कहानी 'चुनावी स्याही' की; उंगली पर लगने के बाद जल्दी से क्यों नहीं छूटती? वोट देने पर क्यों लगाई जाती, पहली बार कब लगाई गई
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Election Ink: इन दिनों लोकसभा चुनाव-2024 के लिए पूरे देश में वोटिंग हो रही है। वहीं वोट देने पहुंच रहे लोग बाद में अपनी स्याही लगी उंगली दिखा रहे हैं। सोशल मीडिया पर सेल्फी और फोटो पोस्ट कर रहे हैं कि देखिए भैया हम तो वोट डाल आए। हमारी उंगली पर लगी स्याही देख लीजिए। लेकिन क्या आपको उंगली पर लगी इस 'चुनावी स्याही' की पूरी कहानी पता है। 'चुनावी स्याही' के बारे में आप सिर्फ ये न सोचें कि वोट देने के दौरान यह स्याही उंगली पर लगाने की एक प्रक्रिया है।
दरअसल, करोड़ों उंगुलियों पर लगने वाली 'चुनावी स्याही' की कहानी इतनी मामूली नहीं है। इसलिए हम आज इस स्याही की कहानी तसल्ली से जानेंगे। हम यह भी जानेंगे कि वोट देने के दौरान उंगली पर लगने के बाद चुनावी स्याही कई दिनों क्यों नहीं छूटती? साथ ही पहली बार चुनाव में 'चुनावी स्याही' कब से उपयोग में लाई गई। कौन सी कंपनी इस चुनावी स्याही को बनाती है?
उंगली पर लगने के बाद जल्दी से क्यों नहीं छूटती?
'चुनावी स्याही' को लेकर लोग सबसे ज्यादा इस बात से परेशान होते हैं कि आखिर उनकी उंगली पर स्याही छूट क्यों नहीं रही? लोग स्याही छुटाने का जमकर प्रयास भी करते हैं। इसके लिए कई प्रकार के हथकंडे भी अपनाते हैं। ऐसे लोगों में कुछ शरारती तत्व भी शामिल होते हैं जो चाहते हैं कि स्याही छूट जाए तो वह दोबारा वोट डाल आएं।
मसलन, इस चुनावी स्याही के न छूटने को लेकर पहली बात तो यह है कि इससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि कोई भी वोटर चुनाव में एक से अधिक बार वोट न कर सके। धोखाधड़ी से बचने के लिए इस न छूटने वाली स्याही को महत्वपूर्ण भूमिका में लाया जाता है। वहीं आखिर यह स्याही छूटती क्यों नहीं है। अब इसके बारे में भी हम जानते हैं।
बताते हैं कि, इस स्याही को बनाने में सिल्वर नाइट्रेट का इस्तेमाल किया जाता है। इसीलिए चुनावी स्याही का निशान इतना पक्का होता है कि जल्दी से छुटाए नहीं छूटता। दरअसल, सिल्वर नाइट्रेट एक बार त्वचा के किसी भी हिस्से पर लगने के बाद जल्दी हटाया नहीं जा सकता। वहीं, पानी के संपर्क में आने पर काला हो जाता है। इसे साबुन से नहीं धोया जा सकता। यह अपने-आप धीरे-धीरे त्वचा से हल्का होता है और मिट जाता है।
चुनावी स्याही को एक ही कंपनी बनाती
रिपोर्ट्स के अनुसार, यह चुनावी स्याही भारत में सिर्फ एक ही कंपनी की ओर से बनाई जाती है। जिसका नाम है मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड (MPVL)। बताया जाता है कि साल 1937 में इस कंपनी की स्थापना हुई थी। लेकिन एमवीपीएल का नाम तब ज्यादा चमका जब उसका कॉन्ट्रैक्ट चुनाव आयोग के साथ हुआ। स्याही की आपूर्ति के लिए कंपनी के साथ समझौता किया गया.
1962 के चुनाव से उपयोग में लाई जा रही स्याही
बताते हैं कि, चुनाव में स्याही का उपयोग 1962 के चुनाव से किया जा रहा है। इस स्याही को भारतीय चुनाव में शामिल कराने का श्रेय देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को जाता है। शुरुआत में केवल संसदीय और विधानसभा चुनाव के लिए स्याही की आपूर्ति शुरू की गई लेकिन बाद में अन्य चुनाव के लिए भी स्याही की आपूर्ति शुरू कर दी गई।
एमपीवीएल के अनुसार उच्च गुणवत्ता वाली यह स्याही 40 सेकंड से भी कम समय में पूरी तरह से सूख जाती है। हालांकि, अगर स्याही एक सेकंड के लिए भी त्वचा पर रही है, तो यह अपना प्रभाव छोड़ देती है। अभी तक चुनाव आयोग इसके दूसरे विकल्प को नहीं तलाश पाया है। 60 साल से अधिक समय से चुनावों में इस स्याही का बखूबी इस्तेमाल हो रहा है।
'चुनावी स्याही' की कीमत कितनी
बताते हैं कि, एक लीटर स्याही की कीमत 12 हजार 700 रुपये के करीब बताई जाती है। वहीं, इसकी हर एक बोतल में 10 एमएल स्याही होती है और 10 एमएल वाली बोतल की कीमत 127 रुपये के करीब है। अब एक बूंद के हिसाब से इस स्याही की कीमत का हिसाब आप खुद ही लगा लीजिये। वहीं 1 शीशी में 700 वोटरों को स्याही लग जाती है।
किस उंगली में लगेगी स्याही और उंगली न हो तो
चुनाव आयोग की गाइडलाइंस के अनुसार, चुनावी स्याही (Election Ink) वोटर के लेफ्ट हैंड यानी बाएं हाथ की तर्जनी (फोरफिंगर) उँगली पर त्वचा से लेके नाखून के ऊपर तक लगाई जाती है। यदि किसी के बाएं हाथ में तर्जनी उंगली नहीं है तो फिर क्या होगा। ऐसे हालात में उस व्यक्ति के बाएं हाथ की किसी भी उंगली पर स्याही लगाई जा सकती है।
यदि बाएं हाथ पर कोई भी उंगली नहीं है तो फिर दाएं हाथ की तर्जनी पर यह स्याही लगाई जाती है। यदि उसके दाएं हाथ में भी फोरफिंगर नहीं हो तो दाएं हाथ के किसी भी उंगली में स्याही लगाई जा सकती है। यदि उसके दोनों हाथों में कोई उंगलियां नहीं हैं तो दोनों हाथ के किसी हिस्से पर भी स्याही का प्रयोग किया जा सकता है। यदि दोनों ही हाथ नहीं है तो पैर के अंगूठे पर स्याही लगाई जाती है।