हरियाणा चुनाव में फिर वही अहम सवाल; चौधर की जंग में कौन मारेगा बाजी, इस बार किसका दबदबा, दिलचस्प रही है हरियाणवी राजनीति
Haryanvi Politics History Haryana Vidhan Sabha Chunav 2024
Haryana Assembly Election 2024: हरियाणा में 1 अक्टूबर को 90 सदस्यीय विधानसभा सदस्य चुनने के लिये मतदान होने जा रहा है। ये सवाल सबके जहन में है कि इस मर्तबा हरियाणा की राजनीति पर किसका दबदबा रहेगा। हरियाणवी में कहें तो इस मर्तबा किसकी और कौन से इलाके की चौधर होगी? हरियाणा की राजनीति में यहां के विभिन्न इलाकों की भी प्रतिद्वंदिता समय समय पर उभर कर सामने आई है। देसवाली, बागड़ी (बागर), बांगड़, अहीरवाल, मेव और नारदक के अलावा, ब्रज के एक छोटे हिस्से जैसी क्षेत्रीय बेल्टें मतदान का पैटर्न रही हैं। दूसरी तरफ यह राजनीतिक आकांक्षाओं और मुखरता का संकेत भी देती हैं।
बागड़ी बेल्ट में वर्तमान में ज्यादातर सिरसा जिले में चौटाला, आदमपुर (हिसार) में कुलदीप बिश्नोई और तोशाम खंड में पूर्व सीएम बंसी लाल की बहू किरण चौधरी का वर्चस्व है। ऐतिहासिक रूप से, 1966 में हरियाणा के अस्तित्व में आने के बाद से हिसार और रोहतक क्षेत्रों का राजनीतिक प्रभुत्व रहा है। पुराना हिसार जिला, जिसमें हिसार, सिरसा, फतेहाबाद और भिवानी जिले शामिल हैं, लगभग 37 वर्षों तक सत्ता का केंद्र था। 10 साल तक हुड्डा के सीएम कार्यकाल के दौरान और पहले सीएम पंडित भगवत दयाल शर्मा, जो झज्जर से विधायक थे के चार महीने तक रोहतक सत्ता का केंद्र था।
2014 में भाजपा के सत्ता में आने के साथ, पार्टी ने इस पैटर्न को तोडऩे की कोशिश की और मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाया। हालांकि, खट्टर रोहतक जिले (निंदना गांव के मूल निवासी) से हैं, लेकिन उन्होंने अपना राजनीतिक आधार करनाल विधानसभा क्षेत्र में स्थानांतरित कर दिया। भाजपा की चाल फायदेमंद साबित हुई क्योंकि पार्टी जीटी रोड के किनारे के जिलों में अधिकतम सीटें जीतने में सफल रही।
अब, भाजपा ने नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाकर सत्ता केंद्र को अंबाला जिले में स्थानांतरित करने की पहल की है। नर्दक क्षेत्र में बाहरी राजनीतिक नेताओं को अंबाला, कुरुक्षेत्र और करनाल से लोकसभा चुनाव में सफलता मिली है। कुमारी शैलजा दो बार अंबाला से सांसद रही। कुरुक्षेत्र सीट पर मनोहर लाल सैनी, हरपाल सिंह, नवीन जिंदल और अभय चौटाला जैसे दिग्गजों ने जीत हासिल की है। करनाल से पूर्व सीएम भजन लाल, अश्वनी चोपड़ा और मनोहर लाल खट्टर को सफलता मिली है।
उधर बागड़ी और देसवाली क्षेत्रों में छोटू राम (स्वतंत्रता पूर्व युग), देवी लाल और रणबीर सिंह (भूपिंदर सिंह हुड्डा के पिता) जैसे नेता थे। उन्होंने लोगों की आकांक्षाओं को मजबूत किया और बाद में, तीन लाल और हुडा के राजवंशों ने जड़ें जमा ली। बांगड़ और अहीरवाल क्षेत्रों में भी सत्ता केंद्र बनने की आकांक्षाएं हैं। अहीरवाल में राव इंद्रजीत सिंह और बांगड़ में बीरेंद्र सिंह और रणदीप सिंह सुरजेवाला जैसे नेता संभावित सीएम हैं। सत्ता केंद्र को नारदक बेल्ट में स्थानांतरित करना भाजपा की एक राजनीतिक रणनीति थी जो सफल साबित हुई। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार क्षेत्रीय भेदभाव से अधिक,क्षेत्रीय क्षत्रपों की चौधर के लिए संघर्ष हुआ है, जो चुनाव के दौरान आम जनता के बीच भी दिखाई देता है।
