आत्म विकास के चार चरण
आत्म विकास के चार चरण
हैपीनेस गुरू पी. के. खुराना
एक व्यक्ति के रूप में हमारे विकास के चार चरण होते हैं। पहले चरण में हमारा जीवन ऐसा होता है कि जीवन की स्थितियां हमें नियंत्रित करती हैं और हम जीवन को भुगतते हैं। जीवन में जो भी अच्छा या बुरा आता है, उसे भोगते चलते हैं। जब जीवन पर हमारा कोई अपना नियंत्रण नहीं है तो हम कहते हैं कि लाइफ हैपन्स टु अस। घटनाएं घटती हैं हमारी ज़िंदगी में और हम एक कठपुतली की तरह वैसे ही नाचते हैं जैसे हमारा जीवन हमें नचाता है। आज संसार में 88 प्रतिशत लोग ऐसे ही हैं। इनमें अमीर लोग भी शामिल हैं, बहुत ज्यादा अमीर लोग भी शामिल हैं। अगर 27 साल की शादी के बाद भी दुनिया के चौथे सबसे अमीर आदमी का अपनी बीवी से तलाक हो गया तो कहीं न कहीं बिल गेट्स भी हालात के हाथ की कठपुतली ही है। लोग हमारी ज़िंदगी में आ-जा रहे हैं, घटनाएं घट रही हैं, और हम जीवन को भुगत रहे हैं। यह होता है, लाइफ हैपन्स टु अस। यह हमारे विकास का पहला चरण है।
जब हमने कुछ पैसा कमा लिया, सुख-सुविधाएं इकट्ठी कर लीं, नौकर-चाकर हो गये, हुक्म बजाने वाले हो गये, सिर झुकाने वाले हो गये, फूलमाला पहनाने वाले हो गये। जब समाज में हमें पहचान मिल गयी, तो शुरू होता है दूसरा चरण, और यह दूसरी स्टेज है – लाइफ हैपन्स फॉर अस। इस स्थिति में जीवन बहुत कुछ हमारे नियंत्रण में है। हम किसी दूसरे को हुक्म दे सकते हैं, मनचाहे काम करवा सकते हैं। यह हमारे विकास की दूसरी स्टेज है। तब हम कहते हैं कि लाइफ हैपन्स फार अस। जीवन हमारे सुख के लिए है। जीवन पर पूरा नियंत्रण तो नहीं है पर बहुत सी बातों पर हमारा नियंत्रण है। जीवन हमारे लिए चल रहा है, हमारे अनुसार चल रहा है। ऐसे व्यक्ति में भी एक कमी है, और वह कमी है कि संतुष्टि नहीं है, कुछ न कुछ बाकी है, कहीं कोई खालीपन है, कहीं कुछ अधूरा है जिसके कारण असंतुष्टि है, चाहे वह कोई प्रमोशन है, पावर है, पैसा है, सेक्स है। अधूरापन है, खालीपन है, असंतुष्टि है, लेकिन फिर भी बहुत कुछ है।
जीवन की तीसरी स्टेज में परिवर्तन हमारे अंदर होता है। तब हम कहते हैं कि लाइफ हैपन्स इनसाइड अस। जीवन हमारे अंदर घटित हो रहा है, हमारी सोच विकसित हो रही है, हम खुद को तराश रहे हैं, हम बदल रहे हैं, हम दुनिया को बदलने की कोशिश नहीं करते, किसी दूसरे पर नियंत्रण की कोशिश नहीं करते, किसी पर हक जमाने की जरूरत नहीं रह जाती। अगर कोई नुकसान हो जाए, अपमान हो जाए, गलती हो जाए, हमसे या किसी और से, तो उद्वेलित नहीं होते। गलती खुद से हो जाए तो हम खुद को माफ कर देते हैं। कोई आत्मग्लानि नहीं होती, कोई मलाल नहीं होता। ऐसे ही अगर किसी दूसरे से गलती हो जाए सामने वाले को भी उतनी ही आसानी से माफ कर देते हैं। कोई ज़िद नहीं, कोई गिला नहीं, कोई रंजिश नहीं। कोई नुकसान हो जाए, किसी करीबी रिश्तेदार से नाता टूट जाए, कोई हमारा अपना दुनिया से चला जाए, तो हम उदास होते हैं, कुछ देर के उदास होते हैं पर जल्दी वापिस आ जाते हैं, डिप्रेशन में नहीं जाते। हम निर्लिप्त हैं, अटैच्ड नहीं हैं। जीवन की घटनाएं हमारे सामने घट रही हैं, हम उनके गवाह हैं, विटनेस हैं, बस। यह जीवन की तीसरी स्टेज है, जब जीवन हमारे अंदर घटित होता है, जब हमारी आत्मा खुलती है। हम संतुष्ट रहते