Great need for Communal Harmony: देश में आज साम्प्रदायिक सौहार्द की बहुत ज्यादा जरूरत: मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमार जी आलोक
Great need for Communal Harmony: देश में आज साम्प्रदायिक सौहार्द की बहुत ज्यादा जरूरत: मनीषीसंतमुनिश
चंडीगढ, 26 सिंतबर: Great need for Communal Harmony: देश में आज साम्प्रदायिक सौहार्द की बहुत ज्यादा जरूरत है। अणुव्रत आंदोलन धार्मिक सद्भावना में विश्वास रखता है। जाति, पंथ, संप्रदाय से ऊपर उठकर सर्व धर्म सद्भावना के वातावरण से हमारा देश और आगे बढ़ सकता है। विश्व में विन जाति, धर्म, समुदाय, बोली, भाषा और रंग के लोग रहते हैं। यह भिन्नता और हिंसा का कारण न बने बल्कि आपसी सद्भाव व मैत्री की भावना को प्रोत्साहित कर हम अनेकता में एकता का उदाहरण प्रस्तुत करें. यह हर व्यक्ति का ध्येय और प्रयास होना चाहिए। साम्प्रदायिक सौहार्द के संदेश को हम घर-घर तक पहुंचाएं। ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमार जी आलोक ने अणुव्रत भवन सैक्टर-24 में अणुव्रत सप्ताह की शुरूआत करते हुए साम्प्रदायिक सौहार्द दिवस और नवाह्निक आध्यात्मिक अनुष्ठान का शुभारंभ करते हुए कहे। अनुष्ठान में अनेक श्रावक श्राविकाओं ने हिस्सा लिया।
मनीषीसंत ने आगे कहा साम्प्रदायिक सौहार्द का वातावरण बनाने में अनेकांत की बहुत उपयोगिता है। इससे पूरे देश में सद्भावना का वातावरण बनाया जा सकता है। अहिंसा और अनेकांत दो ऐसे दर्शन हैं, जो सदा उपयोगी रहे हैं और रहेंगे। इससे पूर्व समारोह का प्रारंभ तेरापंथ महिला मंडल के द्वारा अणुव्रत गीत से हुआ।
मनीषीश्रीसंत ने आगे कहा सांप्रदायिक सद्भाव हर देश के लिए आवश्यक है। अगर देश में शांति और सद्भाव है तो ही यह विकसित हो सकता है। भारत को सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए जाना जाता है, क्योंकि यहां विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग रहते हैं। यह अपने धर्मनिरपेक्ष तरीकों के लिए जाना जाता है। हम एक दूसरे धर्म संप्रदाय का सम्मान करना सीखें, राज्य किसी भी आधिकारिक धर्म का पालन नहीं करता है। यह अपने नागरिकों को किसी भी समय अपने धर्म को चुनने और इसे बदलने की स्वतंत्रता देता है। उन व्यक्तियों या समूहों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाती है जो देश के सांप्रदायिक सद्भाव के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश करते हैं।
मनीषीसंत ने अंत मे फरमाया देश के प्रत्येक नागरिक को हमारी प्राचीन समृद्ध विरासत, संस्कृति, सर्वधर्म समभाव, वसुधैव कुटुंबकम, सामाजिक समरसता, अनेकता में एकता की संस्कृति पर भरोसा करना होगा। तभी हम जातीय भेदभाव से ऊपर उठकर आपस में सौहार्द बढ़ा सकते हैं। देश मे जातीय ओर साम्प्रदायिक सौहार्द बढ़ाने के लिए प्रत्येक भारतीय को अपने मूल कर्तव्यों पर ध्यान देना होगा। जाति-धर्म के नाम पर भडक़ने वाले हर व्यक्ति से दूर रहना होगा। हमें सभी के साथ प्रेमपूर्वक रहना होगा। भारतीय संस्कृति हमें वसुधैव कुटुम्बकम् का पाठ पढ़ाती है। जाति,धर्म ,रंग और नस्ल के आधार पर किसी व्यक्ति के बारे में राय न बनाएं। कोई अपराध होने पर हमें उसका दोष धर्म और जाति को न देकर अपराधी को देना होगा। दोषियों के खिलाफ कड़ी कारवाई होनी चाहिए।