Harmony between the ruling and opposition parties is essential

Editorial:सत्ता-विपक्ष के बीच सामंजस्य जरूरी, संविधान तभी रहेगा कायम

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Harmony between the ruling and opposition is necessary, only then will the constitution remain intact: देश में जब संविधान को बचाने की विपक्ष की ओर से गुहार लगाई जा रही है, तब यह समझना और ज्यादा जरूरी हो जाता है कि क्या वास्तव में देश में संविधान की कद्र की गई है। 25 जून 1975 का दिन देश में कौन भूल सकता है, जब कांग्रेस शासित सरकार ने आपातकाल लगाकर देश में तमाम नागरिक अधिकारों को समाप्त कर दिया था और मीडिया एवं सामाजिक संस्थाओं की स्वायत्तता को लुप्त कर दिया था। हालिया लोकसभा चुनाव विपक्ष ने संविधान बचाने की दुहाई देते हुए लड़ा था, यह प्रश्न उस समय भी पूछा जा रहा था कि आखिर किस प्रकार संविधान खतरे में है। अगर धनकुबेरों पर कार्रवाई हो रही है, उनका काला धन बाहर आ रहा है, तो क्या यह संविधान  का अतिक्रमण है। क्या घोटाले-घपले करके अपने खजाने भरने वाले लोगों को पकड़ कर जेल के अंदर डाला गया है तो यह संविधान का अतिक्रमण है।

वास्तव में ऐसी कार्रवाइयों का स्वागत होना चाहिए, लेकिन यह समय राजनीति के चरम का है। बीते दशक भर के शासनकाल में देश के अंदर जितना बड़ा परिवर्तन आया है, उसके बावजूद जनता की ओर से इस बार एक अल्प बहुमत की सरकार का जनमत दिया गया। ताज्जुब इसी बात का है कि आखिर कौन किसकी बातों में आ गया। देश की जनता ने उन सभी कार्यों की अनदेखी कर दी है, जिनके बूते देश आगे बढ़ रहा था और उसके विकास की रफ्तार प्रबल हो रही थी। इसी रफ्तार के बूते अमेरिका समेत दूसरे पश्चिमी देश भारत को एक महाशक्ति के रूप में देखने लगे थे। लेकिन राजग में भाजपा के पूर्ण बहुमत के अभाव में उसके द्वारा सहयोगियों के बूते सरकार बनाने से समीकरण बदल गए हैं। अब पश्चिम के देश भी भारत को कमतर समझने लगे हैं, उसके विकास की रफ्तार पर सवाल उठा रहे हैं। निश्चित रूप से यह देश की तरक्की के विपरीत है।

आजकल संसद का सत्र जारी है, जिसके पहले ही दिन सत्ता और विपक्ष के बीच तकरार सामने आ चुकी है। हालांकि जैसे पहले ही इसकी आशंका है कि विपक्ष सदन को चलाने में पूर्ण सहयोग देने वाला नहीं है, प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्ष से जिम्मेदार विपक्ष बनने का आह्वान किया। वहीं विपक्ष ने संविधान की प्रति लहराते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी एवं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को संविधान पर हमले  की इजाजत नहीं देंगे। वैसे यह गौरतलब है कि कांग्रेस ने आज तक इस बात को स्वीकार नहीं किया है कि आपातकाल लगाया जाना गलत था और इससे संविधान की मूल आत्मा को नुकसान पहुंचा। बावजूद इसके चुनाव के अंदर देश में उन मसलों जोकि आजादी के बाद से लंबित हैं, अगर उनके समाधान की दिशा में मोदी सरकार ने प्रयास किए हैं तो इसे संविधान को नुकसान पहुंचाना बताया जा रहा है।

दरअसल, 18वीं लोकसभा में विपक्षी सदस्यों की बढ़ी हुई संख्या उनके मनोबल और आत्मविश्वास को बढ़ा रही है। हालांकि यही वह स्थिति है, जब विपक्ष को अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा। देश की जनता ने विपक्ष को न तो इतने सांसद दिए हैं कि वह सरकार बना सके और न ही इतने कम सांसद दिए हैं कि वह एक मजबूत विपक्ष की भूमिका न निभा सके। हालांकि पहले दिन ही सदन के बाहर संविधान हाथ में लिए प्रदर्शन करते विपक्षी सांसदों ने यह संकेत दिया कि वे सरकार पर दबाव बनाने का कोई मौका इस बार नहीं चूकना चाहते। वहीं सत्ता पक्ष भी अपने गठबंधन की मजबूती को कम समझने वालों के सारे भ्रम दूर करते चलने को कृत संकल्प दिख रहा है। विपक्षी सांसदों के प्रदर्शन के जवाब में आपातकाल की याद दिलाने वाला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान यही जाहिर करता है कि विपक्षी दलों को उनकी ही शैली में जवाब देने के लिए सरकार तैयार है।

इस बार के संसद सत्र में मुद्दों की कमी नहीं है। वह चाहे चुनावों से पहले के अग्निवीर और जाति जनगणना जैसे मुद्दे हों या महंगाई और बेरोजगारी जैसे सदैव हरे-भरे रहने वाले मुद्दे, पेपर लीक से जुड़े आरोप-सदन में उठेंगे ही। असल चुनौती यह है कि बदले समीकरणों के बीच विपक्ष अपनी बढ़ी हुई ताकत का कितना कुशल और रचनात्मक इस्तेमाल कर सकता है और सत्ता पक्ष इस ऊर्जा को ईंधन बनाते हुए किस हद तक देश के विकास को गति दे पाता है। इस समय लोकसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष पद को लेकर खींचतान जारी है, हालांकि प्रश्न यह है कि आखिर विपक्ष सबसे ज्यादा सीटें जीतकर लौटी भाजपा को उसका स्थान क्यों नहीं देना चाहता। विपक्ष का स्वर कुछ ऐसा है कि भाजपा को न सरकार बनाने का जनमत प्राप्त है और न ही सबसे बड़े दल होने की वजह से संसद में संवैधानिक पद प्राप्त करने का। वास्तव में यह सब संविधान से जुड़ी बात है, अगर विपक्ष संविधान के प्रति इतना फ्रिकमंद है तो फिर उसे सत्ता पक्ष के प्रति सम्मान प्रदर्शित करना होगा। वहीं सत्ता पक्ष को भी विपक्ष को साथ लेकर चलना होगा। 

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