हैं, खुश रहते हैं, किसी का बुरा नहीं सोचते, किसी से जलते नहीं, किसी से डरते नहीं, किसी को तंग नहीं करते, किसी को धमकाते नहीं, किसी को डराते नहीं। इस स्टेज को हम कहते हैं कि लाइफ हैपन्स इनसाइड अस। जब हम विकास की दूसरी स्टेज पर पहुंच जाते हैं तो हमारी धूम की शुरुआत हो जाती है, हमारी पहचान बननी शुरू हो जाती है, लेकिन जब हम विकास की तीसरी स्टेज पर पहुंच जाए तो हमारे संपर्क में आने वाला हर व्यक्ति हमारे औरा से, हमारे प्रभामंडल से प्रभावित होता है।
जीवन के विकास की चौथी स्टेज में हम अपना जीवन लोगों के भले में लगा देते हैं। इस स्थिति को कहते हैं – लाइफ हैपन्स थ्रू अस फॉर अदर्स। जीवन की घटनाएं घट रही हैं, हम एक पात्र हैं, एक माध्यम हैं और हमारे माध्यम से समाज का भला हो रहा है। अब कोई चाह नहीं बचती कोई स्वार्थ नहीं बचता, प्रशंसा की इच्छा भी नहीं बचती। कोई कुछ भी कहे, हम अपना काम करते रहते हैं।
सवाल यह है कि हम जीवन के विकास की इस स्थिति तक कैसे पहुंचें? मैंने इसका एक बनाया फार्मूला है – रैग्स। आर, ए, जी, एस – रैग्स। यह एक एक्रोनिम है, जिसमें आर से बनता है रिकगनिशन। हर व्यक्ति को महत्व दीजिए, उसका आदर कीजिए, उसके योगदान की प्रशंसा कीजिए। आप जिसकी प्रशंसा करेंगे वह आपका गुलाम हो जाएगा। कुछ खर्च करने की जरूरत नहीं है, कोई उपहार देने की जरूरत नहीं है। न महंगा, न सस्ता। रैग्स फार्मूले का दूसरा अक्षर है ए, ए यानी एप्रीशियेट। जब आप सामने वाले को समझने की कोशिश करते हैं, उसके संघर्षों को समझते हैं। उससे कुछ गलती हो जाए तो यह याद रखते हैं कि आपसे भी गलतियां होती हैं। ज़रा गहरे उतरेंगे तो हो सकता है कि आपको यह नज़र आये कि गलती तो असल में थी ही नहीं, बस आपको लग रहा था कि गलती हुई है, या आपको नज़र आ जाए कि गलती तो हुई पर सामने वाले की उसमें कोई भूमिका नहीं थी। तब आपका नज़रिया बदल जाता है। रैग्स फार्मूले का तीसरा अक्षर है जी, और जी से बनता है ग्रेटफुल। ग्रेटफुल, यानी कृतज्ञ, यानी अहसानमंद। जीवन ने हमें जो कुछ दिया है हम उसके लिए ईश्वर के अहसानमंद हों तो जीवन में फुलफिलमेंट आती है, संतोष आता है, उत्सव की भावना आती है। इससे हमारा आंतरिक विकास होता है, तब बदलाव हमारे अंदर आता है, लाइफ हैपन्स इनसाइड अस। परिवर्तन अंदर आता है, हमारा व्यवहार बदलता है तो हमारे आसपास के लोगों में भी बदलाव आता है और सबका भला होता है। रैग्स फार्मूले का अंतिम अक्षर है – एस। एस यानी सेल्फ एस्टीम। अपना खुद का आदर, खुद से प्यार। यह है सेल्फ एस्टीम। कोई हमारी निंदा कर दे, कोई हमारा अपमान कर दे, कोई हमारा नुकसान कर दे, किसी से कोई गलती हो जाए, तो हम विचलित न हों, परेशान न हों, अपना नियंत्रण न खोयें और गुस्से में कुछ उल्टा-सीधा न बोल दें, यह सेल्फ एस्टीम है। हमसे कोई गलती हो जाए, गलती से किसी का अपमान हो जाए तो हम माफी मांग लें, आगे के लिए अपना व्यवहार सुधार लें, सामने वाले का कोई नुकसान हुआ हो तो उसकी भरपाई कर दें, पर अगर नुकसान हमारी औकात से बहुत ज्यादा बड़ा हो, उसकी भरपाई संभव न हो, तो हालात को स्वीकार करें और अपने मन में पश्चाताप की कोई भावना न रखें। छोटी-छोटी इन बातों का ध्यान रखेंगे तो जीवन खुशियों की बारात बन जाएगा और हम जीवन का भरपूर आनंद ले सकेंगे।