If Chandigarh's industrial and commercial properties were converted from leasehold to freehold, the administration would have received more than Rs 1,000 crore in lump sum

अगर चंडीगढ़ की इंडस्ट्रियल व व्यापारिक प्रॉपर्टी लीज होल्ड से फ्री होल्ड होती, प्रशासन को एकमुश्त मिलता एक हजार करोड़ से ज्यादा

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If Chandigarh's industrial and commercial properties were converted from leasehold to freehold, the

उद्योगपतियों की दलील, चंडीगढ़ प्रशासन व केंद्रीय गृह मंत्रालय का यहां के मसलों के प्रति रवैया नकारात्मक


If Chandigarh's industrial and commercial properties were converted from leasehold to freehold, the administration would have received more than Rs 1,000 crore in lump sum: चंडीगढ़। चंडीगढ़ प्रशासन के नकारात्मक रवैये की वजह से केंद्र सरकार ने इंडस्ट्रियल व कमर्शियल प्रापर्टी को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में उद्योगपतियों व व्यापारियों के हितों के खिलाफ हलफनामा दिया। प्रशासन चंडीगढ़ के उद्योगपतियों व व्यापारियों से जुड़ी इस बड़ी मांग की केंद्रीय गृह मंत्रालय के समक्ष सही तरीके से पैरवी नहीं कर सका जिससे अब मसला हल होने की आस क्षीण हो गई है। चंडीगढ़ प्रशासन को गृह मंत्रालय की ओर से दिये गए हलफनामे की ऐवज में बड़ा खामियाजा भी उठाना पड़ेगा। अगर लीज पर चल रही करीब 1400 इंडस्ट्रियल प्रापर्टी को फ्री होल्ड किया जाता तो एक यूनिट से 50 से 70 लाख एकमुश्त मिलते और अंदाजन एक हजार करोड़ रुपये की आमदन एकसाथ प्रशासन की झोली में होती लेकिन अब चूंकि मामला लटकता दिख रहा है लिहाजा 99 साल की लीज पर इन 1400 प्रापर्टी से प्रशासन को हर साल महज 10 लाख रुपये की इनकम ही मिल पायेगी।
    चंडीगढ़ के इंडस्ट्रियलिस्टों के मुताबिक केंद्रीय गृह मंत्रालय से सर्वोच्च न्यायालय में केवल यह पूछा गया था कि इंडस्ट्रियल व कमर्शियल प्रापर्टी को लीज होल्ड से फ्री होल्ड कैसे करना है। यानि उनसे इसे करने का महज फार्मूला पूछा गया था। चंडीगढ़ प्रशासन या मंत्रालय से यह तो पूछा ही नहीं गया था कि इस मसले को लेकर हां करनी है या ना, लेकिन मंत्रालय ने तो इस पर बिलकुल ना करने की मंशा जाहिर कर दी। उद्योगपतियों के अनुसार मंत्रालय ने जो हलफनामा कोर्ट में दिया अब उसके खिलाफ भी नए सिरे से इंडस्ट्रियलिस्ट कानूनी रणनीति तैयार कर रहे हैं। उद्योगपतियों की दलील है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय और चंडीगढ़ प्रशासन दोनों की भूमिका संदेह के दायरे में है। दोनों जगह से उनके हक की बात नहीं की गई, उल्टा उनके खिलाफ हलफनामा दिया गया जिससे लगता है कि सरकार और प्रशासन का बिलकुल नकारात्मक रवैया है। दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में लीज होल्ड से फ्री होल्ड का मसला निपटा दिया गया है तो चंडीगढ़ में यह क्यों नहीं निपटाया जा सकता। उद्योगपतियों के प्रतिनिधि नवीन मंगलानी के अनुसार 1973 में लीज शुरू हुई थी। 1983 के बाद कोई प्लाट प्रशासन ने आवंटित नहीं किया। कुल 1900 प्रापर्टी थी जिसमें से अब 1400 से ज्यादा लीज होल्ड हैं। 2010 तक को प्रशासन की इसे लेकर कोई पॉलिसी ही नहीं थी। अलॉटियों ने पॉवर ऑफ अटार्नी पर ही प्रापर्टी को बेचा लेकिन इसमें भी प्रशासन ट्रांसफर के एक करोड़ की मांग करने लगा। अगर एक कनाल का प्लाट 3.5 करोड़ में ट्रांसफर किया तो इसकी ऐवज में 1 करोड़ प्रशासन को देना पड़ेगा। जो हालात प्रशासन ने बना रखे हैं, ऐसे में तो यहां से इंडस्ट्री दूसरे राज्यों को भाग जाएगी।

