Agriculture in Punjab

Editorial:पंजाब में कृषि के संवर्धन के लिए सरकार के प्रयास सराहनीय

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Government efforts to promote agriculture in Punjab are commendable

Government efforts to promote agriculture in Punjab are commendable: पंजाब विधानसभा में मुख्यमंत्री भगवंत मान ने राज्य में नई कृषि को सामने लाने की बात कही है, हालांकि सरकार चाहती है कि इससे पहले किसानों को विश्वास में लिया जाए। वास्तव में केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के हश्र के बाद यह जरूरी है कि पंजाब सरकार ऐसे कानून लेकर आए जो कि किसानों को स्वीकार हों। हालांकि ऐसा होगा, इसमें काफी संशय है। देखने को मिलता है कि अच्छे कानूनों और बातों पर भी राजनीति हावी हो जाती है। बावजूद इसके पंजाब सरकार अगर नई कृषि नीति के संबंध में आगे बढ़ रही है तो यह स्वागत योग्य है, एवं इसकी राज्य को जरूरत भी है। इसके अलावा राज्य सरकार औद्योगिक सलाहकार आयोग भी नियुक्त करने पर विचार कर रही है, जिसकी जानकारी मुख्यमंत्री ने सदन में दी है।

पंजाब को आज कृषि और उद्योग दोनों पर बहुत काम करने की जरूरत है। ऐसी रपट आती रहती हैं कि राज्य में कृषि की जोत जहां कम हो रही है, वहीं किसानों को अब यह घाटे का सौदा भी नजर आ रही है और इसके प्रति उनका रुझान कम होता जा रहा है। वहीं उद्योगों को लेकर भी पंजाब की स्थिति चिंताजनक है। राज्य में बड़े उद्योग नहीं आ रहे हैं और जो हैं, वे आंदोलनों की मार झेल रहे हैं। हालांकि राज्य सरकार की ओर से इसके लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं और मुख्यमंत्री मान ने उद्योगपतियों के साथ सम्मेलन में कई योजनाओं की घोषणा भी की थी।

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री मान ने जिस नई कृषि नीति की बात कही है, उसे लागू करवाने की मांग को लेकर भारतीय किसान यूनियन उगराहां ने चंडीगढ़ में डेरा डाला हुआ है। पंजाब में 15 ऐसे जोन हैं, जहां जमीनी पानी का स्तर बहुत नीचे चला गया है, अब सरकार की नई कृषि नीति में ऐसा प्रस्ताव है कि इन जोन के अंदर धान की खेती को पूरी तरह से रोक दिया जाए। कृषि नीति के ड्राफ्ट में खेती को लाभप्रद और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धात्मक बनाने पर जोर दिया गया है। वास्तव में इसी प्रकार की सोच केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों में भी जाहिर की गई थी।

केंद्र की मंशा भारतीय कृषि को परंपरागत से निकाल कर एक बिजनेस के तौर पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लेकर जाने की थी। उसमें सभी प्रावधान गलत नहीं थे, हालांकि अनेक पर किसानों के साथ गतिरोध था। जाहिर है, किसानों को अगर इसका डर रहेगा कि उनकी जमीन कहीं उनके हाथ से न निकल जाए तो इसे लेकर चिंतित रहेंगे। बावजूद इसके उन कृषि कानूनों के संबंध में गुमराह किए जाने की बात भी सामने आ चुकी है। निश्चित रूप से ऐसा राजनीतिक कारणों से होता है। पंजाब में खेती की अपार क्षमता है और हरियाणा के साथ मिलकर दोनों राज्य ही देश के लिए अन्न की जरूरत को पूरा कर रहे हैं। ऐसे में दोनों राज्यों में अगर कृषि का संवर्धन किसानों की मर्जी से होने लगे तो यह सोने पर सुहागा जैसी बात होगी।

नई कृषि नीति में एफपीओ की बात भी कही गई है, यह केंद्र की तर्ज पर है। इसके तहत राज्य सरकार की सहकारी संस्थाओं के साथ मिलकर खाद्य उत्पादों को पेश करने की योजना है। नीति में एमएसपी और फेयर प्राइस की भी बात कही गई है। बताया गया है कि 90 के दशक तक यह दोनों किसानों को दी जाती थी, लेकिन बाद में इसमें संशोधन हो गया। नीति में एक और बेहतरीन बात यह कही गई है कि किसानों को संयुक्त रूप से अपना एक ब्रांड बनाना चाहिए जोकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुकाबले में उतरे। वास्तव में इस प्रकार के तमाम उपाय किए जाने की जरूरत है। सबसे पहले यह भी किए जाने की जरूरत है कि पंजाब की कृषि से प्रदूषण और रासायनिक खेती होने का दाग भी हटे।

इस समय पंजाब, हरियाणा के खेतों में बहुतायत में यूरिया का इस्तेमाल हो रहा है, एक हद तक इसका प्रयोग जरूरी है लेकिन आजकल के हालात ऐसे हो गए हैं कि जैसे खेतों में यूरिया ही उगाया जा रहा हो। क्या ऐसा हो सकता है कि राज्य के किसान ऑर्गेनिक खेती की तरफ बढ़ें और सरकार उन्हें इसके लिए प्रोत्साहित करे। हरियाणा में अनेक जिलों में ऐसे उपक्रम जारी हैं लेकिन मामला फिर वहीं अटक जाता है कि किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता और वे न दालें उगाना पसंद करते हैं और न ही गेहूं और धान की रवायती फसलों से बाहर आना। निश्चित रूप से मान सरकार के कृषि नीति को लेकर जारी प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन सर्वाधिक जरूरत इसकी है कि यह नीति वास्तव में धरातल पर आए और इसका प्रयोजन तात्कालिक नहीं अपितु दीर्घकालिक हितों का संवर्धन हो। 

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