अपने फायदे के लिए जनता को मुश्किल में डालना कितना उचित?
- By Krishna --
- Friday, 18 Nov, 2022
How fair is it to put the public in trouble?
How fair is it to put the public in trouble? : किसान आंदोलन की आहट (The sound of farmer's movement) अगर फिर से सुनाई देने लगी है तो यह केंद्र एवं राज्य सरकारों के सचेत होने का समय है। आंदोलन को खत्म कराते समय केंद्र की ओर से किए गए वादे पूरे न होने की टीस लिए किसान फिर से एकजुट (Farmers united again) होना शुरू हो गए हैं। संयुक्त किसान मोर्चा (United Kisan Morcha) ने इसे विरोध के अगले चरण की शुरुआत बताया है। वहीं हरियाणा में भी किसान संगठन सक्रिय हो गए हैं। हरियाणा ने किसान आंदोलन के दौरान सबसे ज्यादा त्रासदी झेली है, क्योंकि पंजाब से किसानों के लगातार आवागमन से जहां सुरक्षा व्यवस्था (Security system) की समस्या रही वहीं कुंडली और टिकरी बॉर्डर पर किसानों के जमावड़े से कारोबार प्रभावित हुआ। ऐसे में अब फिर से किसानों के उठ खड़े होने से जनजीवन के अस्त व्यस्त होने की आशंका पैदा हो गई है। पिछले दिनों शाहाबाद में भारतीय किसान यूनियन (Indian Farmer's Union) ने अपनी मांगों को लेकर हाईवे जाम कर दिया था और यह मामला पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए पहुंचा था। इस दौरान हाईकोर्ट ने प्रशासन को डांट लगाते हुए कहा था कि हाईवे को बाधित करने की छूट किसी को नहीं दी जा सकती।
तीन कृषि कानूनों (Three agricultural laws) के खिलाफ किसानों का आंदोलन (Farmers movement) आज के दौर का सबसे बड़ा आंदोलन था। 24 नवंबर 2020 को पंजाब के किसानों ने इसकी शुरुआत करते हुए हरियाणा में अम्बाला के पास बैरिकेड तोड़ दिए थे और दिल्ली की तरफ बढ़ गए थे। इस आंदोलन की सफलता (Success of the movement) ने जहां किसानों के मनोबल (Morale of farmers) को आसमान के स्तर पर पहुंचा दिया वहीं केंद्र सरकार ने भी राहत की सांस ली थी। हालांकि अब उन मांगों को पूरा कराने के लिए किसान फिर से सक्रिय हुए हैं तो यह अनुचित भी नहीं कहा जा सकता। तमाम मांगों में एमएसपी की कानूनी गारंटी (Legal guarantee of MSP) सर्व प्रमुख रही है। केंद्र सरकार ने तीनों कानूनों को वापस लेने, किसानों पर दर्ज केस खारिज करने समेत अनेक मांगों को पूरा कर दिया था लेकिन एमएसपी को कानूनी गारंटी की मांग अब भी अधूरी है। किसान अब अपने कर्ज भी माफ करवाना चाहते हैं, वहीं केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र टेनी (Union Minister Ajay Mishra Teni) को बर्खास्त कर कानूनी कार्रवाई की भी उनकी डिमांड है। इसके अलावा प्राकृतिक आपदाओं से फसल बर्बाद होने पर किसानों को शीघ्र क्षतिपूर्ति के लिए व्यापक एवं प्रभावी फसल बीमा योजना भी किसान चाहते हैं। संयुक्त किसान मोर्चा की मांग यह भी है कि मध्यम, छोटे व सीमांत किसानों व कृषि श्रमिकों को पांच हजार रुपये पेंशन दी जाए। इन मांगों में ज्यादातर मांगें वाजिब हैं।
हालांकि किसान मोर्चा (Kisan Morcha) ने अपनी गतिविधियां फिर शुरू कर दी हैं, वहीं भाकियू चढ़ूनी ने 24 नवंबर को जीटी रोड जाम करने का ऐलान किया है, यह किसान संगठन किसानों पर दर्ज केस वापस लेने की मांग कर रहा है वहीं अन्य फरमाइश भी हैं। यह तब है, जब उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला (Deputy Chief Minister Dushyant Chautala) दावा कर रहे हैं कि हत्या, रेप आदि मामलों में दर्ज केस के अलावा सभी अन्य एफआईआर रद्द की जा चुकी हैं, वहीं कुछ मामलों को वापस लेने की अदालत के जरिए प्रक्रिया जारी है। इसके अलावा गृहमंत्री अनिल विज (Home Minister Anil Vij) भी दावा कर रहे हैं कि ज्यादातर केस रद्द हो चुके हैं या फिर वापस लेने की प्रक्रिया में है। लेकिन भाकियू चढ़ूनी का कहना है कि अब भी 294 केसों के अलावा आंदोलन के पहले के सभी केस वापस नहीं लिए गए हैं। जाहिर है, सरकार और संगठन के अपने-अपने दावे और प्रतिदावे हैं। सरकार का यह कथन अपनी जगह सही हो सकता है कि केस वापस लेने की प्रक्रिया जारी है, क्योंकि सरकार अदालत को निर्देशित नहीं कर सकती। ऐसे में किसानों का दबाव बनाते हुए जीटी रोड जाम करने का ऐलान हालात की गंभीरता को नहीं समझना है। हरियाणा में तो आंदोलन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर संबंधित की संपत्ति जब्त करने का भी कानून है, क्या आंदोलनकारी ही हर बार सही हो सकते हैं, यानी उन्हें सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की भी इजाजत मिले और फिर पुलिस केस को खारिज कराने की उनकी मांग भी मानी जाए।
वैसे यह भी विडम्बना पूर्ण है कि किसान एक तरफ अपने आंदोलन के अगले चरण की घोषणा कर रहे हैं, दूसरी ओर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Union Agriculture Minister Narendra Singh Tomar) एमएसपी पर कमेटी गठित करने की जानकारी दे रहे हैं। उन्होंने दावा किया है कि सरकार कृषि सुधार के लिए अहम कदम उठा रही है। वास्तव में किसान संगठनों को किसी भी अतिरेक पूर्ण कदम को उठाने से पहले केंद्र सरकार के समक्ष अपनी मांगों को दोहराना चाहिए। वहीं केंद्र को भी किसान संगठनों को विश्वास में लेना होगा। रोड जाम करके बैठना जनसामान्य के जीवन को दूभर करता है, अपने फायदे के लिए जनता को मुश्किल में डालना अनुचित है।
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