फेसबुक पर ऐसी बातें कीं, जो अब सुर्खियों में: हरीश रावत ने कहा- मैं भी वक्त का मारा हुआ हूं, बेटे आनंद ने लिखा- मुझे येड़ा समझते हैं... अब चर्चे शुरू

फेसबुक पर ऐसी बातें कीं, जो अब सुर्खियों में: हरीश रावत ने कहा- मैं भी वक्त का मारा हुआ हूं, बेटे आनंद ने लिखा- मुझे येड़ा समझते हैं... अब चर्चे शुरू

Harish Rawat and Anand Rawat Facebook Post

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Harish Rawat and Anand Rawat Facebook Post : उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) और उनके बेटे आनंद रावत ने अपने-अपने दिल की जो बातें फेसबुक पर पोस्ट कीं हैं, वो बातें तो सुर्खियों में हैं हीं साथ ही बाप-बेटे को लेकर कई तरह की चर्चाएं भी शुरू हो गईं हैं| दरअसल,  शुरुआत की हरीश रावत के बेटे आनंद रावत ने| आनंद ने फेसबुक पर एक पोस्ट डाली और धीरे से उसमें अपने पिता हरीश रावत पर तंज कस दिया| आनंद ने कहा कि मेरे पिता मुझे येड़ा समझते हैं। बस फिर क्या था बेटे की यह बात सुन एक पिता का दर्द छलक उठा| हरीश रावत ने आनंद की फेसबुक पोस्ट पर लिखा कि बेटे मैंने तुम्हें कभी येड़ा नहीं समझा| समय तुम्हारे साथ न्याय करेगा। इधर बाद में आनंद ने पिता द्वारा उन्हें येड़ा समझे जाने की अपनी बात को स्पष्ट किया है|

शुरुआत ऐसे हुई...

दरअसल, हरीश रावत ने उत्तराखंड में युवाओं के रोजगार व उनकी आय पर बात की और इस बीच राजनीति और राजनीतिक नेताओं को निशाने पर लिया| आनंद रावत ने फेसबुक पोस्ट में लिखा कि उत्तराखंड में 72 पॉलिटेक्निक और 48 आईटीआई खुले, जो पूरे भारत में सबसे अधिक किसी राज्य में है| हर साल 20 हजार स्किल्ड लड़के और लड़कियां तैयार हो रहे हैं। लेकिन प्रदेश में युवाओं को उनकी क्षमता के अनुसार वेतन नहीं मिलता। आनंद रावत ने केरल से तुलना करते हुए कहा कि वहां पर पॉलिटेक्निक और आईटीआई से निकले युवाओं की दोगुनी कमाई होती है। इसके साथ ही विदेशों में जाकर युवा लाखों रुपये कमाते हैं।

आनंद रावत ने कहा कि वही सवाल है कि यह सब करेगा कौन? आनंद रावत ने अपने पिता हरीश रावत सहित राजनीतिक दल के नेताओं पर निशाना साधते हुए लिखा कि सोशल मीडिया पर तो नेताओं को अपने समर्थकों को जन्मदिन पर बधाई या परिचित के शोक संदेश से फुर्सत नहीं मिलती है। इनके पास राज्य चिन्तन पर कुछ नहीं मिलेगा ? ऐसे में युवाओं के बारे में सोचेगा और करेगा कौन। आनंद रावत ने यहीं कहा कि मेरे पिताजी मेरे चिंतन और विचारों से परेशान रहते हैं। शायद उन्होंने हमेशा मेरी बातें एक नेता की दृष्टि से सुनी और मुझे येड़ा समझा।

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अब हरीश रावत क्या बोले?

