प्रस्तावों से हरियाणा विधानसभा चंडीगढ़ पंजाब के हवाले करने के मामले में अड़चने डालना चाहती है: अकाली दल

प्रस्तावों से हरियाणा विधानसभा चंडीगढ़ पंजाब के हवाले करने के मामले में अड़चने डालना चाहती है: अकाली दल

प्रस्तावों से हरियाणा विधानसभा चंडीगढ़ पंजाब के हवाले करने के मामले में अड़चने डालना चाहती है: अकाली दल

प्रस्तावों से हरियाणा विधानसभा चंडीगढ़ पंजाब के हवाले करने के मामले में अड़चने डालना चाहती है: अकाली

कहा, हरियाणा विधानसभा को जिम्मेदारी से पेश आना चाहिए था तथा पंजाब के साथ हुए अन्याय को समझना चाहिए था तथा केंद्र सरकार को नई राजधानी के लिए फंड अलाट करने की अपील करनी चाहिए थी

चंडीगढ़ हरियाणा को देने, एसवाईएल नहर तथा हिन्दी बोलते इलाके हरियाणा को देने संबंधी प्रस्तावों द्वारा लाए तीनों मुद्दे हल हो चुके हैं तथा हरियाणा को अब ड्रामा करके दोनों राज्यों के मध्य दरार पैदा नहीं होने देनी चाहिए: डा. दलजीत सिंह चीमा

चंडीगढ़, 5 अप्रैल:

शिरोमणि अकाली दल ने आज कहा कि यह बहुत ही दुर्भागयपूर्ण बात है कि हरियाणा विधानसभा बजाए अलग राजनधानी की मांग करने के प्रस्ताव पारित करके चंडीगढ़ पंजाब को देने के मामले में अड़चने खड़ी कर रही हैं।
हरियाणा विधानसभा में चंडीगढ़ हरियाणा को देने, सतलुज यमुना लिंक नहर तथा पंजाब के हिन्दी बोलते इलाके हरियाणा को देने संबंधी पारित प्रस्तावों पर प्रतिक्रिया देते हुए सीनियर अकाली नेता डा. दलजीत सिंह चीमा ने कहा कि यह सारे मामले पहले ही हल हो चुके हैं। अब इनको उठाने से पंजाब तथा हरियाणा के मध्य दरार ही पैदा होगी। उन्होंने कहा कि हरियाणा विधानसभा को जिम्मेदारी से पेश आना चाहिए था तथा इन मुद्दों पर पंजाब के साथ हुए अन्याय को रिकार्ड पर लाना चाहिए था तथा केंंद्र सरकार को नई राजधानी के लिए फंड प्रदान करने की अपील करनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि ऐसा करने की जगह अन्य कुछ करना ड्रामेबाजी है।

चंडीगढ़ पंजाब को देने के मामले की बात करते हुए डा. चीमा ने कहा कि यह एक प्रवान नियम है, जिस राज्य का बंटवारा हो रहा होता है, राजधानी हमेशा उसके पास रहती है। यही बात 1966 के पुर्नगठन के समय प्रवान की गई थी। चंडीगढ़ को सिर्फ अस्थाई प्रबंध के रूप में पंजाब तथा हरियाणा की राजधानी बनाया गया था। उन्होंने कहा कि यह बात राजीव लौंगोवाल समझौते में दुहराई गई थी तथा चंडीगढ़ पंजाब हवाले करने के लिए 26 जनवरी 1986 की तारीख तय की गई थी। उन्होंने कहा कि यही बात संसद में पारित की गई, ताकि इस मामले पर कोई शंका न रहे। 

सतलुज-यमुना लिंक नहर की बात करते हुए डा. चीमा ने कहा कि पहले तो 1955 में पंजाब से भेदभाव किया गया, जबकि रावी तथा ब्यास के पानी उस समय की कांग्रेस सरकार ने गैर रायपेरियन राज्यों को देने का फैसला लिया। उन्होंने कहा कि 1966 में पंजाब के पुर्नगठन के समय पांच दरियाओं के पानी के बंटवारे के लिए व्यवस्था की गई थी तथा इसको 1979 में अकाली दल की सरकार ने चुनौती दी, पर जब कांग्रेस सरकार सत्ता में आई तो केंद्र सरकार के दबाव अधीन 1981 में सभी केस वापिस ले लिए तथा सतलुज यमुना लिंग नहर निश्चित समय में पूरी करने के लिए रजामंदी दी गई।

डा. चीमा ने कहा कि पंजाब हमेशा बार-बार कहता रहा है कि इसके दरियाई पानी के हकों का फैसला रायपेरियन सिद्धांतों के मुताबिक किया जाए। उन्होंने कहा कि इसके अलावा पानी की उपलब्धता में भी तबदीली आई है तथा अब हमारे पास देने के लिए एक बूंद भी पानी नहीं है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा सतलुज यमुना लिंक नहर के निर्माण के लिए कोई जगह नहीं रही, क्योंकि यह जमीन पिछली अकाली दल की अगुवाई वाली सरकार द्वारा किसानों को वापिस कर दी गई थी।

हरियाणा द्वारा पंजाब के हिन्दी बोलते इलाके हरियाणा को देने की मांग के बारे डा. चीमा ने कहा कि देसाई आयोग आयोग तथा वैक्टरमईया आयोग सहित अलग-अलग आयोगों को पंजाब में कोई भी ऐसा हिन्दी बोलता इलाका नहीं मिला, जो पंजाब तथा हरियाणा को तबदील किया जा सके। उन्होंने कहा कि यह भी रिकार्ड पर एक तथ्य है कि हिन्दी बोलता कोई भी इलाका हरियाणा को देने के लिए ढूंढने के लिए वेंक्टरमईया आयोग अपने टर्मज़ ऑफ रेफरेंस से बाहर भी चला गया था। 

डा. चीमा ने अपील की कि ऐसे प्रस्तावों से चंडीगढ़ पंजाब के हवाले करने के रास्ते में रूकावटें ना डाली जाएं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को जांच के आदेश करने चाहिए, चंडीगढ़ पर पंजाब के हकों को कमजोर करने के लिए नियमों में तबदीली कैसे की गई। उन्होंने कहा कि गृह मंत्रालय को इस मामले में जांच के आदेश देने चाहिए तथा जो भी चंडीगढ़ का अलग केडर बनाने के लिए जिम्मेवार हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ में पहले वाला पंजाब तथा हरियाणा का 60 अनुपात 40 का हिस्सा बहाल होना चाहिए, जब तब चंडीगढ़ पंजाब हवाले नहीं किया जाता।