गुजरात चुनाव, आप को राष्ट्रीय पार्टी का खिताब बड़ी उपलब्धि
- By Krishna --
- Friday, 09 Dec, 2022
gujarat elections, national party title for aap is a big achievement
Gujarat elections, national party title for aap is a big achievement : लोकतंत्र का जनक भारत (India the father of democracy) को यूं ही नहीं कहा जाता। यहां जनता ही जनार्दन (Janata Hi Janardan) है और वह न किसी को दंभ भरने देती है और न ही किसी को मन मसोसने देती है। वह सबसे बड़ी निर्णायक है और वही सरकारों की भाग्य विधाता है। लेकिन गुजरात चुनाव मेंं आम आदमी पार्टी ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है। कहा जा सकता है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभाओं के नतीजे यही बताते हैं। इन चुनावों को दोनों राज्यों की जनता ने बेहद शांति और व्यवस्था से संपन्न कराया है, जिसके लिए उसे साधुवाद। हालांकि इन राज्यों के चुनाव परिणामों से भविष्य की राजनीति के संकेत भी मिल गए हैं। गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य (Gujarat Modi's home state) है, यहां के संबंध में यह धारणा थी कि जनता अपने मोदी को निराश नहीं करेगी, और हुआ भी यही। हालांकि गुजरात भाजपा की ऐसी प्रयोगशाला (Such a laboratory of Gujarat BJP) भी है, जहां से उसने राजकाज और सुशासन (Governance and Good Governance) के अपने दावे की सरकारों की रूपरेखा खींची है। अब प्रदेश की जनता ने भाजपा को 182 सीटों की बंपर जीत (Bumper victory of 182 seats) के साथ नवाजा है। क्या इसे राज्य की जनता का मोदी प्रेम (People's love for Modi) या भाजपा मोह (BJP infatuation) कहा जाना चाहिए। राज्य में चुनाव प्रचार के दौरान ऐसे भी इलाके सामने आ रहे थे, जहां अभी तक विकास की लौ नहीं जली है, वहां के निवासियों ने इस बार परिवर्तन की चाह दिखाई थी, इसके बावजूद इस बार न केवल भाजपा का वोट प्रतिशत पहले की तुलना में बढ़ा (BJP's vote percentage increased) है, अपितु उसने ऐसी रिकार्ड जीत हासिल की है, जोकि इतिहास में दर्ज हो चुकी है। शायद इसके लिए कहा गया है कि मोदी है तो मुमकिन है (If Modi is there then it is possible)। प्रधानमंत्री मोदी (Prime Minister Modi) ने गुजरात में सर्वाधिक रैलियां की और विपक्ष ने इसकी आलोचना भी, लेकिन अपनी जमीन को मजबूत करके मोदी ने अगले वर्ष सात राज्यों और उसके बाद लोकसभा चुनाव के लिए जमीन तैयार कर ली है।
हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के मतदाता का मन कोई भी राजनीतिक दल नहीं समझ पाता। यहां की वादियों की तरह मतदाता शांत और सुरमय तरीके से जैसे सरकारों को उलटता-पलटता रहता है, वह उसका रिवाज बन गया है। भाजपा ने प्रचार के दौरान इस रिवाज को न बदलने का जनता से आह्वान किया था, हालांकि जनता को मालूम है कि उसे क्या चाहिए। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत चौंकाती भी है, प्रदेश में पार्टी का प्रचार अभियान खानापूर्ति ज्यादा नजर आया था, लग रहा था जैसे पार्टी सिर्फ चुनाव की रस्म अदायगी कर रही है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा (Congress General Secretary Priyanka Gandhi Vadra) ही राज्य में प्रचार अभियान की बागडोर (reins of campaign) संभाले रही। भारत जोड़ो यात्रा (India Jodo Yatra) पर निकले राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने भी हिमाचल पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझा। ऐसे में कांग्रेस को जो जीत मिली है वह भाजपा की खामियों की वजह से मिली है। क्या कांग्रेस दूसरे राज्यों में भी इसी प्रकार विरोधियों की खामियों का लाभ उठाकर जीत दर्ज करेगी, अब तो उसने अपना पूर्णकालिक राष्ट्रीय अध्यक्ष भी निर्वाचित कर लिया है। गुजरात में कांग्रेस ने खुद को भाजपा का प्रमुख विरोधी करार