एमएचए की कार्रवाई से लगा झटका 

इंडस्ट्रियल एरिया में होटल जगत से जुड़े पूर्व पार्षद व उद्योगपति एनपीएस चावला का कहना है कि एमएचए की इस कार्रवाई से झटका लगा है। गृह मंत्रालय से इस तरह के सौतेले व्यवहार की उम्मीद नहीं थी। प्रशासक बनवारी लाल पुरोहित ने उद्योगपतियों को कई बार आश्वासन दिया कि उन्होंने सकारात्मक सिफारिश की है और इसे मंजूरी के लिए गृह मंत्रालय को भेजा गया है। लीज होल्ड टू फ्री होल्ड नीति पूरे देश में लागू है। क्या विशेष कारण रहा कि पूरे चंडीगढ़ शहर को इस प्रकार का ट्रीटमेंट दिया गया। यहां तक कि गृह मंत्रालय द्वारा सुप्रीम कोर्ट को दिए गए पहले हलफनामे में भी कहा गया था कि सरकार कनवर्जन फॉर्मूले पर काम कर रही है।  हर समय यही लगा कि चंडीगढ़ प्रशासन के साथ-साथ एमएचए, चंडीगढ़ के लिए औद्योगिक भूखंडों को लीजहोल्ड से फ्री होल्ड में बदलने के पक्ष में था। आखिऱ में हमें यह लग रहा था कि गृह मंत्रालय कनवर्जन रेट फ़ॉर्मूले पर काम कर रहा है और जल्द ही इसकी घोषणा की जाएगी।

इंडस्ट्री के बहुत मसले हैं पैंडिंग

चैंबर ऑफ चंडीगढ़ इंडस्ट्री के प्रेसिडेंट सुरेंद्र गुप्ता, वाइस प्रेसिडेंट नवीन मंगलानी, चंडीगढ़ इंडस्ट्रीज कनवर्टिड प्लॉट ओनर्स एसोसिएशन के चेयरमैन चंद्र वर्मा, इंडस्ट्रियल शैड वेलफेयर एसोसिएशन के चेयरमैन अवि भसीन और इंडस्ट्री एसोसिएशन ऑफ चंडीगढ़ के प्रेसिडेंट अरुण महाजन का कहना है कि इंडस्ट्री से जुड़े बहुत सारे मसले पैंडिंग हैं लेकिन सोमवार को प्रशासन व गृह मंत्रालय के रवैये से उन्हें निराशा हाथ लगी है। विभिन्न एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने बताया कि 2015 से इंडस्ट्रियल पॉलिसी लागू है। एमएसएमई एक्ट लागू होने के साथ इंडस्ट्रियल व कमर्शियल प्रापर्टी को लीज होल्ड से फ्री होल्ड करना बड़ा मसला था। बहुत से मामलों में कानूनी प्रक्रिया चल रही है। मिसयूज वायलेशन का भी इश्यू है। 500 रुपये प्रति फुट के हिसाब से प्रशासन पैनेल्टी लगा रहा है जो सही नहीं है। गारबेज सैस एक अन्य इश्यू है।

ईज ऑफ डुइंग की केवल बातें

सुरेंद्र गुप्ता व नवीन मंगलानी के मुताबिक ईज ऑफ डुइंग बिजनेस की केवल बातें हैं लेकिन असलियत में इसमें चंडीगढ़ प्रशासन बिलकुल लॉस्ट में है। मसले हल न होने से इंडस्ट्री से जुड़े लोग यहां से दूसरे राज्यों के शहरों में शिफ्ट हो रहे हैं। 1982 के बाद किसी को कोई प्लॉट नहीं दिया गया। एफएआर का मसला भी एक बड़ा मसला है।

