Editorial : हेरिटेज बचाना जरूरी, पर आबादी की जरूरत पर भी ध्यान देना जरूरी
It is important to save heritage
It is important to save heritage: चंडीगढ़ (Chandigarh) में सेक्टर 1 से 30 तक अपार्टमेंट संबंधी सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) का फैसला क्या व्यावहारिक कहा जा सकता है? सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने अपने फैसले में इन सेक्टरों को हेरिटेज जोन (Heritage Zone) घोषित किया है। इसका अभिप्राय यह है कि अब इन सेक्टरों में प्रॉपर्टी को अपार्टमेंट बनाकर नहीं बेचा जा सकेगा। इसका मोटा अर्थ यह है कि सर्वोच्च न्यायालय इन सेक्टरों में आवासों की सघनता की रोकथाम करना चाहता है ताकि जो इमारत पहले से हैं, उसमें और फेरबदल करके हेरिटेज को प्रभावित नहीं किया जा सके। इस फैसले से सिर्फ धनाढ्य वर्ग को फायदा होगा, जोकि अपने आलीशान आशियानों के आसपास और ज्यादा इमारतें नहीं देखना चाहता। लेकिन उन लोगों का क्या जोकि अपनी बढ़ती जरूरतों के अनुसार अपने मौजूदा आशियानों में विस्तार करना चाहते हैं। जोकि उस प्रॉपर्टी को तीन हिस्सों में बांटकर बेचना चाहते हैं, अब एक पिता अपने तीन मंजिला मकान को तीन हिस्सों में नहीं बांट सकेगा। इससे प्रॉपर्टी संबंधी विवाद कम या खत्म होने के बजाय और ज्यादा बढ़ेंगे।
यह सराहनीय और स्वीकार्य है कि चंडीगढ़ के हेरिटेज जोन की परवाह माननीय सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) कर रहा है। इस शहर को 3 लाख लोगों की जरूरतों के मुताबिक बसाया गया था लेकिन आज यह शहर 15 लाख की आबादी को अपने में समाए है। चंडीगढ़ की खूबसूरती पूरे देश और दुनिया में मिसाल थी, लेकिन अब उस पर दाग लग रहा है। यह दाग गंदगी, प्रदूषण, बढ़ती आबादी, क्राइम और असमान विकास का है। लेकिन देश का हर शहर ऐसी ही समस्याओं से जूझ रहा है। यह फैसले देते समय माननीय अदालत (Court) ने इस बात पर गौर फरमाया है? इस फैसले के आने से पहले जो आवासीय सघनता हो चुकी है, आबादी का जो प्रसार हो चुका है, क्या उसे रोका जा सकता है। बेशक, शहर की हेरिटेज विरासत को संभालना जरूरी है, लेकिन शहर लोगों से ही तो बनते और बसते हैं। क्या किसी शहर के लिए आबादी का कोटा रखा जा सकता है कि इस संख्या के बाद शहर में रहने वालों पर रोक लगा दी जाएगी। किस शहर में ऐसा हुआ है, लेकिन चंडीगढ़ में हेरिटेज के नाम पर ऐसा हो रहा है। देश की राजधानी दिल्ली समेत तमाम शहर ऐसे हैं जोकि बढ़ती आबादी का बोझ झेल रहे हैं।
चंडीगढ़ में हेरिटेज (Heritage) घोषित किए गए शुरुआती सेक्टरों में बने आशियाने राजमहलों से कम नहीं हैं, हालांकि अंतिम सेक्टरों में हालात बदतर हो चुके हैं। वहीं शहर के दूसरे फेज के सेक्टरों में बनी कॉलोनियों तो कंक्रीट का जंगल बन चुकी हैं। तब हेरिटेज के नाम पर कुछ इलाकों को यह सुख भोगने का अवसर क्यों मिल रहा है, क्या पूरे शहर में संतुलित विकास की जरूरत नहीं है। चंडीगढ़ (Chandigarh) में हरियाली भरपूर है, यहां की चौड़ी खुली सडक़ें सभी को लुभाती हैं, लेकिन अब उन सडक़ों को चौड़ा करके ट्रैफिक के लिए और जगह बनाई जा रही है। गोल चौराहे जिन्हें यहां राउंड अबाउट कहा जाता है को छोटा किया जा रहा है। इन सब पर भी आपत्ति जताई जाती है लेकिन क्योंकि इनसे किसी का निजी वास्ता नहीं है, इसलिए प्रशासन इन्हें अंजाम दे देता है, लेकिन हेरिटेज सेक्टरों में रहने वाले कुछ लोगों की इस फरमाइश की न प्रशासन अनदेखी कर सकता है और न ही न्यायपालिका की, यहां पर जरूरत के मुताबिक बिल्डिंग बाइलॉज (Building Bylaws) में फेरबदल की जा सके। यह तब है, जब हरियाणा और पंजाब में अपार्टमेंट एक्ट लागू है, यहां फ्लोरवाइज रजिस्ट्री हो रही हैं। अगर इन राज्यों में भी चंडीगढ़ के अनुसार ही नियम लागू हो जाएं तो लोग कहां जाकर रहेंगे? केंद्र सरकार एकतरफ आवास योजना लेकर आती है, वहीं अगर आवास बनाने की जगह ही नहीं होगी तो उस योजना का फायदा किसे मिलेगा? चंडीगढ़ (Chandigarh) तो पहले ही ऐसा शहर बन चुका है, जहां पर प्रॉपर्टी खरीदना चांद पर जमीन खरीदने जैसा है। एक आम नौकरीपेशा आदमी तो अपनी पूरी जिंदगी में इतनी रकम नहीं जुटा सकता कि यहां प्रॉपर्टी खरीद सके। तब वहां कहां जाए?
वास्तव में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है। चंडीगढ़ में जब मेट्रो या मोनो रेल चलाने की बात आती है तो इसकी हरियाली, सडक़ें, इसकी हेरिटेज बिल्डिंगों के प्रभावित होने की चिंता भी होती है। आवश्यकता इसकी है कि शहर का हेरिटेज स्टेटस कायम रहे लेकिन बढ़ती आबादी की जरूरतों को भी ध्यान में रखा जाए। सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने स्वयं कहा है कि स्थायी विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच उचित संतुलन बनाने की जरूरत है। दरअसल, संतुलित आबादी की जरूरत भी ऐसे समय ही सर्वाधिक महसूस होती है। जमीन उतनी ही रहेगी, लेकिन शहर और नगर छोटे पड़ते जाएंगे। यह भविष्य की तस्वीर है, जिसके संकेत अभी समझने होंगे, चंडीगढ़ समेत सभी शहरों का मूल स्वरूप बचाना होगा लेकिन पर्यावरण की चिंता के साथ बाकी चुनौतियों पर भी पार पाना होगा।
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