If the organization of Haryana Congress becomes strong then the situation will improve
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Editorial: हरियाणा कांग्रेस का संगठन मजबूत बने तो सुधरेंगे हालात

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If the organization of Haryana Congress becomes strong then the situation will improve

If the organization of Haryana Congress becomes strong then the situation will improve: हरियाणा में कांग्रेस के संगठनात्मक ढांचे में पार्टी हाईकमान अगर आमूल-चूल परिवर्तन करने की सोच रहा है तो यह उचित ही है। प्रदेश कांग्रेस मौजूदा समय में बिखराव के ऐसे दौर से गुजर रही है, जिसने उसके पास आई जीत को भी उससे दूर कर दिया। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार उसके लिए सबक होनी चाहिए। हालांकि बड़ी बात यह है कि कांग्रेस अपनी हर हार के बाद उसकी समीक्षा करने का दावा करती है, उन कारणों को भी खोज लेती है, जिनकी वजह से हारी, लेकिन दिक्कत यहां होती है कि पार्टी उन कमियों को दूर नहीं कर पाती। ऐसी रपट है कि नेता विपक्ष एवं सांसद राहुल गांधी की नजर हरियाणा में संगठन चुनाव पर है और वे चाहते हैं कि इस बार का संगठन मजबूत और निष्पक्ष हो। जाहिर है, संगठन की ताकत उसके कार्यकर्ता होते हैं, पार्टी कुछ को नेता की जिम्मेदारी देती है, कुछ को कार्यकर्ता की।

हालांकि हरियाणा कांग्रेस में मौजूदा समय में हर कोई एक नेता है। ऐसे में पार्टी की जीत की संभावनाओं पर सवाल खड़ा हो जाता है। इस समय प्रदेश में शहरी निकाय चुनाव होने जा रहे हैं। निकाय चुनाव किसी भी मायने में कमतर नहीं होते, क्योंकि आजकल राजनीतिक दलों की रुचि नगर निगम, परिषद और पालिका चुनावों में हो गई है। ऐसे में कांग्रेस भी इन चुनावों में उतरी है, हालांकि इसी बीच पार्टी संगठन को लेकर जिस प्रकार की बातें सामने आ रही हैं, उनके मद्देनजर यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या वास्तव में कांग्रेस निकाय चुनावों के लिए तैयार है।

हरियाणा कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी रहे दीपक बाबरिया का कार्यकाल विवादों से घिरा रहा। सबसे बड़ा विवाद लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान उम्मीदवारों के चयन में रहा। प्रदेश में कांग्रेस के उम्मीदवारों की स्थिति एक अनार सौ बीमार वाली रही। हालांकि इस पर प्रदेश प्रभारी अंकुश लगा सके और न ही प्रदेश अध्यक्ष गुटबाजी को रोक सके। विधानसभा चुनावों में किस नेता के प्रति क्या बयान दिया गया और उससे पार्टी को क्या हानि हुई, इसका सभी को पता है। बावजूद इसके तत्कालीन प्रदेश प्रभारी और अध्यक्ष ऐसे बयानों को नहीं रोक पाए। क्या एक प्रभारी की यही भूमिका रह जाती है कि अगर सवाल उठें तो उसके जवाब दूसरों को देने के लिए छोड़ दो और फिर खुद मंच के पीछे चले जाओ। वास्तव में कांग्रेस के अंदर इस समय अगर प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर भी मंथन जारी है तो यह उचित ही है। हालांकि हाईकमान को यह समझना होगा कि यह समय मजबूर होने का नहीं है। प्रदेश में कांग्रेस का वर्चस्व संकट में है।

लगातार तीन बार से भाजपा प्रदेश में सत्ताशीन है। एक राजनीतिक दल की इससे बड़ी कामयाबी और क्या हो सकती है कि जनता उसे लगातार वोट करती आ रही है। हालांकि विपक्ष के लिए यह चिंताजनक है कि आखिर कौनसी कमी रह गई, जिसकी वजह से वह जनमानस को जनादेश में नहीं बदल सका। जाहिर है, इसका कारण नेतृत्व की कमी और नेताओं पर भरोसा न होना है। पार्टी में अब ऐसे नेता सामने आ रहे हैं, जिन्हें किसी न किसी वजह से कमतर बनाए रखा गया। लेकिन संभव है, राहुल गांधी जोकि सदैव से पार्टी के सर्वेसर्वा हैं, अब इस बात को समझने लगे हैं कि पार्टी के संगठन को निचले स्तर से मजबूत किया जाना चाहिए। पार्टी को इसकी जरूरत है कि वह नए और भरोसेमंद चेहरों को सामने लेकर आए।

प्रदेश कांग्रेस के लिए यह भी शोचनीय है कि हरियाणा में विधानसभा चुनाव के बाद सरकार का गठन हुए तीन महीने से भी ज्यादा वक्त हो चुका है लेकिन अभी तक नेता विपक्ष का चयन पार्टी नहीं कर पाई है। इसके लिए भी क्या प्रदेश का संगठन ही वजह नहीं है, क्योंकि पार्टी नेतृत्व को प्रदेश संगठन ने हतोत्साहित किया है। इस बार प्रदेश में कांग्रेस की जीत दीवार पर लिखी हुई जान पड़ रही थी। फिर एकाएक सब बदल गया और यह दो-तीन दिनों के अंदर हुआ। कांग्रेस नेतृत्व की यह विवशता हो सकती है कि वह घूम-फिर कर उन्हीं चेहरों को सामने ले आता है, जोकि अभी तक पार्टी का फेस बने हुए थे। निश्चित रूप से किसी अन्य प्रदेश से चेहरे नहीं लाए जा सकते। हालांकि यह उपाय तो किया ही जा सकता है कि पार्टी संगठन में सख्त अनुशासन लाया जाए। गुटबाजी को खत्म किया जाए और कुछ नए चेहरों पर भरोसा कर उन्हें काम सौंपा जाए। यह सब महज कहने भर से नहीं होगा। दरअसल, कांग्रेस के लिए हरियाणा एक अहम राज्य है, क्योंकि यहां दो पार्टी प्रणाली लागू हो चुकी है। भविष्य के लिए कांग्रेस को अपनी तैयारियों को मजबूत बनाना ही होगा। 

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