पंचकूला व मोहाली को दौड़ रही इंडस्ट्री

पंचकूला व मोहाली में एफएआर चंडीगढ़ से काफी ज्यादा है जिससे इंडस्ट्री उधर जा रही है। समय के साथ चंडीगढ़ प्रशासन ने कोई बदलाव पॉलिसी में नहीं किया। प्रशासन को हल निकालना होगा कि एफएआर कैसे बढ़ायें। इनका कहना है कि प्रशासन इंडस्ट्री इनफ्रास्ट्रक्चर पर कुछ खर्च नहीं कर रहा। एलांते माल के आसपास जो भी इंडस्ट्री है वहां ट्रक तक की मूवमेंट मुश्किल से हो पाती है। अन्य कई जगहों पर इस तरह के मसले हैं। ज्वाइंट एक्शन कमेटी से जुड़े इन सभी विभिन्न पदाधिकारियों ने बताया कि इंडस्ट्रियल एरिया एक व दो में 1900 प्लॉट हैं और 2200 से 2500 तक यूनिट हैं जिसमें से मसलों का हल न होने के चलते 400 से 500 तक दूसरे राज्यों को मूव कर गये हैं। अभि भसीन ने बताया कि 2005 में पहले सबके लिये कनवर्जन पालिसी दी गई थी जिसे बाद में महज 150 प्लाटों के लिए कर दिया गया। ये प्लाट 2 कनाल से ज्यादा के थे। यानि छोटे प्लाट मालिकों को इससे महरूम कर दिया गया। अभि भसीन के मुताबिक इसे सबके लिये खोलना चाहिए ताकि सबको लाभ मिले। छोटे प्लाट वालों के तो प्रशासन ने पैसे भी वापिस कर दिये थे। इस मसले में प्रशासन के खिलाफ कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं। अभि भसीन ने बताया कि ऑटोमोबाइल एसोसिएशन को 2015 में काम करने का अधिकार दिया लेकिन इसे बी 2 बी तक बाद में सीमित कर दिया। यानि गाड़ी बेचने को तो मंजूरी है लेकिन स्पेयर पार्ट बेचना अलाऊड नहीं। 

एक प्लेटफार्म पर एकत्रित हुए  थे उद्योगपति

चंद्र वर्मा, अभि भसीन, नवीन मंगलानी, अरुण महाजन व सुरेंद्र गुप्ता का कहना है कि इंडस्ट्रियल एरिया एक व दो में ज्वाइंट एक्शन कमेटी बना दी गई थी जो सभी छोटी-बड़ी इंडस्ट्री की सांझा लड़ाई लड़ रही थी। हर मसले को इसी फोरम के जरिये सुलझाये जाने का फैसला किया गया। प्रशासन से मिलकर सारे मसले सुलझाने की दिशा में प्रयास हो रहे थे।

पंचकूला व मोहाली दौड़ रहा उद्योग ईज ऑफ डुइंग बिजनेस में चंडीगढ़ सबसे पीछे 

चंडीगढ़ में भले ही प्रशासन ईज ऑफ डुइंग बिजनेस का ढ़ोल पीटे लेकिन असलियत यह है कि शहर से इंडस्ट्री पंचकूला, मोहाली व अन्य साथ सटते राज्यों को शिफ्ट हो रही है। वजह है प्रशासन की ओर से कई सारे मसलों को बरसों से लटकाये रखना जिन्हें सुलझाने की इंडस्ट्री से जुड़े लोग मांग कर रहे हैं। चंडीगढ़ प्रति कैपिटा इनकम, क्वालिटी ऑफ इंडेक्स में सबसे आगे है लेकिन ईज ऑफ डुइंग बिजनेस में लॉस्ट है क्योंकि इंडस्ट्री से जुड़े लोग त्रस्त हैं। उद्योगपतियों के अनुसार प्रशासन को मसलों का जल्द हल निकालना चाहिए।

ये हैं मुख्य मसले

-    एमएसएमई से जुड़ा मसला
-    लीज होल्ड से फ्री होल्ड
-    एमसी से जुड़े फायर, पानी व गारबेज सैस के मसले
-    मिसयूज वायलेशन से जुड़े मामले
-    सिटको के शैड
-    वैट स्कीम में वन टाइम सैटलमेंट
-    टैंपरेरी शैड
-    प्रदूषण से जुड़ा मसला
-    कलेक्टर रेट कम करने का मामला
-    ऑटोमोबाइल से जुड़ी इंडस्ट्री को नोटिस भेजे जाने का मामला
-    जीएसटी का मसला
-    कनवर्जन पालिसी