Decision to write names outside shops in UP

Editorial:यूपी में दुकानों के बाहर नाम लिखने के फैसले को समझना जरूरी

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Decision to write names outside shops in UP

It is important to understand the decision to write names outside shops in Uttar Pradesh: उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार का यह फैसला जिसमें कांवड़ यात्रियों के मार्ग में आने वाली दुकानों के बाहर मालिक का नाम लिखने के निर्देश दिए गए हैं, विवादित हो गया है तो इसकी पूरी आशंका पहले से थी। सरकार के इस फैसले के पीछे कांवड़ यात्रियों की शुचिता को बनाए रखने की कोशिश बताया गया है, आरोप है कि एक धर्म विशेष के लोग इस दौरान कुछ ऐसा करते हैं, जिससे कि कांवड़ यात्रियों को शिकायत होती है, कि उनका धर्म भ्रष्ट कर दिया गया है। राज्य सरकार की ओर से धर्म के मामले में सीधे हस्तक्षेप करते हुए एक धर्म के लोगों के पक्ष में फैसला लेना पूरे प्रकरण को विवादित बना देता है। देश का संविधान एक सरकार को धर्मनिरपेक्ष होने को कहता है, लेकिन आजकल कुछ माहौल ऐसा हो गया है कि धर्म और राजनीति दोनों एक-दूसरे में पूरी तरह घुलमिल गए हैं और अब धर्मनिरपेक्षता की बात कहना हास्यास्पद लगता है।

उत्तर प्रदेश ही वह राज्य है, जहां भाजपा को लोकसभा चुनाव में बेहद करारी शिकस्त मिली है। अगर यूपी ने भाजपा का साथ दिया होता तो आज केंद्र में भाजपा की अपने सांसदों के साथ पूर्ण बहुमत की सरकार होती। तो क्या यह माना जाए कि प्रदेश में जिस प्रकार से योगी आदित्यनाथ सरकार काम कर रही है, वह बदले की भावना से की जा रही कार्रवाई है?

यह सब तब है, जब इस बार विपक्ष के हौसले बुलंद हैं। बीते दो लोकसभा चुनावों के दौरान विपक्ष एकदम हाशिये पर ही रहा है। जनता उसे नकारती रही, लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में विपक्ष ने संविधान को बदले जाने की अफवाह का सहारा लेकर जनता के मन में कुछ ऐसा भरा कि जनता ने भी उसे संजीवनी दे दी।  यूपी में समाजवादी पार्टी ने जिस प्रकार शानदार कमबैक किया है, उससे पार्टी की संभावनाओं को बहुत बल मिला है। प्रदेश में इसी वर्ष अयोध्या में भगवान राम के मंदिर का भी लोकार्पण हुआ, लेकिन जिस अयोध्या के लिए भाजपा और उसके संगठनों ने जीजान लगा दी, उसी अयोध्या ने उसके उम्मीदवार को हरा कर सपा के उम्मीदवार को जीता दिया। इसका संदेश क्या है।

बेशक, इन सभी आधारों को लेकर भाजपा में आजकल मंथन चल रहा है और उसी मंथन से निकले विचार प्रदेश में भाजपा नेताओं को एक-दूसरे के खिलाफ बयान देने को बाध्य कर रहे हैं। स्थिति कुछ ऐसी है कि राज्य में दोनों उपमुख्यमंत्री, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बुलाई बैठक में शामिल नहीं होते। वहीं एक उपमुख्यमंत्री दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ बैठक करते हैं। प्रदेश में फिर मुख्यमंत्री के बदले जाने की चर्चाएं शुरू हो जाती हैं। हालांकि इस बीच सरकार इस तरह के फैसले लेकर विपक्ष और अपने विरोधियों को बोलने का और मौका दे देती है। क्या भाजपा यह मान चुकी है कि अब उसका वोट बैंक सुनिश्चित हो गया है और उसे दूसरे धर्मों के लोगों की जरूरत नहीं है।

गौरतलब यह भी है कि एक बंगाल से एक वरिष्ठ भाजपा नेता का बयान आता है कि जो भाजपा के साथ चलेगा, केवल उसी का विकास होगा। इस तरह के बयान विचित्र हैं और पार्टी के अंदर गहरे होते असंतोष के लक्षण हैं। एक वह दौर भी था, जब भाजपा ने खुद को धर्मनिरपेक्ष बनाने के लिए तमाम जत्न आरंभ कर दिए थे, लेकिन बीते लोकसभा चुनाव में भी इस तरह के बयान आने लगे थे, जिसमें कहा जाता था कि पार्टी को किसी धर्म विशेष के साथ की जरूरत नहीं है। हालांकि अब तो यह बात पुरजोर तरीके से साफ होती जा रही है। क्या वास्तव में पार्टी अपने भविष्य को लेकर चिंतित है और वह किस तरफ बढ़ रही है।

विपक्ष के वे नेता जोकि गैर हिंदुओं की राजनीति कर रहे हैं, का कहना है कि केंद्र सरकार पांच साल पूरे नहीं कर पाएगी। यूपी सरकार के दुकानों के आगे नाम लिखने के फैसले का राजग गठबंधन के नेता भी विरोध कर रहे हैं। बेशक, देश में तमाम ऐसे वाक्ये हैं, जब एक धर्म विशेष को राजनीतिकों की ओर से संतुष्ट करने के लिए तमाम जत्न किए जाते हैं। इस तरह से वे वोट भी हासिल कर लेते हैं, हालांकि अब भाजपा सरकार ने अगर ऐसा फैसला लिया है तो यह विवादित हो गया और इसे असंवैधानिक भी करार दिया जा रहा है। लेकिन यह भी सच है कि यूपी में ऐसे तमाम वाक्ये होते हैं, जब धर्म की आड़ में कोई अपने एजेंडे को आगे बढ़ाता है। लव जिहाद इसी तरह का प्रकरण है, वहीं खाने-पीने की चीजों के जरिये भी द्वेषपूर्ण गतिविधियों को अंजाम दिया जाता है। बीते वर्ष नूंह में जो हिंसा हुई थी उसके पीछे ऐसे ही कारण थे। तब सरकार की ओर से अगर कांवड़ यात्रियों की सुरक्षा और उनकी आस्था को कायम रखने के प्रयास के तहत ऐसा फैसला लिया गया है तो यह भी समझा जाना चाहिए। 

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