Haryana Congress needs guidance and strict discipline

Editorial: हरियाणा कांग्रेस को चाहिए दिशा दर्शन और कड़ा अनुशासन

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Haryana Congress needs guidance and strict discipline

Haryana Congress needs guidance and strict discipline: हरियाणा कांग्रेस आजकल जिस अकुलाहट से गुजर रही है, उसे सहज ही समझा जा सकता है। यह कितना कठिन है, स्वीकार करना कि जीत के मुहाने पर पहुंच कर एक पार्टी विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए रह जाती है। और उसमें भी दुखद यह कि करीब सात महीने हो चुके हैं विधानसभा चुनाव को, लेकिन अभी तक पार्टी को विपक्ष का नेता तक नहीं मिला। जबकि विधानसभा में दो बार सत्र आयोजित हो चुका है। पार्टी के नवनिर्वाचित विधायक बेचैन हैं, उन्हें न संगठन में सम्मान हासिल हो रहा है और न ही हाईकमान के स्तर पर। एक विधायक की यह पीड़ा संभव है, सभी विधायकों का दर्द होगा कि भाजपा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो मेयर पद पर निर्वाचित हुए अपने पदाधिकारी से भी मिल लेते हैं, लेकिन कांग्रेस में हाईकमान तक नहीं मिला जा सकता। आखिर कांग्रेस हाईकमान ने अपने आप को इतना दुर्लभ क्यों बना लिया है।

कांग्रेस जब अपनी हार के कारणों पर विचार करती है तो क्या वहां इस तरह की बातों, शिकायतों पर गौर किया जाता है? निश्चित रूप से जीत और हार के बीच बहुत सामान्य कारण भी काम कर रहे होते हैं। हरियाणा जैसे राज्य में तो मतदाता यह बात सुनकर भी अपना मन बदल लेते हैं कि यहां जलेबी की फैक्टरी लगनी चाहिए। अब नेताओं को कौन समझाए, अगर वे स्थानीय नेताओं के साथ कोई गहरा संवाद रखेंगे तो हो सकता है कि स्थानीय मुद्दों की नब्ज भांप सकें, लेकिन उन्हें तो अपने ख्याली पुलावों से ही फुर्सत नहीं है। ऐसे में आम कार्यकर्ता और सामान्य विधायक भी बेबसी में है और उसे कोई दिशा दर्शन प्राप्त नहीं हो रहा।

अब प्रदेश कांग्रेस के नए प्रभारी बीके हरिप्रसाद लगातार प्रदेश संगठन की कमजोरियों को भांपने में लगे हैं, तो यह उचित ही है। हालांकि पार्टी जितनी देर प्रदेश के संबंध में कर रही है, उसे उतना ही नुकसान उठाना पड़ रहा है। प्रदेश प्रभारी ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव में हारे हुए उम्मीदवारों से वन टू वन बैठक की है।  वे फिर एक बैठक दिल्ली में करने जा रहे हैं, जिसमें प्रदेश के सभी बड़े नेताओं को बुलाया गया है। हालांकि अभी तक की बैठकों में यह निकल कर सामने आ रहा है कि जिन पार्टी नेताओं को आश्वासन के बावजूद टिकट नहीं मिली, उन्होंने फिर पार्टी के घोषित उम्मीदवार के खिलाफ प्रचार किया और इस तरह से उन्हें हरवा दिया। ऐसी बातें पार्टी के अंदर से चुनाव परिणाम सामने आने के बाद से ही सुनी जा रही हैं। हालांकि यह और बात है कि प्रदेश नेतृत्व और चुनाव की कमान संभालने वाले नेताओं ने कहा था कि विरोधी दलों की कथित धांधली और प्रशासनिक मशीनरी के पक्षपात की वजह से पार्टी की हार हुई। दरअसल, यह बहुत शुरू से समझा जा रहा है कि कांग्रेस की हार की वजह उसके अंदर ही है। पार्टी में गुटबाजी अपने चरम पर रही है और चुनाव के दौरान इसी गुटबाजी ने असंतुष्टों को और प्रेरित किया।

हरियाणा में विधानसभा चुनाव के दौरान प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी ही हार की मुख्य वजह रही है। दरअसल, प्रदेश कांग्रेस के नेता और पार्टी हाईकमान भी इस बात को मानने लगा है। यही वजह है कि प्रदेश कांग्रेस नेताओं को लेकर हाईकमान का रूख जहां सख्त हो गया है वहीं प्रदेश में पार्टी के अंदर के हालात भी हाईकमान संभव है  बदलने की जुगत में है। वास्तव में इसकी जरूरत बहुत पहले से थी लेकिन पार्टी हाईकमान के लिए यह दुविधा हो सकती है कि वह आखिर बदलाव करे भी तो क्या। पार्टी में ब्लॉक स्तर के पदाधिकारियों की घोषणा में असंतोष पैदा हो जाता है। अब यह भी प्रदेश में संभव है पहली बार हो रहा है कि कांग्रेस ने अपने नेता विपक्ष का नाम ही घोषित नहीं किया है। क्या यह माना जा सकता है कि कांग्रेस हाईकमान प्रदेश के नेताओं को इस तरह से दंडित कर रहा है। क्योंकि प्रदेश कांग्रेस को इतना मजबूर हाईकमान ने कभी नहीं किया। दिल्ली दरबार के लिए हरियाणा हमेशा से उसकी प्राथमिकता रहा है। लेकिन इस बार के विस चुनावों के परिणाम ने हाईकमान को थका दिया।

वह यह भी भांप चुका है कि प्रदेश कांग्रेस को भारी अनुशासित किए जाने की जरूरत है। आजकल जो भी प्रदेश कांग्रेस के संदर्भ में चल रहा है, वह सब जैसी पुनर्गठित करने की तैयारी है। यह उचित भी है, हरियाणा कांग्रेस में गुटबाजी ने सारा खेल बिगाड़ दिया, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। अगर पार्टी नेता एकजुट होकर चलते और कामयाबी के बाद जीत का स्वाद एकजुटता से चखते तो हाईकमान को भी खुशी होती। हरियाणा कांग्रेस को वाकई में प्रभावी दिशा दर्शन की जरूरत है और यह कड़े अनुशासन से ही होगा। 

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