religious freedom) का मतलब यह नहीं है कि धोखाधड़ी, लालच व अन्य माध्यम से किसी का मतांतरण कराया जाए, सही है और इसके खिलाफ सख्त कानून बनाए जाने की आवश्यकता है। ऐसा तब है, जब हजारों वर्षों से भारत में धर्म को हथियार की तरह इस्तेमाल करते हुए धर्म विशेष के लोगों का मतांतरण कराया जाता रहा है, और यह अब भी जारी है। केंद्र सरकार से सर्वोच्च न्यायालय ने इसका जवाब देने को कहा था कि क्या जबरन धर्मांतरण की आजादी (Freedom of forced conversion) दी जा सकती है। जाहिर है, केंद्र के हलफनामे से अब काफी बातें साफ हो जाती हैं और भविष्य के लिए भी नजीर कायम होती है। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय पहले ही यह कह चुका है कि जबरन धर्म परिवर्तन देश की सुरक्षा के लिए खतरा (Forced conversion is a threat to the security of the country) है और इसे रोकना जरूरी है। वास्तव में सर्वोच्च न्यायालय को इस राय पर आने और केंद्र सरकार की ओर से ऐसा हलफनामा देने में समय लग गया है, क्योंकि देश में लोभ-लालच और जबरन मतांतरण व्यवसाय बन चुका है। अनेक ऐसे प्रदेश हैं, जहां का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश मतांतरण की वजह से पूरी तरह परिवर्तित हो चुका है।

अगर पंजाब की ही बात करें तो ऐसी रिपोर्ट हैं कि बीते पांच साल में ही यहां 70 फीसदी नए चर्च बनाए जा चुके हैं। गुरदासपुर, जालंधर, लुधियाना, फतेहगढ़ चूडिय़ां, अमृतसर (Gurdaspur, Jalandhar, Ludhiana, Fatehgarh Bangles, Amritsar) आदि इलाकों में चर्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यह समझ से परे कि बात है कि आखिर स्थानीय निवासियों की ईसाई धर्म के प्रति यह रुचि क्यों इतनी बढ़ गई है। बेशक बालिग होते हुए अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन संबंधी फैसला लेना किसी का अधिकार हो सकता है, वहीं धर्म प्रचार का मतलब किसी का मतांतरण करना नहीं है, तब यह चिंता की बात है कि आखिर किस लालच में आकर एक धर्म के लोग दूसरे धर्म में परिवर्तित हो रहे हैं। पंजाब में तो ऐसे भी हालात हैं कि जालंधर, गुरदासपुर, तरनतारन जैसे जिलों के कई गांवों की छतों पर चर्च (Church on the roofs of the villages) बनाए जा चुके हैं। यह भी सामने आ रहा है कि पंजाब में दलित और पिछड़ी श्रेणियों में धर्मान्तरण की रफ्तार तेजी से बढ़ी (The pace of religious conversion among dalit and backward classes increased rapidly in Punjab) है। यह तब है, जब एसजीपीसी समेत कई सिख नेता ईसाई मिशनरियों पर धन का प्रलोभन (Lure of money) देकर बड़े पैमाने पर धर्मान्तरण (Scale conversion) कराने का आरोप लगा चुके हैं।  प्रदेश में वर्ष 2011 के बाद जनगणना नहीं हुई है, ऐसे में किस धर्म के कितने लोग हैं, इसका सही आंकड़ा सामने नहीं आया है, लेकिन वोट प्रतिशत से ही अगर अंदाजा लगाया जाए तो बीते पांच साल में राज्य में ईसाई समाज का वोट प्रतिशत बढ़ा है, अजनाला में ही करीब 43 हजार ईसाई मतदाता हैं।

वास्तव में धर्म स्वेच्छा का मामला है, लेकिन अगर किसी प्रलोभन में या दबाव में आकर इसे परिवर्तित किया जाता है तो यह निश्चित रूप से कानून का मामला होना चाहिए। मध्यप्रदेश, ओडिशा, हरियाणा और कर्नाटक राज्यों ने धर्मांतरण रोकने और जबरन धर्म परिवर्तन कराने के दोषियों को सजा देने के कानून बनाए हैं, लेकिन अब भी तमाम अन्य राज्यों में यह कानून नहीं है। उपरोक्त राज्यों में जब यह कानून बनाया गया तो उसका विरोध हुआ है और उसे गलत चश्मे से भी देखा गया है, हालांकि अब धर्मनिरपेक्षता के पुजारियों को सर्वोच्च न्यायालय की इस राय से सरोकार रखना चाहिए कि जबरन धर्म परिवर्तन देश की सुरक्षा के लिए खतरा (Forced conversion is a threat to the security of the country) है और इसे रोकना आवश्यक है। केंद्र सरकार की ओर से अदालत को बताया गया है कि अनेक राज्यों में गेहूं-चावल के बदले धर्म बदलने को कहा जा रहा है। वास्तव में इसी तरह के केस पंजाब में भी देखे जा सकते हैं। पंजाब में सिख धर्म के अंदर ही  उपजातियां हैं और धर्म को ऐसे वर्गों में बांटा हुआ है कि सबसे ऊपर की जाति के लोग अपने से नीचे की जातियों के लोगों को अपने समकक्ष नहीं समझते। एसजीपीसी को इसकी जानकारी है और सिख धर्म के नेता भी यह बात बखूबी जानते हैं। ऐसे में उपजातियों के वे लोग जो खुद को तिरस्कृत समझते हैं, दूसरे धर्म की शरण लेने को मजबूर हो रहे हैं। क्या समाज में कायम इस खाई को नहीं भरा सकता? दरअसल, गुुरुओं की धरती पंजाब में धर्म परिवर्तन के मामले सुनकर अचरज होता है, लेकिन यह समय सामाजिक-धार्मिक चेतना का भी है। अगर कोई अपने मूल को छोडकऱ किसी दूसरे धर्म को अंगीकार कर रहा है तो इसकी वजह भी पता लगाई जानी जरूरी है।

वास्तव में धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून बनाना जरूरी (It is necessary to make a law against religious conversion) है, और यह उन धर्मावलंबियों जोकि अपने धर्म का प्रचार करते हुए इस हद तक पहुंच जाते हैं कि दूसरे धर्म के लोगों को प्रलोभन देने लगते हैं, पर ही लागू होना चाहिए। संविधान भी स्पष्ट कहता है कि धर्म का प्रचार गलत नहीं (Propaganda of religion is not wrong) है, लेकिन धोखा देकर, जबरन या लालच देकर मतांतरण की आजादी नहीं दी जा सकती (Freedom of conversion cannot be given)। देश में मतांतरण के खिलाफ बुलंद हो रही आवाज पर गौर फरमाया जाना आवश्यक है, धर्म कोई खरीदी जा सकने वाली वस्तु नहीं है। गहन विचार के स्तर पर इसकी अनुमति हो सकती है लेकिन जबरन नहीं। सरकार को ऐसा कानून बनाते समय इसके दुरुपयोग को रोकने की भी जरूरत होगी। 

 

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