देते हुए चुनाव लड़ा था, लेकिन 2017 में जिस कांग्रेस से 77 सीटें जीती थी वह इस बार महज 17 सीटों पर सिमट गई है। पार्टी नेता राहुल गांधी (party leader Rahul Gandhi) ने भी गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों को हल्के में लिया, गुजरात में उन्होंने दो रैलियां ही की वहीं हिमाचल आए ही नहीं। क्या कांग्रेस ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव में केंद्र की सत्ता के लिए खुद को दावेदार ठहराते हुए मैदान में आ सकेगी। आखिर बोझिल मन से चुनाव लडऩे की वजह क्या हैं। कांग्रेस ने तो नवोदित आम आदमी पार्टी के सम्मुख भी खुद को बौना साबित कराया है। आप ने गुजरात चुनाव पूरे दमखम के साथ लड़ा और 5 सीटें जीतकर जहां खुद का खाता खोल लिया, वहीं राष्ट्रीय पार्टी होने का खिताब भी प्राप्त कर लिया। आप ने इस चुनाव में जो जमीन तैयार की है, वह उसे पांच साल सींचेगी और संभव है अगले चुनाव में राज्य की जनता उस पर मेहरबान हो जाए।
बेशक, हार-जीत एक सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन हिमाचल प्रदेश में भाजपा की हार उसे जरूर सालती रहेगी। गुजरात की जनता ने मोदी पर जो प्रेम लुटाया (The love that the people of Gujarat showered on Modi) आखिर हिमाचल की जनता ने उससे वंचित क्यों कर दिया, यह बड़ा सवाल है। अगर एक पार्टी अपने ही अंतर्विरोधों से हारती है तो फिर यह उसके रणनीतिकारों के लिए चेतावनी (Warning for Strategists) होनी चाहिए। इस बार हिमाचल प्रदेश में भाजपा को संगठित होकर लड़ते नहीं देखा गया, टिकट के वितरण में जहां पसंद के चेहरों को आगे बढ़ाया गया वहीं बागियों पर कड़ी कार्रवाई की गई। राज्य एवं केंद्र सरकार के मंत्रियों, नेताओं ने राष्ट्रीय मुद्दों का गुणगान ही ज्यादा किया। राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल पार्टी के पुरोधा हैं, लेकिन उनकी अनदेखी की गई। ऐसा पहली बार हुआ जब धूमल परिवार से किसी ने चुनाव नहीं लड़ा, इसकी पीड़ा केंद्रीय मंत्री एवं प्रेम कुमार धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर (Anurag Thakur, son of Union Minister and Prem Kumar Dhumal) की आंखों में दिखी थी। निवर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर (Outgoing Chief Minister Jairam Thakur) के नेतृत्व को लेकर पार्टी में सवाल उठते रहे। प्रदेश में उपचुनाव में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। मुख्यमंत्री के बदलने की भी अटकलें लगनी शुरू हुई थी, यह सब होते जनता देख रही थी, संभव है तभी से उसके मन में परिवर्तन की चाह बलवती होती गई (The desire for change grew stronger) और उसने फिर न प्रधानमंत्री मोदी (Prime Minister Modi) की सुनी और न ही दूसरे किसी बड़े नेता की। बावजूद इसके हिमाचल में कांग्रेस की जीत (Congress victory in Himachal) उसे संजीवनी देने के लिए काफी है। हालिया दिनों में पार्टी ने जीत का परचम (Flag of victory) लहराते हुए किसी प्रदेश में पुन: सरकार बनाने की तैयारी (preparing to form the government) की है। इससे राष्ट्रीय फलक पर उसकी संभावनाओं को बल मिल रहा है। वहीं आप की सक्रियता ने उत्तर भारत में उसे स्थापित कर दिया है, हालांकि गुजरात की जनता (people of gujarat) को उसके वादे-इरादे समझ में नहीं आए वहीं हिमाचल की जनता ने भी आप को बिसार दिया। ये चुनाव इसके उदाहरण भी हैं कि जनता अब वादे और इरादे भांपकर वोट देती है, भावनाओं में भरकर नहीं। गुजरात में भाजपा ने विकास किया है तो उसे इसका पुरस्कार मिला (BJP has done development so it got its reward) है लेकिन हिमाचल में पार्टी अगर मतदाता की कसौटी पर खरा नहीं उतर सकी तो उसे घर बैठा दिया। नतीजे कुछ भी रहें, यह तय है कि इस बार भी मतदाता ही जीत कर आया है।
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