इधर, बेटे की इस पोस्ट को फिर हरीश रावत ने उठाया और जवाब लिखा- आनंद तुम्हारा पिता भी वक्त का मारा हुआ है। मैंने तुम्हें कभी येड़ा नहीं समझा। वक्त ने मजबूरन समझा दिया। चाहे 2012 में लालकुआं हो या 2017 में जसपुर। मुझे गर्व है, तुमने नशे से लड़ने के लिए उत्तराखंड के परंपरागत खेलों को प्रचारित-प्रसारित किया। कितने युवा नेता हैं जो तुम्हारी तरह युवाओं तक "रोजगार अलर्ट" के लिए रोजगार समाचार पहुंचाते हैं। कितने नेता है जो लड़के और लड़कियों को सेना या पुलिस में भर्ती हो सके इस हेतु प्रारंभिक प्रशिक्षण की व्यवस्था करते हैं। तुम्हारी सोच पर मुझे गर्व है। आज जब सारी राजनीति हिंदू-मुसलमान हो गई है। रोजगार, महंगाई, सामाजिक समता व न्याय, शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे प्रश्न खो गए हैं। मैंने रोजगार, शिक्षा को प्रथम लक्ष्य बनाकर काम किया। मैं ही खो गया। मैं रोजगार को केरल मॉडल पर लाया। तुलनात्मक रूप में सर्वाधिक तकनीकी संस्थान जिसमें नर्सिंग भी सम्मिलित हैं, हमारे कार्यकाल में खुले और सर्वाधिक भर्तियां हुई। आज शहर का मिजाज बदला हुआ है। परंतु तुमने बुनियादी सवाल और हम जैसे लोगों की कमजोरियों पर चोट की है। डठे रहो। बाप न सही- समय तुम जैसे लोगों के साथ न्याय करेगा।

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आनंद रावत ने येड़ा समझने वाली बात स्पष्ट की...

इधर, आनंद रावत ने पिता द्वारा येड़ा समझने वाली अपनी बात अब स्पष्ट किया| आनंद रावत ने कहा- “येड़ा” शब्द मैंने 2012 में तत्कालीन गृह मन्त्री सुशील कुमार शिन्दे जी के मुँह से श्री अरविन्द केजरीवाल जी के लिए सुना और केजरीवाल जी ने इसे हिन्दी में “ जुनूनी “ शब्द कह करके व्याख्या की, और 2013 के विधानसभा चुनाव में केजरीवाल जी ने इस शब्द की सार्थकता साबित भी कर दी ।

इतिहास के पन्ने पलटाए तो पाएँगे की जवाहरलाल नेहरू जी सम्पन्न व धनाड्य परिवार से आते थे, और देश की आज़ादी के लिए अपना ऐशो आराम त्याग कर जब पहली बार जेल गए होंगे तो उन्हें भी नहीं पता होगा, कि उनके जीवनकाल में देश आज़ाद होगा की नहीं ? लेकिन एक येड़ापन, एक जुनून था देश के लिए और अपने जीवनकाल का एक बड़ा हिस्सा जेल में बिताया ।

“येड़ा” मतलब पागल तो बिलकुल नहीं होता, क्योंकि संविधान के अनुसार पागल व्यक्ति जनप्रतिनिधि नहीं बन सकता, और येड़ा मतलब “पागल “ होता तो केजरीवाल जी शिन्दे जी पर मानहानि का दावा कर चुके होते ?

फ़िल्म अभिनेत्री जूही चावला जी भी तो कितनी मासूमियत से कहती “ येड़ा है, पर मेरा है “ । अब वो भला पागल को तो अपना बनाएँगी नहीं, हाँ एक जुनूनी व्यक्ति को अपना बना सकती है ।

मुझे लगता है “ झकास “ के बाद सबसे लोकप्रिय शब्द “येड़ा” ही है । उत्तराखंड की राजनीति में “येड़ा” शब्द पहली बार प्रयोग हुआ तो शालीन व बुद्धिजीवी प्रदेश के लोगों को नागवार लगा, जिसके लिए मैं माफ़ी चाहता हूँ मेरे पिताजी मेरे नायक है, और उनकी “ never say die “ attitude या कहे जूझरूपन करोड़ों युवाओं को प्रेरणा देता है|

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