Interpol role should be decided

Editorial:इंटरपोल की भूमिका हो तय, भारत की चिंता भी समझे विश्व

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Interpol role should be decided

इंटरपोल की 100वीं महासभा में भारत की ओर से यह मत रखना अपनी जगह उचित है कि दुनिया में अपराध और अपराधियों के खिलाफ कोई भी सुरक्षित पनाह नहीं होनी चाहिए। इंटरपोल एक वैश्विक पुलिस बल है, जिसका काम पूरी दुनिया में पुलिस संगठनों के बीच समन्वय स्थापित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय अपराधियों पर नकेल कसना है। हालांकि बीते कुछ समय के दौरान अनेक ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जब इंटरपोल की भूमिका घटी है या फिर उसे नियंत्रित कर लिया गया है। इस समय अमेरिका और कनाडा के साथ भारत की ऐसे ही मामलों को लेकर तनातनी चल रही है।

कनाडा की ओर से अपने एक नागरिक की हत्या का आरोप भारत पर मढऩे के बाद कनाडा सरकार की ओर से इस बारे में भारत को न तो जानकारी मुहैया कराई जा रही है और न ही भारतीय जांच दल को वहां जाने के लिए वीजा दिया गया है। ऐसे में यह समझना मुश्किल है कि इंटरपोल आदि संगठनों की जरूरत को इन देशों के द्वारा समझा जा रहा है। वास्तव में अनेक देश हैं, जोकि अपने यहां आतंकी गतिविधियों को घटते देख रहे हैं लेकिन उनके संबंध में कोई कार्रवाई नहीं कर रहे। कनाडा और पाकिस्तान इनमें प्रमुखता से सामने आए हैं। अब भारत का यह कहना कि आतंकियों, ड्रग तस्करों, अपराधियों, मनी लॉन्ड्रिंग करने वालों, साइबर अपराधियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए इंटरपोल के देशों में बेहतर समन्वय की आवश्यकता है, समय की मांग है।

गौरतलब है कि इस समय गुरपतवंत सिंह पन्नू समेत कई आतंकी कनाडा और दूसरे देशों में बैठकर भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। ऐसे में जब जांच की बारी आती है तो इंटरपोल और संबंधित देश भारत के साथ सहयोग नहीं करते। इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि भारत के अनुरोध के बावजूद वांछित आतंकी पन्नू के खिलाफ इंटरपोल ने रेड कार्नर नोटिस जारी करने से मना कर दिया था और अमेरिका व कनाडा उसके खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित नहीं कर रहा। जबकि यही आतंकी पन्नू भारत में सरेआम आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने की धमकी देता रहता है। क्या ऐसे में इन देशों की राजनीतिक कुटिलता का परिचय नहीं मिल जाता है।

भारत का यह कहना सही है कि संगठित अपराधी और आतंकी किसी देश की सीमा तक सीमित नहीं है और वे दूसरे देश में रहकर अपराध को अंजाम देते हैं। ऐसे में उनके खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए सभी देशों में बेहतर समन्वय की जरूरत है। विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दुनिया के तमाम देशों की ओर से यह कहा जाता है कि आतंकवाद पर कार्रवाई जरूरी है, लेकिन अपने राजनीतिक पूर्वाग्रहों के चलते ये देश वक्त आने पर अपनी कही बात पर भी नहीं ठहरते और निहित स्वार्थों के लिए ही काम करते हैं। कनाडा सरकार इस समय इसकी सबसे बड़ी उदाहरण बन गई है।

गौरतलब है कि कनाडा और भारत के संबंध में इस समय सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन कनाडा की ओर से सुधार की बजाय इन्हें और ज्यादा बिगाडऩे पर ही ध्यान दिया जा रहा है। आतंकी निज्जर की हत्या के आरोप भारत पर लगाने के बाद जो घटनाक्रम घटा है, वह कनाडा के लिए अप्रत्याशित घटना है, क्योंकि शायद ही उसके रणनीतिकारों ने इसका अंदाजा लगाया था कि मामला यहां तक पहुंच जाएगा।

अपने देश में खालिस्तान समर्थकों को खुश करने के लिए प्रधानमंत्री ट्रूडो ने एक आतंकी की हत्या के लिए भारत को जिम्मेदार तो ठहरा दिया लेकिन वे अब उसके बाद के परिणामों को संभाल नहीं पा रहे हैं। वास्तव में यह सब अनावश्यक विवाद है, कनाडा सरकार ने जहां बेहद जल्दबाजी की है, वहीं भारत सरकार ने अपने तौर पर सही कदम उठाए हैं। बेशक यह कूटनीतिक हो सकता है, क्योंकि भारत भी नहीं चाहता है कि पश्चिमी देशों से उसके संबंध में खराब हों।

 इस मामले में भारत सरकार पहले दिन से कनाडा के आरोपों को खारिज करती आ रही है और विदेश मंत्री एस जयशंकर का इस पर स्पष्टीकरण भारत का अपने दावे के संबंध में अडिग रहना दर्शाता है। यह पहली बार है, जब किसी देश ने भारत पर इस प्रकार के आरोप लगाए हैं, जिसमें कहा गया है कि देश ने किसी अन्य देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप किया है। ऐसे में विदेश मंत्री एस जयशंकर का यह कहना सर्वथा उचित है कि इस प्रकार के मामलों में संलिप्त होना भारत की नीति नहीं है। वास्तव में कनाडा के आरोप पूरी तरह से वैश्विक राजनीति से प्रेरित हैं और उसमें उसे उन देशों का सहयोग प्राप्त हो रहा है, जोकि भारत से शत्रुता रखते हैं। इनमें चीन, पाकिस्तान अग्रणी देश हैं। ऐसे में भारत सरकार का कड़ा रुख सही है और ऐसे देशों को मुंह तोड़ जवाब है, जोकि भारत के आंतरिक मामलों में लिप्त होकर अपना स्वार्थ साधते हैं। 

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