ये हैं हरियाणा के प्रमुख इलाके
देसवाली इलाका रोहतक, सोनीपत और झज्जर जिलों के साथ-साथ पानीपत और हिसार के प्रमुख हिस्सों में फैला हुआ है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा देसवाली बेल्ट में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हैं। भाजपा ने इस क्षेत्र में पूर्व मंत्री ओम प्रकाश धनखड़ और कैप्टन अभिमन्यु को अपने प्रमुख चेहरों के रूप में पेश करने की कोशिश की है। देसवाली बेल्ट में रोहतक, झज्जर, सोनीपत और पानीपत जिलों की 23 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें हिसार जिले की पांच सीटें शामिल हैं। बागड़ी बेल्ट में सिरसा, भिवानी और फतेहाबाद जिले और राजस्थान सीमा से सटे हिसार के कुछ हिस्से शामिल हैं। यह लंबे समय तक राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रहा है क्योंकि भजन लाल, बंसी लाल, देवीलाल, ओम प्रकाश चौटाला, बनारसी दास गुप्ता और हुकम सिंह सहित इस क्षेत्र के कई नेता मुख्यमंत्री बने रहे।
बागड़ी बेल्ट में सिरसा, भिवानी और फतेहाबाद में 14 सीटें हैं; और हिसार जिले के दो विधानसभा क्षेत्र नलवा और आदमपुर भी शामिल हैं। नारदक बेल्ट में अंबाला, करनाल, कुरूक्षेत्र और पंचकूला जिले की 19 सीटें हैं। बांगड़ बेल्ट का केंद्र जींद जिले के नरवाना उपखंड में है और यह जींद और कैथल जिलों में फैला हुआ है। इसमें नौ सीटें शामिल हैं। मेव एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है जिसमें नूंह जिला शामिल है और गुरुग्राम जिले के सोहना विधानसभा क्षेत्र और पलवल जिले के हथीन खंड में भी मेवाती संस्कृति की महत्वपूर्ण उपस्थिति है।
देवीलाल, बंसीलाल और भजनलाल से जुड़े रहे राजनीतिक कार्यकर्ताओं की दलील है कि सत्ता केंद्र बनने की क्षेत्रीय आकांक्षाओं की जड़ रोहतक और हिसार क्षेत्रों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से उपजती है। ये दोनों बेल्ट सीधे अंग्रेजों द्वारा शासित थे और कभी भी रियासतों के शासन के अधीन नहीं थे। नारदक और बांगड़ बेल्ट के अधिकांश क्षेत्र रियासतों द्वारा शासित थे इसलिए, हिसार और रोहतक क्षेत्रों के लोग पारंपरिक रूप से राजनीतिक रूप से मुखर रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मत है कि अहीरवाल लोग स्वतंत्रता सेनानी राव तुला राम के परिवार के प्रति वफादार रहते हैं। राव बीरेंद्र सिंह 1967 में थोड़े समय के लिए मुख्यमंत्री बने, तब से, यह क्षेत्र काफी हद तक राजनीतिक रूप से रामपुरा हाउस (राव बीरेंद्र सिंह के परिवार का घर) के प्रति वफादार रहा है। उनके बेटे राव इंद्रजीत सिंह छह बार (कांग्रेस और भाजपा से तीन-तीन बार) सांसद रहे हैं। अहीरवाल बेल्ट में महेंद्रगढ़, रेवाड़ी और गुरुग्राम (सोहना को छोडक़र) की 10 सीटें हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कुछ अपवादों को छोडक़र, पिछले कुछ वर्षों में क्षेत्रीय पहचान मजबूत हुई है। राजनीतिक नेता अपना आधार विकसित करते हैं और उसे मजबूत करते हैं। सीएम का गृह क्षेत्र हमेशा सत्ता केंद्र के रूप में उभरता है। हरियाणा में ज्यादातर सीएम हिसार और रोहतक से रहे हैं इसलिए, यहां का राजनीतिक दावा और दबदबा अधिक है।
