उपराष्ट्रपति के बाद जस्टिस यादव विपक्ष के निशाने पर!

Justice Yadav is the target of the opposition

Justice Yadav is the target of the opposition

Justice Yadav is the target of the opposition: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बाद अब विपक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव को निशाने पर लिया है। विपक्ष ने अब जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर ली है।‌ इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव ने 8 नवंबर को प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद की लीगल सेल के एक कार्यक्रम में विवादित बयान दिया था।
उन्होंने इस कार्यक्रम में कहा था कि कानून तो बहुसंख्यकों से चलता है। यहां तक की उन्होंने कठमुल्ला शब्द का प्रयोग भी किया।
उनके इसी बयान को मुद्दा बनाते हुए विपक्ष ने जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी की है। निर्दलीय सांसद कपिल सिब्बल की ओर से तैयार याचिका पर 35 सांसदों ने हस्ताक्षर भी कर दिए हैं। फिलहाल हस्ताक्षर करने वालों में कांग्रेस के दिग्विजय सिंह, विवेक तंखा, जय राम रमेश, राजद के मनोज कुमार झा, सपा के जावेद अली खान, माकपा के जान बिटरास, तृणमूल कांग्रेस के साकेत गोखले‌व सागरिका घोष, और भाकपा के संदोश कुमार सहित अन्य भी शामिल हैं। विपक्ष ने 50 सांसदों की संख्या जुटाने के साथ प्रस्ताव का नोटिस देने की तैयारी कर ली है।
 
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से भी शिकायत की गई थी। अब इस पर सुप्रीम कोर्ट एक्शन मोड में दिख रहा है।  सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव की ओर से दिए गए एक भाषण की अखबारों में प्रकाशित रिपोर्ट के आधार पर स्वत संज्ञान भी लिया है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि इस संबंध में हाई कोर्ट से विवरण और जानकारी मांगी गई है। यह मामला अभी विचाराधीन है।
 
सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू कराने के लिए उच्च सदन में यानी राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों की ओर से सदन के पीठासीन अधिकारी के सामने नोटिस के रूप में अनुरोध प्रस्तुत किया जाता है। नोटिस स्वीकार करने के बाद जज पर लगाए गए आरोपों की जांच के संदर्भ में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने के लिए तीन सदस्यी समिति गठित की जाती है।

दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट के जज के मामले में सुप्रीम कोर्ट के दो मौजूदा न्यायाधीश और एक न्यायविद, जबकि हाईकोर्ट के जज के मामले में गठित कमेटी में सुप्रीम कोर्ट के एक मौजूदा न्यायाधीश और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के साथ एक न्यायविद को शामिल किया जाता है। महाभियोग प्रस्ताव को पारित कराने के लिए संबंधित सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों की कम से कम दो तिहाई सदस्यों का प्रस्ताव के पक्ष में समर्थन जरूरी है।
 वर्तमान में उच्च सदन यानी राज्यसभा में विपक्ष के 88 सांसद हैं। इस समय 237 सदस्यों वाले उच्च सदन में महाभियोग प्रस्ताव पारित कराने के लिए 158 सदस्यों का समर्थन जरूरी है। ऐसे में अगर सत्ता पक्ष ने प्रस्ताव से दूरी बनाई तो इसका गिरना तय है। इसलिए इस प्रस्ताव को समर्थन मिलना संभव ही नहीं है।
 हालांकि विपक्षी दलों का कहना है कि इसके सहारे विपक्ष की योजना जस्टिस यादव की खतरनाक टिप्पणियों पर देश का ध्यान आकर्षित करना है। 
पूर्व में संसद के दोनों सदनों में जजों के खिलाफ अब तक महाभियोग के चार प्रस्ताव लाने के प्रयास किए गए हैं। इनमें से कोई भी प्रस्ताव प्रक्रिया पूरी नहीं कर पाया। नब्बे के दशक में सुप्रीम कोर्ट के जज वी-रामास्वामी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप में महाभियोग लाया गया था, मगर यह प्रस्ताव लोकसभा में गिर गया। साल 2011 में ऐसे ही मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट के जज सौमित्र सेन के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया, हालांकि प्रक्रिया शुरू होने से पहले सेन ने इस्तीफा दे दिया था।  सिक्किम हाईकोर्ट के जज पीडी-दिनाकरन ने भी राज्यसभा में प्रक्रिया शुरू होने से पहले इस्तीफा दिया था। अंतिम प्रयास सुप्रीम कोर्ट के जज दीपक मिश्रा के संदर्भ में था। हालांकि साल 2018 में राज्यसभा के सभापति ने इससे जुड़े नोटिस को खारिज कर दिया था।
 महाअभियोग से संबंधित इस मामले में राज्य सभा सदस्य कपिल सिब्बल ने कहा कि हम जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाएंगे। हमारे पास और कोई रास्ता बचा नहीं है। उन्होंने अपेक्षा जताई है कि जो भी लोग जूडिशियरी की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं, वे सारे लोग हमारे साथ आएं ।
न्यायपालिका लोकतंत्र का एक स्वतंत्र स्तंभ है‌ और न्यायपालिका हमेशा राजनीति से ऊपर रही है। न्याय की कुर्सी पर आसीन किसी जज का इस प्रकार का बयान कहां तक सही माना जा सकता है।