Editorial: किसान संगठन मानने को तैयार तो केंद्र भी समझे हालात
- By Habib --
- Tuesday, 03 Dec, 2024
If the farmer organization is ready to accept then the center should also understand the situation
If the farmer organization is ready to accept then the center should also understand the situation: बदले हालात में पंजाब और उत्तर प्रदेश के किसानों का दिल्ली की ओर मार्च यह बताने को काफी है कि किसान संगठन एक बार फिर अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिए लामबद्ध हो गए हैं। आजकल संसद सत्र जारी है और किसान कह रहे हैं कि वे सरकार को अपनी आपबीती सुनाने जाना चाहते हैं। जमीन के मुआवजे की मांग को लेकर यूपी से आ रहे किसानों की वजह से दिल्ली बॉर्डर पर जहां पांच किलोमीटर लंबा जाम लग गया वहीं पंजाब के शंभू बॉर्डर से दिल्ली जाने की तैयारी में बैठे किसान अब पैदल ही सफर करने को राजी हो गए हैं।
हालांकि इससे पहले वे ट्रैक्टर-ट्राली लेकर जाने की जिद पर अड़े थे। हरियाणा सरकार की ओर से भी इसका प्रस्ताव दिया गया था कि आंदोलनकारी किसान पैदल ही दिल्ली जाएं। हालांकि नए संदर्भों में अंबाला पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट के यथास्थिति बनाए रखने का हवाला देते हुए पैदल मार्च की इजाजत देने पर भी संशय पैदा कर दिया है। लेकिन खनौरी में मरणव्रत पर बैठे किसान नेता के मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से आए यह निर्देश सही हैं कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन का हक है, लेकिन हाईवे बाधित न करें। निश्चित रूप से केंद्र सरकार एवं किसानों के बीच बातचीत का सिलसिला पुन: शुरू किए जाने की जरूरत है। किसान अगर अपनी जिद छोड़ते हुए आगे जाना चाहते हैं तो सरकार को भी इस पर विचार करना चाहिए। क्योंकि अपनी मांगों को लेकर धरना-प्रदर्शन का हक तो लोकतांत्रिक देश में मिलेगा ही, तब फिर किसी को सडक़ से पैदल होकर गुजरने से भी कैसे रोका जा सकता है।
वास्तव में शंभू बॉर्डर पर बैठे किसान आंदोलनकारियों का यह निर्णय स्वागत योग्य है कि किसान संगठन ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में नहीं अपितु जत्थे बनाकर दिल्ली जाएंगे। केएमएम और एसकेएम ने संयुक्त रूप से इसका निर्णय लिया है। गैर राजनीतिक किसान संगठनों की यह सोच उचित है कि जिस बात से हरियाणा को परेशानी है, उसके बजाय दूसरे रास्ते अपनाते हुए दिल्ली जाया जाए और अपनी बात रखी जाए। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ जब आंदोलन चल रहा था तो वह इस क्षेत्र के लोगों के लिए नई बात थी। उस समय किसानों का जनता ने भी भरपूर समर्थन किया था, लेकिन फिर समय के साथ आंदोलन की खामियां भी सामने आती गई और यह भी साबित हो गया कि किसानों की हठ की वजह से दूसरे लोगों को कितना नुकसान झेलना पड़ा। सडक़ जाम करके अपनी मांगों को पूरा करने की जिद करना किसी भी प्रकार से उचित नहीं ठहराया जा सकता। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट इस संबंध में बहुत स्पष्ट शब्दों में कह चुका है। हालांकि किसान संगठनों ने इसे अपना संवैधानिक अधिकार समझ लिया है कि वे सडक़ भी जाम करेंगे और अपनी मांगों को भी मनवाएंगे। दरअसल, संभव है कि किसान संगठनों को अब यह बात समझ आ गई है कि अपनी बातों को सरकार तक पहुंचाने के लिए उन्होंने जोर-जबर का नहीं अपितु गांधीवादी तरीका अपनाना होगा।
किसान संगठनों ने दिल्ली में जंतर-मंतर और रामलीला ग्राउंड में आंदोलन की इजाजत मांगी है। अब बेशक, यह विषय भी सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण होने वाला है। शंभू बॉर्डर पर किसानों को रोककर हरियाणा सरकार ने केंद्र सरकार को राहत प्रदान की थी। अब हरियाणा में विधानसभा चुनाव हो चुके हैं और केंद्र में भी भाजपा नीत गठबंधन सरकार काबिज है। ऐसी स्थिति में किसानों को भी अपनी मांगों को केंद्र तक पहुंचाने और उसे मजबूर करने का कोई और माध्यम प्राप्त नहीं रह गया है। इस साल फरवरी से शंभू बॉर्डर पर बैठे किसानों में बहुत से उकता चुके हैं और वापस भी लौट चुके हैं। किसान संगठनों के सामने अपने नेतृत्व की स्वीकार्यता बनाए रखने की भी चुनौती है।
यानी आंदोलन चलता रहेगा और मांगों पर चिंतन-मनन होता रहेगा तो किसान अपने नेताओं पर भरोसा करते रहेंगे, वरना वे भी पीछे हट जाएंगे। निश्चित रूप से इस मामले पर कुछ भी निर्णयात्मक नहीं कहा जा सकता कि एक सरकार को अपने राज्य में अशांति पैदा होने देने की स्थिति के बावजूद नरम रवैया अपनाना चाहिए। जब भी आंदोलन और इसी तरह के मामले सामने आते हैं, तो नियम-कायदे और पाबंदियों की दुहाई दी जाती है। पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने शंभू बॉर्डर को आंशिक रूप से खोलते हुए दोनों सरकारों से इस मामले के समाधान का रास्ता निकालने को कहा था। निश्चित रूप से हरियाणा के लिए यह चुनौतीपूर्ण है। दरअसल, किसान संगठनों की बात सुनी जानी चाहिए। किसान नेता जत्थों में दिल्ली जाने को तैयार हैं और व्यवस्था के न बिगड़ने देने का भी विश्वास दिला रहे हैं। केंद्र सरकार की ओर से भी बातचीत का पहले विश्वास दिलाया जाता रहा है, जाहिर है अब वह समय आ गया है।
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