तीन लालों ने क्षेत्रीय पहचान मजबूत की
राजनीतिक विश्लेषकों की दलील है कि तीन लालों के उदय से क्षेत्रीय पहचान मजबूत हुई। भजन लाल ने आदमपुर को पोषित किया, जबकि बंसी लाल की पहचान भिवानी जिले से थी। देवीलाल के परिवार का दबदबा आज भी सिरसा जिले में है। देसवाली बेल्ट के नाम से मशहूर पुराने रोहतक क्षेत्र में हुड्डा निर्विवाद नेता हैं। वे अपने क्षेत्र के लोगों के एक बड़े वर्ग से जुडऩे में सक्षम रहे क्योंकि विकास निधि और नौकरियां वहीं चली गई जहां सत्ता का केंद्र था।
2014 में जब कांग्रेस चुनाव हार गई तो हुड्डा को क्षेत्रीय पक्षपात के आरोपों का सामना करना पड़ा। अंबाला जिले के स्थानीय लोगों का कहना है कि हाल ही में स्थानीय नेता नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाए जाने से क्षेत्र में विकास और उत्थान की उम्मीदें जगी हैं। यह पूछे जाने पर कि भाजपा उम्मीदवार हाल ही में अंबाला लोकसभा सीट से क्यों हार गए और यहां तक कि सीएम के गृह क्षेत्र नारायणगढ़ से भी पिछड़ गए पर लोगों की दलील है कि लोग उम्मीदवार के विरोध में थे। उन्होंने कहा कि सैनी ने लोगों से विधानसभा चुनाव में गलती न दोहराने का आग्रह किया है।
रोहतक जिला अपनी मुखरता के लिये जाना जाता है
उधर रोहतक इलाके के राजनीतिक विश्लेषकों की दलील है कि देसवाली बेल्ट का केंद्र रोहतक जिला अपनी राजनीतिक मुखरता के कारण हरियाणा की राजनीतिक राजधानी के रूप में जाना जाता है। रोहतक के महम विधानसभा क्षेत्र को पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल के पुनरुत्थान का श्रेय दिया जाता है, जो न केवल हरियाणा की राजनीति में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी सिरसा जिले के बागड़ी बेल्ट से आते हैं।
देवीलाल ने 1982, 1985 (उपचुनाव) और 1987 में महम सीट जीती। वह 1989 में उप प्रधानमंत्री बने। 1989 के आम चुनावों के दौरान, उन्होंने रोहतक लोकसभा सीट और राजस्थान में सीकर से चुनाव लड़ा। दोनों बार जीत हासिल करने के बाद उन्होंने रोहतक सीट छोड़ दी, जिससे मतदाता नाराज हो गए। देवीलाल के बेटे तत्कालीन सीएम ओम प्रकाश चौटाला के रवैये की वजह से महम उपचुनाव में लोक दल के उम्मीदवार की पसंद को लेकर महम चौबीसी खाप के साथ उनका टकराव हुआ।
जब देवीलाल ने यह सीट खाली कर दी थी और वह डिप्टी पीएम बने तो खाप आनंद सिंह दांगी को उम्मीदवार बनाना चाहती थी, लेकिन चौटाला ने खुद चुनाव लडऩे पर जोर दिया। इसके बाद के घटनाक्रम के परिणामस्वरूप हिंसा हुई, जिससे निर्दलीय उम्मीदवार अमीर सिंह की मृत्यु हो गई। चुनाव आयोग ने यह उपचुनाव रद्द कर दिया था।
रिपोर्ट- साजन शर्मा