फ्रीकी-फायर (अनूठी आग) - पहली मैनेजमेंट कॉमिक्स के रोचक अंश
Freaky-Fire
राजनीति में सुधार और मीडिया का दबाव...!
Freaky-Fire: विश और गिन्नी से मीटिंग के तुरंत बाद ही आज फिर किसी पत्रकार बंधु का फोन आ गया। इन्हें भी ये जानना है कि मैं क्यों पो'लीडर्स के ज़रिये लोगों को प्रशिक्षित होकर राजनीति में अपना कैरियर बनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा हूँ। अब राजनीति हमारे समाज के सुधार के लिए कितना कुछ करती है, राजनीति भी तो हमसे उम्मीद करती है कि उसका भी कोई सुधार करे लेकिन हम हैं कि हमें राजनीति के सुधार की कोई चिंता ही नहीं है। हम बस चिल्लाते रहते हैं कि हमारी राजनीति विश्व के लिए 'लोकतंत्र' का एक अनोखा उदाहरण है। मैंने कब कहा कि हम राजनीति में सिर्फ़ शिक्षित लोग चाहते हैं, मैं चाहता हूँ कि प्रशिक्षित लोग आएं जो राजनीति के अलग-अलग कौशल को सीखकर आएं - जैसे कि 'न्यू पोलिटिकल डायनामिक्स', 'पोर्टफोलियो मैनेजमेंट', 'विजडम डेवलपमेंट फॉर बैलेंस्ड डिसिशन', 'डिसेंट्रलाइज़्ड आउटलुक फॉर कलेक्टिव ग्रोथ', 'मैनेजिंग प्रोडक्टिविटी इंडेक्स', 'वेस्ट मैनेजमेंट फॉर क़्विक ग्रोथ' और ऐसे ही और भी विषयों पर हम ज़ोर देते हैं। इसमें क्या ग़लत बात है, ये समझ नहीं आता है।
अब ये पत्रकार महोदय मेरा इंटरव्यू लेना चाहते हैं। इंटरव्यू भी लेना है और फ़ोन पर उसका रिहर्सल शुरू करने लगे, तभी मैंने उन्हें रोका। वो साहब तो शुरू हो गए कि आपको ऐसा काम करने का ख्याल क्यों आया? चलो यहाँ तक तो ठीक है लेकिन महाशय का दूसरा प्रश्न था कि 'क्या आप संविधान को बदलना चाहते हैं?' क्या?...ये सब विचार इनके दिमाग में आते कैसे हैं? मैं किस तरह से संविधान को बदलना चाहता हूँ ये मेरे ही समझ में नहीं आ रहा है लेकिन मीडिया के दिमाग में आ गया...वाह!!
हालाँकि मीडिया का थोड़ा दबाव अब महसूस होता है, लेकिन मैं इसके लिए पहले से तैयार था। मैंने इस बात को तब महसूस किया जब मैं एक MLA था और उस दिन तो ये बात मेरे दिल में घर कर गयी जिस दिन मुझे अपने पद को त्यागना पड़ा। हम राजनीति में शब्दों का मायाजाल बनाते हैं और जनता को इसी मायाजाल में फंसाए रखते हैं। लेकिन क्या राजनीतिज्ञ ही अकेले दोषी हैं? ना...बिलकुल नहीं! इसका मूल कारण हम सभी हैं!...हममें से प्रत्येक व्यक्ति!! हमें देश भक्ति की परिभाषा को नारों से आगे ले जाना होगा। पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी को प्रतिदिन मनाना होगा। देश की सच्ची सेवा बिना ईमानदारी के नहीं हो सकती। मैनेजमेंट में हम विन-विन की बात करते हैं - कुछ ऐसा करें कि हर काम में आप और हम दोनों जीतें, लेकिन वास्तव में तो हम खुद को हर बार जीता हुआ देखना चाहते हैं...दूसरा मरता है तो मरे! ये मानसिकता बदलनी होगी।
कुछ लोग कहते हैं कि एक चना भाड़ कैसे झोकेगा? कोशिश तो करें, हो सकता है कई और चने जुड़ने को तैयार हों। खैर, पत्रकार महोदय कॉफी पीने आने वाले हैं और उनके आने से पहले मुझे आज एक नए कोर्स का रिव्यु करना है...मेरी टीम मीटिंग रूम में मेरा इंतज़ार कर रही है। आप भी चलिए...आइये!!
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