FSSAI का यू-टर्न, जारी रहेगी A1 और A2 कैटगरी के दूध की बिक्री; अपने ही आदेश को क्यों लिया वापस?

FSSAI का यू-टर्न, जारी रहेगी A1 और A2 कैटगरी के दूध की बिक्री; अपने ही आदेश को क्यों लिया वापस?

Sale of A1 and A2 category Milk will Continue

Sale of A1 and A2 category Milk will Continue

नई दिल्ली। Sale of A1 and A2 category Milk will Continue: डेयरी कंपनियों के ए2 दूध की पैकेजिंग, मार्केटिंग एवं बिक्री पहले की तरह जारी रहेगी। फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड अथारिटी आफ इंडिया (FSSAI) को पांच दिनों के अंदर अपना निर्देश वापस लेना पड़ा। हालांकि इसके लिए कोई तर्क नहीं दिया गया है। तीन लाइन के पत्र में सिर्फ इतना कहा गया है कि यह निर्णय डेयरी कारोबारियों से परामर्श के बाद लिया जा रहा है।

ऐसे में माना जा रहा है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) की गवर्निंग बाडी के सदस्य वेणुगोपाल बड़ादरा के कड़े प्रतिरोध के बाद FSSAI ने निर्णय वापस लिया है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर देसी नस्ल की मवेशियों की रक्षा के लिए हस्तक्षेप करने का आग्रह किया था। FSSAI को अदालत में घसीटने की भी चेतावनी दी थी।

फूड रेगुलेटर ने क्यों लगाया था बैन

चार दिन पहले ही नियमों का हवाला देते हुए FSSAI ने ए2 दूध का दावा कर सभी तरह के डेयरी उत्पाद बेचने पर 21 अगस्त से प्रतिबंध लगाया था। विशेष तौर पर घी और मक्खन की बात कही गई थी। FSSAI का कहना था कि गुणवत्ता के आधार पर ए1 और ए2 दूध में कोई फर्क नहीं है। फिर भी ए2 की लेबलिंग कर महंगे दामों पर बेचा जाता है।

डेयरी कंपनियों से कहा गया था कि ऐसे दावों को अपनी वेबसाइट से तुरंत हटा लें। साथ ही फूड बिजनेस आपरेटरों को हिदायत दी थी कि पहले से प्रिंट पैकेट को छह महीने में खत्म कर लें। प्रतिबंध का पत्र FSSAI के कार्यकारी निदेशक इनोशी शर्मा ने जारी किया था, जबकि वापसी का पत्र डायरेक्टर रेगुलेटरी कंप्लायंस राकेश कुमार ने जारी किया है।

उपभोक्ता अधिकारों का उल्लंघन था फैसला?

एफएसएसआई ने जिस तरह आनन फानन में ए 1 और ए2 को लेकर अपना फैसला लिया था वैसे ही वापस भी ले लिया। इसके पीछे सही मायने में क्या कारण है, क्या कोई दबाव था, इसे बाहर आने में तो वक्त लगेगा। लेकिन कई कारणों से एफएसएसआई का पुराना फैसला गलत ही था। ध्यान रहे कि कई मेडिकल जर्नल में ए2 को ए 1 डेयरी प्रोटक्ट से ज्यादा पौष्टिक माना जाता रहा है।

ऐसे में उपभोक्ता का यह अधिकार है कि वह जाने कि उसे क्या दिया जा रहा है। फिर भी ए2 की लेबलिंग पर रोक लगाने का संकेत साफ है कि यह विनियमन जल्दीबाजी में दिया गया है। इससे उपभोक्ताओं की पसंद और गो-पालकों के साथ दूध के छोटे कारोबारियों का व्यवसाय प्रभावित हो सकता था। वैसे भी दूध सेक्टर में डेयरी कंपनियों की मनमानी है। पैसे के लिए तरह-तरह के दावे किए जाते हैं।

हाल के कुछ वर्षों में गाय के दूध का प्रचलन बढ़ा है, लेकिन जो दूसरा दूध सामान्य घरों में पहुंचता है वह गाय, भैंस और कुछ अन्य दुग्ध पशुओं का मिश्रण होता है। पैकेट पर यह स्पष्ट नहीं किया जाता है। यह भी स्पष्ट नहीं किया जाता कि पैकेट का दूध पाउडर से बना है या सीधा गो-पालकों से लिया गया है। जबकि सच्चाई यह है कि बरसात के दिनों में अधिकतर दूध पाउडर से बना हुआ आता है। उपभोक्ता को ऐसे किसी विषय की जानकारी ही नहीं दी जाती है और न ही इसे लागू कराने पर सरकारों का जोर है।

स्वदेसी नस्ल पर बढ़ सकता था खतरा

भारत जैव विविधता वाला देश है, जहां 190.9 मिलियन मवेशी हैं। इनमें देसी नस्ल की 53 मवेशी पंजीकृत हैं, जो 22 प्रतिशत हैं। व्यापक क्रास-ब्री¨डग के चलते 26 प्रतिशत मवेशी की नस्लें बदल गई हैं। शेष 52 प्रतिशत गैर-वर्णित मवेशी हैं। पंजीकृत नस्लों में 8-10 ही ऐसे मवेशी हैं, जिन्हें ए2 बीटा-कैसिन के साथ दुधारू नस्ल की मान्यता प्राप्त है। जलवायु परिवर्तन के चलते स्वदेसी नस्ल की मवेशियों में गिरावट देखी जा रही है।

पिछले पशुधन गणना में स्वदेसी नस्ल की मवेशियों की आबादी में 8.94 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि ए1 बीटा-कैसिन दूध देने वाली संकर नस्ल के मवेशियों की आबादी में 20.18 प्रतिशत वृद्धि हुई है। प्रधानमंत्री भी ए2 किस्म के दूध देने वाली नस्लों के मुरीद हैं। केंद्र सरकार मवेशियों की स्वदेसी नस्ल के संरक्षण-संव‌र्द्धन के लिए 2014 से ही गोकुल मिशन जैसी योजना चला रखी है।

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