History Of Vandevi Temple:100 साल से भी पुराना है ये मंदिर, पत्थर का चढ़ाया जाता है प्रसाद, पढ़े क्यों ख़ास है यहां की मान्यता?
- By Sheena --
- Saturday, 14 Oct, 2023
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Shardiya Navratri 2023: क्योंकि अब श्राद्ध खत्म हो गए और 15 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही है और नवरात्रि के नौ दिन श्रद्धालु मां के अलग-अलग रूपों की पूजा-अर्चना करते हैं। इसके साथ ही नवरात्रि के दौरान श्रद्धालु परिवार सहित मां दुर्गा के शक्तिपीठों के दर्शन करते हैं। नवरात्रि में मां के मंदिरों के दर्शनों को शुभ माना जाता है और मान्यता है कि इस दौरान मां से मांगे गई मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण तक मां के 52 शक्तिपीठ हैं। इन शक्तिपीठों की मान्यताएं मां सति के शरीर के अलग-अलग अंगों से जुड़ी हुई हैं। नवरात्रि के दौरान इन शक्तिपीठों के दर्शन को बेहद शुभ माना जाता है। तो चलिए जानते है आइए नवरात्रि पर मां के एक ऐसे चमत्कारिक मंदिर के बारे में, जहां प्रसाद के रूप में पत्थर चढ़ाए जाते हैं।
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क्या है मां के इस अनोखे मंदिर का नाम?
मां के इस मंदिर का नाम वनदेवी मंदिर है। यह मंदिर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में है। मंदिर में मां के दर्शन करने वाले श्रद्धालु उन्हें पत्थर चढ़ाते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और देश के कोने-कोने से यहां आने वाले श्रद्धालु भी इस परंपरा का निर्वहन करते हैं। मंदिर में मां के चरणों में विशेष पत्थर को चढ़ाया जाता है। आपने देखा होगा कि मां के मंदिरों में श्रद्धालु फूल-पत्ती और फल चढ़ाते हैं और साथ ही में चुनरी व श्रृंगार भी मां को भेंट चढ़ाते हैं। लेकिन यहां मां को यह विशेष पत्थर चढ़ाया जाता है।
100 साल से पुराना है मां का यह मंदिर
मां का यह मंदिर 100 साल से भी पुराना है। मान्यता है कि वनदेवी मंदिर में जो श्रद्धालु मां को प्रेमपूर्वक विशेष पत्थर चढ़ाता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मां को चढ़ाया जाने वाला पत्थर खेतों से लाया जाता है। इस पत्थर को गोटा पत्थर कगते हैं और नवरात्रि में भी मां को यही पत्थर चढ़ता है। यह मंदिर छोटा सा है पर इस पूरे इलाके में इस मंदिर का विशेष महत्व है। मंदिर बनने से पहले यहां जंगल था और बाद में इस जगह पर मां का छोटा-सा मंदिर बनाया गया। इस मंदिर में स्थापित मां की मूर्ति को लेकर कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिलती है।
स्वयंभू है मां की मूर्ति
ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में स्थापित मां की मूर्ति स्वयंभू है। बताया जाता है कि जब इस क्षेत्र में घना जंगल था उस वक्त यहां गुजरने वाले लोग मां को पांच पत्थर चढ़ाते थे और सकुशल घर पहुंचने की कामना करते थे। धीरे-धीरे इस मंदिर में मां को पत्थरों का प्रसाद चढ़ाने की परंपरा बन गई है। जिन भक्त की मनोकामना पूरी हो जाती थी वो फिर से मां को पत्थर चढ़ाते थे।