प्राकृतिक खेती से केमिकल फ्री होंगे फल, सुरक्षित होगा बागवानों का कल
Fruits will be chemical free from natural farming
Fruits will be chemical free from natural farming : सोलन। प्रदेश में प्राकृतिक खेती (Natural Farming) से केमिकल फ्री फल (Chemical Free Fruit) मिलेंगे, जिससे स्वास्थ्य पर कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा, साथ ही बागवानों को भी मंहगे केमिकल खरीदने से मुक्ति मिलेगी और बाजार पर निर्भरता समाप्त होगी। इसके लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही परियोजना के तहत डा. वाई.एस. परमार बागवानी एवं वानिकी विवि नौणी के कृषि विज्ञान केंद्र सोलन (कंडाघाट) में जीरो बजट प्राकृतिक खेती के तहत सेब, कीवी, आड़ू व प्लम के प्रदर्शन बागीचे तैयार किए गए हैं। इन बागीचों में पिछले 2-3 वर्षों से प्राकृतिक खेती को लेकर अनुसंधान चल रहा है। इन प्रदर्शनी बागीचों में बिना केमिकल प्रयोग व स्वयं तैयार किए गए प्राकृतिक आदानों से ही सफलतापूर्वक खेती की जा रही है। कृषि विज्ञान केंद्र कंडाघाट के माध्यम से किसानों को जहर मुक्त प्राकृतिक खेती (Natural Farming) के लिए जागरूक किया जा रहा है।
बागवानों को किया जा रहा जागरुक
सुभाष पालेकर शून्य बजट प्राकृतिक खेती (Natural Farming) को बढ़ावा देने के लिए यहां समय-समय पर बागवानों को जागरूकता किया जा रहा है। अब तक यहां 5 जागरूकता शिविर लगाए जा चुके हैं। मंगलवार को भी चायल में जागरूकता शिविर लगाया जाएगा। फरवरी माह में किसानों को इसका प्रशिक्षण दिया जाएगा, जिसमें प्राकृतिक रूप से बिना केमिकल का प्रयोग किए बागीचे तैयार करने का प्रशिक्षण दिया जाएगा। किसान-बागवानों को स्वयं इसके घटक तैयार करने की प्रयोगात्मक जानकारी दी जाएगी।
के.वी.के. में चार प्रदर्शन बागीचे तैयार किए गए
के.वी.के. में चार प्रदर्शन बागीचे तैयार किए गए हैं, जिनमें सेब, कीवी, आड़ू व प्लम के बागीचे हैं। इनमें घास से आच्छादन (मल्चिंग) की गई है। घास से आच्छादन करने से पौधों के आसपास नमी बनी रहती है। खरपतवार भी कम उगती है और ऑर्गेनिक कार्बन बढ़ती है। इसके अलावा घास के नीचे केंचए अच्छी तरह पनपते हैं, जो फसलों के लिए बहुत उपयोगी होते हैं।
वाप्सा चैनल से होती है पौधों की सिंचाई
प्रदर्शन बागीचों में पौधों में सीधी सिंचाई नहीं की जाती। सिंचाई के लिए पौधे के तने से थोड़ी दूरी पर छोटी नालियां बनाई गई हैं। इन नालियों में सिंचाई के लिए पानी दिया जाता है। इससे पौधों की जड़ें नमी वाली भूमि की तरफ फैलती हैं। पानी सीधा तने में न जाने से इसकी जड़ों के खराब होने व बीमारियों की संभावना बहुत कम हो जाती है। वाप्सा चैनल से सिंचाई करने से पौधों में पानी व हवा का संतुलन भी बना रहता है।
फलदार पौधों के साथ अन्य फसलें भी उगा सकेंगे किसान
प्रदर्शन बागीचों (Display Gardens) में बीच की खाली जगह का भी पूरा प्रयोग किया गया है। खाली जगहों पर छोटी फसलें जैसे मटर, धनियां, मेथी, जौ लगाई गई हैं। इसके अलावा फलीदार फसलें, दालें व कोदा भी इस खाली जगह में लगाया जाता है, जिससे पौधों को प्राकृतिक रूप से नाइट्रोजन व अन्य पोषक तत्व भी उपलब्ध हो सकें। इन प्राकृतिक फसलों का उपयोग विभिन्न आदान बनाने में भी किया जाता है। किसान-बागवान फलदार पौधों के साथ-साथ अन्य सहयोगी फसलें उगाकर दोहरा लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
स्वयं तैयार किए जा रहे विभिन्न घटक
प्राकृतिक बागीचों (Display Gardens) में लगाई जाने वाली छोटी फसलों के बीजों को उपचारित करने के लिए बीजामृत प्रयोग किया जाता है। खेत तैयार करते समय व गुड़ाई के समय 1 बीघा में 1 क्विंटल घन जीमामृत डाला जाता है। इससे बागीचों में खाद की कमी पूरी होती है और सभी पोषक तत्व भी मिलते रहते हैं। पौधों व साथ लगी फसलों के लिए 15-15 दिन के जीवामृत का प्रयोग किया जाता है। यह घटक जमीन में जीवाणुओं की सं या बढ़ाता है व विभिन्न बीमारियों से भी रक्षा करता है। पौधों में 80 फीसदी फूल आने पर सप्तधान्यांकुर का 2 बार 3 प्रतिशत मात्रा में छिडक़ाव किया जाता है। पौधों को कैंकर रोग व अन्य कीड़ों के प्रकोप से बचाने के लिए पौध लेप लगाया जाता है। यह पौध लेप गोबर, गौमूत्र, हल्दी, हींग, बिच्छू बूटी व अलसी तेल से तैयार किया जाता है। रोग नाश के लिए खट्टी लस्सी, सौंठास्त्र व रामबाण का छिडक़ाव व कीटनाश के लिए नीम अस्त्र, दरेक अस्त्र, ब्रह्मास्त्र व दशपर्णी अर्क का 10 से 15 दिन के अंतराल पर छिडक़ाव किया जाता है।
किसानों के खेतों मतें तैयार किए गए 8 प्रदर्शन
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research) द्वारा प्राकृतिक खेती (Natural Farming) को बढ़ावा देने के लिए लंबी अवधि की परियोजना के तहत कृषि विज्ञान केंद्र कंडाघाट में सेब, कीवी, आड़ू व प्लम के प्रदर्शन तैयार किए गए हैं। इसके अलावा 8 प्रदर्शन किसानों के खेतों में तैयार किए गए हैं। इसमें बिना रसायन का प्रयोग किए सफलतापूर्वक खेती की जा रही है। किसानों को प्राकृतिक खेती के प्रति जागरूक किया जा रहा है और अब तक 5 जागरूकता शिविर लगाए जा चुके हैं और फरवरी माह में किसानों को इसका प्रयोगात्मक प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।
- डा. आरती शुक्ला, पौधों की वरिष्ठ रोग विशेषज्ञ, के.वी.के. कंडाघाट।
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