Jalandhar will prove in the Lok Sabha by-election

Editorial: जालंधर लोकसभा उपचुनाव में साबित होगा दलों का जनमत सामर्थ्य  

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Jalandhar will prove in the Lok Sabha by-election

Jalandhar will prove in the Lok Sabha by-election जालंधर लोकसभा उपचुनाव में प्रचार का शोर बस बंद होने ही वाला है। यह चुनाव सभी राजनीतिक दलों के लिए नाक का सवाल बना हुआ है। सत्ताधारी आम आदमी पार्टी इस उपचुनाव को लेकर सबसे ज्यादा सक्रिय और संजीदा नजर आ रही है, तो इसके मायने हैं। पार्टी ने प्रचंड बहुमत के साथ विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी और अब वह पंजाब में प्रत्येक चुनाव को जीत कर अपना वर्चस्व कायम रखना चाहती है। निश्चित रूप से यह पार्टी की सरकार के लिए अपनी उपलब्धियों और ख्याति को जांचने का मौका होगा।

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान के द्वारा संगरूर लोकसभा सीट से इस्तीफे के बाद यहां हुए उपचुनाव को पार्टी हार गई थी। यह निश्चित रूप से उसके लिए आघात था, लेकिन समय के साथ राज्य में पार्टी ने जहां अपनी शाख को सुदृढ़ बनाया है, वहीं सरकार ने भी अपने कार्यक्रम और नीतियों के जरिये जनता में विश्वास पैदा किया है। ऐसे में इस उपचुनाव में जीत के जरिये आप अपनी विश्वसनीयता को और बढ़ाना चाहती है।

जालंधर (आरक्षित) उपचुनाव कांग्रेस सांसद संतोख सिंह चौधरी के आकस्मिक निधन के बाद खाली हुई सीट पर हो रहा है। यह सीट लंबे समय से कांग्रेस के पास रही है। हालांकि कांग्रेस की ओर से उसके किसी बड़े नेता ने यहां आकर प्रचार में हिस्सा नहीं लिया है। पार्टी की नजर कर्नाटक विधानसभा चुनाव पर है। लेकिन अगले वर्ष फिर लोकसभा चुनाव होने हैं, कांग्रेस के बड़े नेताओं की उपेक्षा समर्थकों को भी रास नहीं आ रही होगी।

इसी वजह से आप संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रचार के दौरान आरोप लगाया है कि कांग्रेस के बड़े नेताओं का अहंकार है कि कोई वोट मांगने के लिए नहीं आया। चौधरी संतोख सिंह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे और उनके परिवार का इलाके की राजनीति में व्यापक वर्चस्व था, अब उनकी पत्नी इस सीट से उपचुनाव लड़ रही हैं। कांग्रेस के स्थानीय नेताओं का यह विश्वास काबिले तारीफ है कि उपचुनाव में जीत हासिल कर यह साबित किया जाए कि पंजाब में उसका जनाधार खत्म नहीं हुआ है और यह भी कि पार्टी के पक्ष में माहौल बन रहा है।

शिरोमणि अकाली दल के लिए यह समय चुनौतीपूर्ण है। पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का निधन हो चुका है और अब सुखबीर बादल पर ही पार्टी को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी है। निश्चित रूप से पार्टी के लिए बादल का निधन आघात है, इस वजह से प्रचार आदि कार्यों में विलंब हुआ है। हालांकि पार्टी अब चुनाव पर फोकस कर चुकी है।

शिअद पंजाब में बसपा के साथ गठबंधन करके आगे बढ़ रही है। उसकी ओर से अब कहा गया है कि अगर उपचुनाव में पार्टी उम्मीदवार डॉ. सुखविंदर कुमार सुक्खी को जीत मिली तो बंगा विधानसभा सीट से बसपा उम्मीदवार को उतारा जाएगा। हालांकि बसपा की ओर से अभी किसी बड़े नेता को प्रचार में नहीं देखा गया है, लेकिन फिर भी शिअद प्रधान का यह प्रस्ताव दोनों दलों के बीच सामंजस्य का विश्वास दिलाता है। हालांकि पार्टी जिन पंथक वोट को अपने पाले में मान कर चल रही है, वह उसकी अवधारणा के विपरीत हो सकता है। ऐसा तब हुआ है, जब एसजीपीसी की पूर्व प्रधान बीबी जगीर कौर ने अपना समर्थन भाजपा उम्मीदवार को देने की घोषणा कर दी है। यह भाजपा के लिए अपने आप में हौसला बढ़ाने वाली बात है।  

शिअद से नाता टूटने के बाद भाजपा प्रदेश की राजनीति में जिस प्रकार से आगे बढ़ रही है, वह बाकी दलों को अचंभित कर रहा है। यह उपचुनाव निश्चित रूप से उसकी संभावनाओं को बढ़ाने या अवरुद्ध करने वाला साबित हो सकता है। पार्टी ने अपने तमाम बड़े नेताओं को इस उपचुनाव में लगा दिया है, जिससे यह संदेश जा रहा है कि वह जीत हासिल करने के लिए लड़ रही है, उसकी जद्दोजहद खानापूर्ति नहीं है।

केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत, हरदीप पुरी, स्मृति ईरानी, अनुराग ठाकुर आदि नेताओं ने जालंधर में डेरा डाला हुआ है। यह भी अहम है कि पूर्व मुख्यमंत्री एवं पार्टी के वरिष्ठ नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह भी प्रचार के मोर्चे पर डटे हुए हैं।
  निश्चित रूप से यह उपचुनाव सत्ताधारी आप एवं विपक्षी कांग्रेस, भाजपा, शिअद आदि के लिए खुद को परखने का मौका साबित होने वाला है। प्रत्येक दल के अपने-अपने लक्ष्य हैं और अगले वर्ष होने वाले आम चुनाव की तैयारियों के संबंध में भी यह परीक्षण का अवसर बनने वाला है। जालंधर उपचुनाव के बाद बंगा उपचुनाव सामने होगा। पंजाब को विकास एवं प्रगति की दरकार है और जनता को यह बात ध्यान में रखकर जनमत बनाना होगा। जनता का निर्णय राज्य के विकास की दिशा तय करेगा। 

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