Maha Kumbh

Editorial: महाकुंभ में हुए हादसों का पूर्ण सच सामने आना जरूरी

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It is important to bring out the full truth about the incidents that happened during Maha Kumbh: प्रयागराज में महाकुंभ मेले का आयोजन इस बार जिस तरह से विवादों में आया है, वह चिंताजनक है। मेले में भगदड़ से हुई मौतों का सही आंकड़ा अब तक सामने नहीं आया है और विपक्ष अगर इस पर सवाल उठा रहा है तो यह स्वीकार्य होना चाहिए। समाजवादी पार्टी के प्रमुख एवं सांसद अखिलेश यादव ने लोकसभा में इस मामले को उठाते हुए जिस प्रकार से यूपी सरकार को घेरा है, वह समयोचित है, हालांकि इतने बड़े आयोजन में किसी न किसी अनहोनी की आशंका सदैव बनी रहती है। यूपी सरकार की महाकुंभ के आयोजन को लेकर तैयारियों की गंभीरता इसी बात से समझी जा सकती है कि स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रात-दिन मेले के संबंध में रिपोर्ट लेते हुए निगरानी कर रहे थे। जाहिर है, मेले में जो हुआ वह बेहद दुखद है और जिनकी जिंदगी बीत गई, उनके परिजनों को इसकी पूर्ति नहीं हो सकती। लेकिन इस मुद्दे पर राजनीति न हो, यह जरूरी है। बेशक, यूपी सरकार की वह खुमारी भी इस हादसे के बाद टूट गई, जिसमें वह यह मानकर बैठी थी कि सब कुछ सही हो रहा है और अधिकारी लोग सब कुछ अच्छे से मैनेज कर रहे हैं।

हालांकि यह शाश्वत सत्य भी है कि अधिकारियों को भी मैनेज किए जाने की जरूरत होती है और यह काम राजनीतिक स्तर पर होता है। वसंत पंचमी पर महाकुंभ में फिर करोड़ों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचे थे, लेकिन इस दौरान कोई हादसा नहीं हुआ। क्या यह नहीं माना जाना चाहिए कि अगर नौकरशाही अलर्ट पर होगी तो सब कुछ सही होगा लेकिन अगर अधिकारियों ने यह मान लिया कि सब कुछ सही हो रहा है, ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है तो हादसे होंगे ही।  

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने इस प्रकरण में पारदर्शिता की मांग की है। उनका यह आग्रह उचित भी है, क्योंकि अभी तक सरकार की ओर से 30 से ज्यादा मौतों की सूचना नहीं दी गई है। जबकि हादसा स्थल पर सैकड़ों की तादाद में जूते-चप्पल और कपड़े पड़े हुए थे। यह सब किसका सामान था। आजकल मीडिया लगातार ऐसी खबरें दे रहा है, जिसमें लोग बता रहे हैं कि उनके परिजनों के साथ किस प्रकार घटना घटी। कितने ही लोग अब भी लापता हैं, आखिर वे कहां चले गए। जबकि महाकुंभ में सरकार की ओर से हजारों सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं और जगह-जगह सूचना केंद्र बने हैं। पुलिस कर्मचारियों की भारी सुरक्षा है, स्वयंसेवक काम कर रहे हैं और मीडियाकर्मी भी मौजूद हैं।

यानी अगर कोई गुम होता है तो अपने आसपास सूचना देकर अपने परिजनों तक पहुंच सकता है। लेकिन अगर कोई सूचना ही नहीं दे पाएगा तो उसका रिकार्ड भी कैसे सामने आएगा। कहा जा रहा है कि मॉर्चरी में अनेक शव बगैर पहचान के पड़े हैं। राज्यसभा में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने तो मौतों का आंकड़ा हजारों में बता दिया। इस पर सभापति ने उनसे इसका प्रमाण मांगा। तब उन्होंने कहा कि सरकार अगर आंकड़ा सामने लाती है तो वे भी खुद को करेक्ट करना चाहेंगे। जाहिर है, विपक्ष पहले से मुद्दों की तलाश में था और महाकुंभ में किसी अनहोनी की आशंका पहले से संभावित थी। इसकी शुरुआत उस दिन हो गई थी, जब मेले में बने स्टॉल, कॉटेज जल गए थे। उस समय भी विपक्ष ने बदइंतजामी का आरोप लगाया था, हालांकि इसके बाद मौनी अमावस्या पर जो भीड़ स्नान के लिए पहुंची, उसको नियंत्रण करने में हुई लापरवाही ने भगदड़ की ऐसी घटना को अंजाम दे दिया, जिससे कलंक के छींटे सरकार के दामन पर गिरे और मामला विवादित हो गया। अब विपक्ष की ओर से इस मामले पर अगर सर्वदलीय बैठक बुलाई जा रही है तो इस पर विचार होना चाहिए। जाहिर है, विपक्ष राजनीति कर रहा है लेकिन यह राजनीति उन दुखियारे परिवारों के लिए है, जिन्होंने अपनों को खो दिया। कहा जा रहा है कि उन मृतकों के लिए शोक नहीं करना चाहिए लेकिन कोई यह तो बताए कि क्या महाकुंभ में वे लोग यह सोच कर गए थे कि उन्हें पुण्य नहीं मौत मिलेगी।

गौरतलब है कि केंद्र एवं राज्य सरकार के समर्थन में अनेक नेता महाकुंभ में हुई लापरवाही को षड्यंत्र बता रहे हैं। भाजपा सांसद रवि शंकर प्रसाद ने तो कहा भी है कि इस प्रकरण की जांच जारी है और सच जल्द सामने आएगा। जाहिर है, सरकार के पास अपना तंत्र होता है, अगर ऐसा षड्यंत्र रचा जा रहा था तो उसकी भनक उसे लगनी चाहिए थी। साजिश किसने रची, क्यों रची। इसका सच क्या है, यह भी एक रहस्य ही रहेगा। मेले में भगदड़ की न्यायिक जांच जारी है। इस जांच में कुछ तो सामने आएगा। सरकार को यह मानना चाहिए कि आयोजन में किसी न किसी स्तर पर लापरवाही रही है। बेशक, आगामी आयोजनों के दौरान सुधार की गुंजाइश रखी जानी चाहिए, लेकिन अपनी कमी के चलते दूसरों के जीवन से हुए खिलवाड़ का पूर्ण सच भी सामने आना चाहिए। 

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