Jain Muni Vidyasagar Samadhi- ब्रह्मलीन हुए दिगंबर जैन मुनि विद्यासागर जी महाराज; छत्तीसगढ़ के चन्द्रगिरि तीर्थ में शरीर त्यागा, धरती पर धर्म के ध्वज वाहक थे

ब्रह्मलीन हुए दिगंबर जैन मुनि विद्यासागर जी महाराज; छत्तीसगढ़ के चन्द्रगिरि तीर्थ में शरीर त्यागा, धरती पर धर्म के ध्वज वाहक थे

 Jain Muni Vidyasagar Ji Maharaj

Jain Muni Vidyasagar Ji Maharaj Samadhi Chandragiri Teerth Chhattisgarh

Jain Muni Vidyasagar Samadhi: परम श्रद्धेय और श्रेष्ठ दिगंबर जैन मुनि विद्यासागर जी महाराज ब्रह्मलीन हो गए हैं। छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चन्द्रगिरि तीर्थ में देर रात करीब 2:35 बजे मुनि श्री ने शरीर का त्याग कर दिया और धरती से देवलोक की यात्रा पर निकल गए। विद्यासागर जी महाराज का धरती से जाना धर्म के लिए अपूरणीय क्षति है।

ऐसा लग रहा है जैसे धरती पर मानो धर्म का सूर्य अस्त हो गया हो। मुनि श्री धरती पर धर्म के तेज थे और ध्वज वाहक थे। मुनि श्री द्वारा दी गई बहुमूल्य शिक्षा हमेशा समाज को एक सही रास्ता दिखाती रहेगी। जैन मुनि विद्यासागर जी महाराज इस धरती पर लोगों के बीच हमेशा ही स्मरणीय और पूजनीय रहेंगे। यह हमेशा याद रखा जाएगा कि जैन मुनि विद्यासागर जी महाराज जैसा संत युगों-युगों में कहीं इस धरती पर अवतरित होता है।

जैन मुनि विद्यासागर जी महाराज के अंतिम दर्शन

Jain Muni Vidyasagar Ji Maharaj Samadhi Chandragiri Teerth Chhattisgarh

 

अंतिम दर्शन के लिए जुटे श्रद्धालु

जैन मुनि विद्यासागर जी महाराज के शरीर त्यागने की जानकारी से देशभर में श्रद्धालुओं में शोक की भारी लहर दौड़ गई है। खासकर जैन समाज के श्रद्धालु बेहद ज्यादा गमगीन हैं। सबकी आंखें नम हो रखी हैं। मुनि श्री को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की जा रही है। वहीं देशभर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु विद्यासागर जी महाराज के अंतिम दर्शन के लिए पहुंचे हैं। डोंगरगढ़ में मुनि श्री की समाधि को लेकर श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ा है। मुनि श्री को पंचतत्व में विलीन करने से पहले चन्द्रगिरि तीर्थ में उनकी पालकी निकाली गई।

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आचार्य पद का त्याग, 3 दिन उपवास के बाद समाधि ली

दिगंबर जैन मुनि विद्यासागर जी महाराज ने पूर्ण जागृतावस्था में आचार्य पद का त्याग कर दिया था और 3 दिन का उपवास और पूर्ण मौन धारण कर खुद को सबसे निवरत कर लिया था और एकांतिक हो गए थे। मुनि श्री की उम्र 75 साल के करीब थी। जैन मुनि विद्यासागर महाराज देश के एक ऐसे अकेले मुनि रहे जिनहोने 500 से ज्यादा दीक्षाएं दीं। इसके साथ ही वह खुद भी देश के पहले दिगंबर मुनि रहे जिन्होंने दीक्षा के 50 साल पूरे कर लिए थे। मुनि श्री विद्यासागर डोंगरगढ़ चन्द्रगिरि तीर्थ में ही ज़्यादातर प्रवास करते थे। मुनि श्री का डोंगरगढ़ में पहला प्रवास साल 2010-11 में हुआ था। तब वहां वे दो साल रुके थे।

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त्याग और तप की मूरत थे मुनि श्री विद्यासागर

मुनि श्री विद्यासागर जी का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक के बेलग्राम जिले के सदला ग्राम में हुआ था। उन्होने मात्र 22 वर्ष की उम्र में ही सांसरिक मोह-माया से अपने मन को हटा लिया था और सब कुछ त्याग कर ईश्वरीय पथ पर अग्रसर हो गए थे। बताते हैं कि, दीक्षा लेने के बाद से ही मुनि श्री दिन में केवल एक वक्त भोजन-पानी लेते थे। उनके भोजन में शक्कर-नमक की तनिक भी मात्रा नहीं होती थी। भोजन में रोटी, चावल और सब्जी शामिल होती थी। मुनि श्री अपनी अंजुल (दोनों हथेलियों को मिलाने से बना हुआ गड्‌ढा) से भोजन ग्रहण करते थे।

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इस सबके बावजूद भी मुनि श्री मानसिक और शारीरिक रूप से पूरी तरह फिट थे। वह रोजाना जमीन पर ही सोते थे। वहीं मुनि श्री विद्यासागरजी का देशभर में प्रवास रहता था। कहीं प्रवास के दौरान जब मुनि श्री निकलते तो नंगे पांव यात्रा करते थे। मुनि श्री हजारों किमी की भारत यात्रा नंगे पांव पैदल कर चुके थे। विद्यासागरजी की दिनचर्या रोजाना सुबह 3 बजे से शुरू हो जाती थी जिसमें पूजा-पाठ, शिष्यों को शिक्षा और इसके साथ ही उनके आध्यात्मिक कार्यक्रम होते थे। मुनि श्री के देश-विदेश में रहने वाले हजारों शिष्य हैं। विद्यासागरजी के संदेश को देशभर में फैलाने के लिए कई शिष्य लगातार काम करते रहते हैं।

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