It is necessary to stop the scourge of Naxalism

Editorial: नक्सलवाद का नासूर बंद होना जरूरी, सरकार के प्रयास सही

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It is necessary to stop the scourge of Naxalism

It is necessary to stop the scourge of Naxalism, the government efforts are right: छत्तीसगढ़ नक्सलवाद का वह गढ़ है, जिसने इस क्षेत्र में आतंक का ऐसा दौर कायम किया हुआ है, जिसमें न विकास संभव हो रहा है और न ही शांति। दुख तब अपने चरम पर पहुंच जाता है, जब पता लगता है कि सुरक्षाबलों ने इतने नक्सलियों को मार गिराया और इस ऑपरेशन में इतने सैनिक शहीद हो गए। यह बहुत ताज्जुब की बात है कि नक्सलियों ने आतंकी गतिविधियों को अपना धर्म बना रखा है, जबकि उन्हें इसकी इजाजत है कि वे समाज की मुख्यधारा में लौटें और शांतिपूर्वक जीवन यापन करें। लेकिन न जाने किस विचारधारा ने उनका माइंड वॉश कर दिया है कि हाथों में बंदूक और दिमागों में विफल क्रांति का बारूद भरे ये वनवासी अपने ही देश से लड़ रहे हैं।  

केंद्र सरकार का संकल्प है कि अगले वर्ष 31 मार्च से पहले देश नक्सलवाद से मुक्त होगा। इस संकल्प की प्राप्ति के लिए सैनिक ऑपरेशन चला रहे हैं, जिसमें नक्सली मारे जा रहे हंै। बीते दिन भी एक ऑपरेशन में बीजापुर व कांकेर में सुरक्षाबलों के हाथों 30 नक्सलियों के मारे जाने की जानकारी सामने आई है। बेशक, यह वाक्या दुखद नजर आ रहा है, लेकिन सच यह भी है कि नक्सली भीषण तरीके से सुरक्षाबलों पर हमले करते हैं और वक्त गवाह है कि सैनिकों से भरे वाहनों को विस्फोटक की मदद से उड़ा देते हैं, जिसमें अनेक सैनिक शहीद हो जाते हैं।

देश में नक्सलवाद का डंक बरसों से केंद्र एवं राज्य सरकारों के लिए सिरदर्दी बना हुआ है। अपने ही तौर तरीकों से जीवन जीने की जिद करने वाले आदिवासी लोगों का नक्सली बनना चिंता की बात है, लेकिन उनकी आतंकी गतिविधियां बेहद गंभीर मामला है। दिक्कत तब बहुत बड़ी हो जाती है जब नक्सली सरकार के आत्मसमर्पण करने के आह्वान का अनादर करते हुए सुरक्षाबलों की शहादत का कारण बनते हैं।

केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद नक्सलियों पर अंकुश तेज हुआ है, लेकिन नक्सलियों की ओर से बदले की भावना से उठाए गए कदमों ने भी अनेक सुरक्षा बलों का जीवन छीन लिया है। अब यह देश से छिपा रहस्य नहीं है कि नक्सली किस प्रकार महिलाओं और बच्चों का भी अपने लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। महिलाओं को प्रशिक्षण देकर उनके हाथों में बंदूक थमा रहे हैं और एक पूरी तरह से असंभव लड़ाई को जीतने की चेष्टा कर रहे हैं। वास्तव में इस पर खुशी नहीं मनाई जा सकती कि सुरक्षाबलों ने  30 नक्सलियों को मार गिराया, निश्चित रूप से यह लोग गुमराह किए गए हैं, क्योंकि मासूम आदिवासियों को नक्सली होने का टैग देने वाले असली आरोपी अब भी अप्रत्यक्ष हैं और सबसे बड़ी कार्रवाई उन्हीं पर होना जरूरी है।

निश्चित रूप से बतौर केंद्रीय गृहमंत्री शाह के लिए यह गंभीर चुनौती है कि नासूर बन चुके नक्सलवाद को पूरी तरह खत्म किया जाए। नक्सलवाद आतंकवाद का पर्याय है और इसे किसी भी तरह से स्वीकार नहीं किया जा सकता। हालांकि छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में नक्सलवाद अब भी कायम है और इसकी वजह से सरकार एवं प्रशासन के समक्ष चुनौतियां खड़ी हो रही हैं। नक्सलवाद ऐसे रोग की तरह है, जिसका इलाज कानूनी और सामाजिक तरीके से होता नजर नहीं आता। सवाल पूछा जा सकता है कि क्या नक्सलियों को मौत के घाट उतारना ही एकमात्र इलाज है। इसके जवाब में यह पूछा जा सकता है कि आखिर समाज की मुख्यधारा में शामिल होने से नक्सलियों को किसने रोका है।

आज के समय में केंद्र एवं राज्य सरकारें आदिवासी एवं कृषक समाज के लिए तमाम सुविधाएं प्रदान कर रही हैं और उन्हें आगे बढ़ा रही हैं। तब वामपंथी विचारधारा जिसने समाज को काटने और बांटने का काम ही किया है, पर चलकर किस प्रकार कुछ सिरफिरे अपने और दूसरों के जीवन को नष्ट कर रहे हैं। यह गौर करने लायक है कि केंद्र एवं राज्य सरकारों की ओर से इसके तमाम प्रयास किए जाते रहे हैं कि नक्सली हथियार छोड़ कर समाज की मुख्यधारा में आएं।

 साल 2021 में केंद्र सरकार ने कहा था कि छत्तीसगढ़ के 8 जिलों में ही नक्सलवादी हैं, और वे लगातार कम हो रहे हैं।  हालांकि इसके बाद कई बार नक्सलियों ने घातक हमले किए हैं,  जिनमें वीर जवानों की शहादत हुई है। केंद्रीय गृहमंत्री के संकल्प पर भरोसा हो सकता है, लेकिन इसकी आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है कि नक्सलवादी लगातार खुद को संगठित करते जा रहे हैं और वे हार मानने की सूरत में नहीं है। छत्तीसगढ़ सरकार का दावा है कि 400 से ज्यादा नक्सली हर साल सरेंडर कर रहे हैं, अगर वास्तव में वे सरेंडर कर रहे हैं तो फिर नए नक्सली कब और कैसे बन रहे हैं। वास्तव में नक्सलवादियों को यह समझना चाहिए कि इस खून खराबे से कुछ हासिल होने वाला नहीं है, शांति और खुशहाली के लिए उन्हें समाज की मुख्यधारा में लौटना होगा। हालांकि अंतिम कोशिशों के रूप में सरकार का सख्त रुख अपनाना भी अपनी जगह सही नजर आता है।

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