नेम प्लेट लगवाने की बजाय खाद्य सुरक्षा मानक हों, जो मानव जीवन से जुड़े हैं

नेम प्लेट लगवाने की बजाय खाद्य सुरक्षा मानक हों, जो मानव जीवन से जुड़े हैं

should be food safety standards

should be food safety standards

should be food safety standards: अपना व्यवसाय और परिवार की रोजी-रोटी के लिए चलाई जा रही खाने पीने की दुकानों , रेहड़ी -फड़ी और खोमचों पर नाम पट्टिका लगाने की बजाय खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता पर ध्यान जाना स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक बहुत बड़ा कदम है। किसी भी तीर्थ स्थल या तीर्थ यात्राओं पर जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता महत्वपूर्ण है ना की दुकान पर नेम प्लेट लगना।  खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए गत मंगलवार को पेश हुए बजट में विशेष ध्यान किया गया है। सरकार का यह कदम काबिले तारीफ है। 

देश में खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता को मद्देनजर रखते हुए केंद्रीय बजट में 100 नए स्ट्रीट फूड हब, फूड टेस्टिंग लैब बनाने की बात कही गई है। देश में जितनी ज्यादा से ज्यादा खाद्य प्ररीक्षण प्रयोगशालाएं आमजन की पहुंच पर होगी, उतनी ही लोगों में जागरुकता आएगी और खाद्य पदार्थों में मिलावट की संभावना भी कम होगी। वर्तमान में देश में केवल मात्र 206 फूड टेस्टिंग लैब हैं इन सभी लैब को एन ए बी एल नाम की एक संस्था मान्यता देती है। मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक देश में लगभग तीन लाख 3.3 लाख करोड़ का व्यवसाय है।हमारे देश की अधिकतर जनसंख्या स्ट्रीट फूड का ही इस्तेमाल करती है। अंतरराष्ट्रीय मानकों के आधार पर हमारा देश खाद्य सुरक्षा मानकों में अभी काफी पीछे है। खाद्य सुरक्षा एवं मानकों में सुधार लाने के लिए ही केंद्र सरकार द्वारा ये कदम उठाए गए हैं साथ ही स्ट्रीट फूड का व्यवसाय बढ़ाने के मकसद से बजट में अधिक जोर दिया गया है। देश में खाद्य मानकों पर नियंत्रण रखने के लिए खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 बनाया गया। इस अधिनियम के तहत खाद्य सुरक्षा और मानकों में से समझौता करने वाले उत्पादकों व कंपनियां के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही का भी प्रावधान है। जिला स्तर पर खाद्य सुरक्षा अधिकारियों की टीमें भी गठित हैं जो  विभिन्न उत्पादक इकाइयों पर नियंत्रण रखती हैं। खाद्य सुरक्षा और मानकों बारे जागरूकता अभियान भी चलाती हैं।

अब बात खाद्य पदार्थों की दुकानों रेहड़ियों और खोमचों पर नेम प्लेट लगाने जैसे ज्वलंत मुद्दे की है। भारतीय संविधान सभी धर्मों के लोगों को अपने धर्मानुसार धार्मिक आस्था और पवित्रता बनाए रखने का अधिकार देता है।धार्मिक आस्था की पवित्रता हर धर्म के अनुयाई व श्रद्धालुओं की आस्था और पवित्रता बनी रहनी चाहिए। इसमें किसी को‌ कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। हिंदू मास श्रावण की शुरुआत हो चुकी है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार यह महीना देवी देवताओं और तीज - त्योहारों का महीना माना जाता है। इस महीने की शुरुआत में हरिद्वार से पवित्र कावड़ यात्रा शुरू हो चुकी है, जिसे श्रद्धालु बहुत ही आस्था के साथ पूरी भी करते हैं ।इसी दौरान यात्रा के चलते उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा खाद्य वस्तुओं के बारे में फरमान जारी किया गया कि कावड़ यात्रा के रास्ते में पड़ने वाली खाने पीने की दुकानों, रेहड़ी- फड़ियों व खोमचों पर नेम प्लेट लगाई जाए ।इसका मकसद क्या था यह तो सरकार जाने लेकिन आम जनता ने इस फरमान को सांप्रदायिकता से जोड़कर समझा है ।इसी को मुद्दा बनाकर मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा।‌ सर्वोच्च न्यायालय ने भी सरकार के निर्णय पर अंतरिम रोक लगाई है और कल यानी 26 जुलाई को सरकार से जवाब भी मांगा है सरकार के इसी जवाब के आधार पर मामले की सुनवाई की जाएगी।   एनजीओ एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स ने उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। गत सोमवार को जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने इस पर सुनवाई की।

मामले पर सुनवाई के दौरान एनजीओ की ओर से पेश वकील ने कहा कि यूपी सरकार के इस फैसले का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है। सड़क किनारे चाय की दुकान या ठेला लगाने वाले दुकानदारों को इस तरह की नेमप्लेट लगाने के आदेश देने से कुछ फायदा नहीं होगा। अधिवक्ता  ने कहा कि कावड़ यात्रा दशकों से हो रही है। सभी धर्मों के लोग हिंदू ,मुस्लिम, सिख सिख, ईसाई और बौद्ध कावड़ियों की मदद करते हैं। यह यात्रा हजारों किलोमीटर की होती है। इस बड़े रूट पर बड़ी तादाद में चाय की दुकानें, ठेले और फलों की दुकानें हैं। यह आदेश तो इन दुकानदारों के लिए आर्थिक तंगी लेकर आएगा।

 यहां जम्मू कश्मीर के क्षीर भवानी मंदिर का जिक्र करना होगा कि जम्मू-कश्मीर का वो खास मंदिर, जहां से हजारों मुस्लिमों की रोजी रोटी चलती है। क्षीर भवानी मंदिर में माता राघेन्या देवी के दर्शन करने हजारों लोग पहुंचते हैं। इस मंदिर से हजारों मुस्लिमों की रोजी-रोटी जुड़ी हुई है। मंदिर परिसर में 95 प्रतिशत दुकानें मुस्लिमों की है। एक तो यहां 37 साल से इस मंदिर पर दीया बेच रहा है। पूजा सामाग्री की करीब 700 दुकानें हैं। देश के विभिन्न बड़े मंदिरों में भी मुस्लिम समुदाय के अनेकों लोग प्रसाद सामग्री व अन्य प्रकार की सामग्री का व्यवसाय करते हैं। इतना ही नहीं दुनिया के सभी सबसे बड़े इस्लामिक देश संयुक्त अरब अमीरात दुबई  में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में सबसे बड़े मंदिर की आधारशिला रखी जो  बनकर तैयार हो गया है और उसका उद्घाटन दुबई के शेख द्वारा किया गया है इस मंदिर में सभी धर्मों के लोगों के लिए पूजा स्थल भी है। बहरीन में भी बड़े मंदिर का निर्माण कार्य जारी है। जब दुनिया के इस्लामिक देशों की धरती पर हिंदू मंदिरों की स्थापना हो सकती है और वहां सभी धर्म के लोग अपने व्यवसाय में लगे हैं तो फिर व्यवसाय में सांप्रदायिकता लाना शोभा नहीं देता । केंद्र सरकार ने इससे ऊपर उठकर देश में तथा विभिन्न स्थलों और मेलों आदि में खाद्य पदार्थ की गुणवत्ता पर को मद्देनजर रखते हुए खाद्य गुणवत्ता सुधार के कदम उठाए हैं। निस्संदेह केंद्रीय बजट में उठाया गया यह कदम सरकार का एक क्रांतिकारी कदम है।