The compulsion of alliance in Haryana

Editorial: हरियाणा में गठबंधन की मजबूरी या अकेले लड़ना रणनीति

Edit3

The compulsion of alliance in Haryana

Is it the compulsion of alliance in Haryana or the strategy to fight alone:  हरियाणा में कांग्रेस नेतृत्व समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी और माकपा जैसे दलों के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने की सोच रहा है। इसे लेकर इन दलों के नेताओं के साथ बातचीत चल रही है। लोकसभा चुनाव के समय भी पार्टी नेतृत्व ने आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन किया था और कुरुक्षेत्र सीट उसे सौंप दी थी, हालांकि उस समय भी पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा इससे सहमत नहीं थे और उन्होंने इसका विरोध किया था। प्रदेश कांग्रेस के नेताओं का कहना था कि राज्य में कांग्रेस अपने बूते चुनाव लड़ने में सक्षम है और उसे किसी गठबंधन की जरूरत नहीं है। अब विधानसभा चुनाव के समय भी प्रदेश के नेताओं का यही कहना है। ऐसे में प्रश्न यह कायम होता है कि आखिर पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व को यह क्यों लग रहा है कि प्रदेश में कांग्रेस को गठबंधन करके ही चुनाव लड़ना चाहिए। मालूम हो, सत्ताधारी दल भाजपा सभी 90 सीटों पर खुद चुनाव लड़ रही है और उसने सभी सीटों पर उम्मीदवारों का चयन लगभग पूरा कर लिया है।  ऐसे में कांग्रेस की ओर से अभी गठबंधन के बारे में ही सोच-विचार करना उसकी रणनीति का हिस्सा हो सकता है या फिर इस बार के विधानसभा चुनाव में एक मजबूत रणनीति के साथ पार्टी सामने आना चाहती है।

इससे पहले कांग्रेस की योजना एकला चलो की थी, लेकिन सांसद राहुल गांधी ने इसका विचार सामने रखा है कि पार्टी को गठबंधन करके आगे बढ़ना चाहिए। गौरतलब है कि पार्टी ने इससे पहले प्रदेश में कभी गठबंधन में चुनाव नहीं लड़ा है, इस बार के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार की हार के बाद तो कांग्रेस ने गठबंधन को ही अलविदा कह दिया था। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व को राष्ट्रीय नेतृत्व के कहे पर चलना पड़ा। हालांकि प्रदेश नेतृत्व को इसकी जानकारी थी कि अगर कुरुक्षेत्र सीट भी उसके पास होती तो संभव है, पार्टी चुनाव जीत जाती।

बावजूद इसके कांग्रेस ने 5 सीटों पर जीत दर्ज कर इस बार प्रदेश में बड़ा उलट फेर कायम कर दिया। उसने जहां सोशल इंजीनियरिंग पर काम करते हुए जाट बहुल इलाके में गैर जाट को टिकट दिया वहीं जाति विशेष की नाराजगी को दूर करने के लिए एक अभिनेता को टिकट देकर अलग समीकरण पैदा कर दिए। निश्चित रूप से इस बार के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी कुछ ऐसे ही उपायों पर काम कर रही है, हालांकि प्रदेश नेतृत्व की राय अपने बूते चुनाव लड़ने की है, जिसे समझा जा सकता है। ऐसा तब है, जब निवर्तमान विधानसभा के दौरान तीन उपचुनावों के दौरान कांग्रेस ने अकेले वे चुनाव लड़े और इनमें से बरोदा हलके में तो प्रदेश नेतृत्व ने अकेले चुनाव लड़ा।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार कांग्रेस के लिए यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है कि वह अपने सहयोगी दलों को कितनी सीटें प्रदान करे। ऐसा बताया गया है कि कांग्रेस 2-3 सीटें अपने संभावित सहयोगियों को देने को तैयार है, लेकिन इन दलों की मांग है कि उन्हें कम से कम 20 सीटें दी जाएं। अगर ऐसा होता है तो यह कांग्रेस के लिए मुश्किल हो सकता है, क्योंकि इससे पार्टी के अपने जीते हुए विधायकों की तादाद कम हो जाएगी और उसे गठबंधन सहयोगियों पर निर्भर रहना पड़ेगा। वैसे, प्रश्न यह भी है कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच दिल्ली में कोई गठबंधन नहीं हुआ है, वहीं पंजाब में भी दोनों दल एक-दूसरे के विरोधी हैं। लेकिन हरियाणा में दोनों ने एक होकर चलने की संभावना तलाशी है, इसके अलावा कांग्रेस उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी और माकपा को भी साथ लेना चाहती है। निश्चित रूप से यह पार्टी की रणनीति का हिस्सा हो सकती है, क्योंकि अकेले चुनाव लडऩे से भला उन दलों का सहयोग आवश्यक है, जोकि चाहे सीमित संख्या में लेकिन प्रदेश में अपना वर्चस्व रखते हैं। आम आदमी पार्टी ने प्रदेश में अभी तक कोई बड़ी कामयाबी हासिल नहीं की है, लेकिन उसके प्रयास जारी हैं।

विपक्ष ने अपनी एकजुटता से इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा के विजय रथ को रोक दिया था। भाजपा प्रचंड बहुमत से जीत हासिल करने की दिशा में बढ़ रही थी, यह उसका विश्वास था। हालांकि विपक्षी दलों ने विभिन्न मुद्दों को उठाते हुए एकजुट होकर सत्ताधारी दल का मुकाबला किया। हरियाणा की राजनीति को समझना इतना आसान नहीं है, यह भी नहीं कहा जा सकता कि प्रदेश में गठबंधन वास्तव में ही जीत हासिल कर ले या फिर  इसका अनुमान भी बहुत जल्दी होगा कि एकल चुनाव लड़ना उचित रहेगा। प्रदेश की जनता राजनीतिक दलों की कमी-पेशी समझती है और उसी के अनुसार फैसला लेगी। हालांकि इतना तय है कि इस बार प्रदेश में विधानसभा चुनाव निर्णायक साबित होंगे, ऐसे में प्रत्येक राजनीतिक दल के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना जरूरी हो गया है। तब इसके लिए गठबंधन करना पड़े तो उसके लिए भी पार्टियां तैयार हैं। 

यह भी पढ़ें:

Editorial: पाक ने खुद खत्म किया, भारत से वार्ता का दौर

Editorial: पंजाब में नशे पर लगाम के लिए मान सरकार के प्रयास सही

Editorial: पश्चिम बंगाल को अराजकता की आग में जलने से बचाओ