Editorial: लोकतंत्र में नेताओं के लिए अलग कानून कैसे हो सकता है?
- By Habib --
- Friday, 07 Apr, 2023
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How separate law for leaders in a democracy
How can there be separate law for politicians in a democracy? देश के 14 विपक्षी दलों की सर्वोच्च न्यायालय में अर्जी खारिज होना सामान्य बात नहीं है, यह तब है, जब इन राजनीतिक दलों में तमाम वरिष्ठ अधिवक्ता और बौद्धिक जुड़े हैं। केंद्र सरकार पर केंद्रीय जांच एजेंसियों सीबीआई और ईडी का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए गिरफ्तारी और जमानत के बारे में दिशा निर्देश तय करने की मांग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय गए इन 14 राजनीतिक दलों को जो जवाब माननीय शीर्ष अदालत से मिला है, वह निश्चित रूप से इन दलों के लिए सबक है, वहीं देश में न्यायपालिका के स्वतंत्र होने का भी सबूत है। निश्चित रूप से न्यायपालिका के दरवाजे सभी के लिए खुले हैं, लेकिन विपक्षी राजनीतिक दलों के द्वारा सरकार पर आरोप लगाते हुए न्यायपालिका के इस्तेमाल की कोशिश अनुचित और अपने पद एवं प्रभाव का गलत प्रयोग करने की चाह दिखाती है।
माननीय शीर्ष अदालत का यह कहना एकदम जायज है कि नेताओं के लिए अलग कानून नहीं है। राजनेताओं को सामान्य नागरिकों से ज्यादा छूट नहीं मिली हुई है। अदालत ने कहा कि सिर्फ राजनेताओं का मुद्दा उठाने वाली इस याचिका पर गिरफ्तारी और जमानत के बारे में दिशा-निर्देश तय करने का आदेश नहीं दे सकते।
गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों के दौरान संसद से सडक़ तक जिस प्रकार से विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है, वह अप्रत्याशित है। इन 14 राजनीतिक दलों में लगभग सभी दलों में कभी नहीं बनी है। सभी ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा है। अगर कभी गठबंधन किया है तो वह बीच में टूट गया। लेकिन अब जब सीबीआई या प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई कर रही है तो इन विपक्षी राजनीतिक दलों ने एकजुटता दिखानी शुरू कर दी। सामान्य व्यक्ति पर अगर आरोप लगेें और उसे सजा हो जाए तो उसे तुरंत जेल जाना होगा।
हालांकि राजनेताओं ने अपने आप को ऐसे सुरक्षा चक्र से घेर रखा है, कि कोई अदालत उन्हें सजा नहीं सुना सकती। क्योंकि वे कभी अपनी गलती स्वीकार नहीं करेंगे। अपराधी घोषित किए जाने के बावजूद वे सडक़ों पर रोड शो करते हुए अपनी राजनीतिक ताकत का प्रदर्शन करते हैं और फिर खुद के लिए और सुरक्षित आवरण चाहते हुए सर्वोच्च न्यायालय में जांच एजेंसियों के खिलाफ नियम बनाने की मांग करते हैं।
हालांकि विपक्ष के इस आरोप पर गौर फरमाया जाना चाहिए कि साल 2014 से लेकर 2022 तक ईडी ने 121 राजनीतिक नेताओं की जांच की है, और इनमें से 95 फीसदी विपक्षी दलों से है। विपक्षी दल इस आंकड़े को बताकर क्या यह कहना चाहते हैं कि प्रवर्तन निदेशालय केवल विपक्षी राजनीतिक दलों पर ही कार्रवाई कर रहा है। जाहिर है, ऐसे राजनीतिक आरोप सामने आएंगे ही, लेकिन सच्चाई यह भी है कि अभी तक विपक्षी राजनीतिक दलों की ही सरकारें रही हैं, उस दौरान जो घोटाले, घपले हुए उनकी जांच करवाता कौन? यह कहा जा सकता है कि राजनीति में दूध के धुले नहीं मिल सकते, लेकिन यह संभव है कि अभी तक कुछ लोगों ने खुद को भ्रष्टाचार के कीचड़ से बचा रखा हो।
हालांकि फिर भी अनेक ऐसे नेता हैं, जोकि एक समय विपक्ष में रहते हुए भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे थे, लेकिन फिर सत्ता पक्ष में आकर वे साफ-सुथरे हो गए। यह सब राजनीतिक खेल है, जिसके हाथ लाठी होती है, वह उसे अपने मुताबिक इस्तेमाल में लाता है। बावजूद इसके यह जरूरी है कि भ्रष्टाचार की रोकथाम हो और इस अपराध को उजागर कर उन संबंधित के खिलाफ कार्रवाई हो जोकि इसे अंजाम देते हैं। ऐसे लोग या नेता फिर किसी भी तरफ हों, उन पर एक्शन जरूरी है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि मोदी सरकार आने के बाद सीबीआई और ईडी के मामलों में 600 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, यह अपने आप में सराहनीय प्रयास है। हालांकि सभी जानते हैं कि देश में आरोपों को झुठलाना और गवाहों को अपने पक्ष में करके अदालत से बच निकलना भी मुश्किल कार्य नहीं है।
भ्रष्टाचार के अनेक ऐसे मामले हैं, जिनमें हजारों करोड़ की रिश्वत ली और दी गई लेकिन उनके बारे में लगातार जांच के बावजूद कुछ हासिल नहीं हो सका। तब यह कहना सही नहीं है कि कुछ था ही नहीं। सीबीआई और ईडी ने केवल परेशान करने के लिए जांच के नाम पर यह कदम उठाया। इस प्रकरण में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कोई इच्छित दिशा निर्देश देने से इनकार करके सही ही किया है, अगर ऐसा होता है तो यह कानूनी प्रक्रिया को अवरोधित करने का प्रयास होगा। लोकतंत्र में कानून सभी के लिए समान हैं, फिर वह एक सामान्य नागरिक हो या फिर एक राजनीतिक दल से जुड़ा कोई नेता, कार्यकर्ता ।
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