पूर्व सांसद आनंद मोहन की अभी नहीं होगी रिहाई, पैरोल पर आ रहे हैं बाहर
Former MP Anand Mohan
वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार सिंह
पटना (बिहार) : Former MP Anand Mohan: पूर्व सांसद और बाहुबली नेता आनंद मोहन को लेकर यह कयास लगाया जा रहा था कि उनकी रिहाई लगभग तय है। लेकिन बिहार सरकार(Government of Bihar) ने पूर्व सांसद आनंद मोहन(Former MP Anand Mohan) की रिहाई की जगह उन्हें दूसरी बार पैरोल पर, बाहर निकलने का रास्ता साफ किया है। गौरतलब है कि 23 जनवरी को पटना के मिलर हाईस्कूल परिसर में आयोजित कार्यक्रम में सीएम नीतीश कुमार(CM Nitish Kumar) ने ऐसे इशारे किये थे जिस के बाद ऐसा माना जा रहा था कि आनंद मोहन परिहार नियमों के आधार पर जल्द जेल से रिहा हो जाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अब सरकार उन्हें पैरोल पर बाहर निकाल रही है। कानून के जानकारों की मानें, तो सरकार के महज एक नोटिफिकेशन से आनंद मोहन की रिहाई सम्भव थी। बिहार में रिमिशन (परिहार) की पॉलिसी सबसे पहले 1984 में बनी थी। इसमें ये प्रावधान था कि 14 वर्ष की सजा काट लेने के बाद बंदी को रिमिशन के साथ 20 साल की सजा काटना मान लिया जाता है। बंदियों को परिहार कानून के तहत साल में कम से कम 59 दिन का परिहार और विभिन्न अवकाशों को जोड़ कर, पूरी सजा में से इस अवधि को घटा लिया जाता है। वैसे, बंदी के आचरण को देखते हुए सालाना परिहार की अवधि बढ़ाई भी जा सकती है। वर्ष 2002 में परिहार कानून में एक संशोधन किया गया। इसमें दो उप धारा जोड़ी गयी। पहली उप धारा के मुताबिक, कैदियों को परिहार पर छोड़ने का निर्णय लेने के लिए जेलर की जगह रिमिशन बोर्ड बनाया गया। इनके निर्णय के बाद ही कैदी छोड़े जाएंगे। इस रिमिशन बोर्ड में गृह सचिव, डिस्ट्रिक्ट जज, जेल आईजी, होम सेक्रेटरी, पुलिस प्रतिनिधि के साथ लॉ सेक्रेटरी शामिल होते हैं।
5 कैटेगरी के कैदी को नही छोड़ने का प्रावधान / Provision not to leave the prisoner of 5 category
दूसरी उप धारा के अनुसार, 5 कैटेगरी के कैदी को नही छोड़ने का प्रावधान शामिल किया गया। ये ऐसे कैदी होते हैं, जो एक से अधिक मर्डर, डकैती, बलात्कार, आतंकवादी साजिश रचने और सरकारी अधिकारी की हत्या के दोषी होंगे। उनके छोड़ने का सीधा निर्णय सरकार लेगी। आनंद मोहन एक सरकारी अधिकारी की हत्या के दोषी पाए गए हैं। ऐसे में उन्हें परिहार मिलने के पीछे के क्या-क्या तर्क हैं ? कानून विशेषज्ञ बताते हैं कि 2002 में रिमिशन के नियम में संशोधन जरूर हुआ था लेकिन 2007 तक रिमिशन बोर्ड का गठन नहीं हो पाया था। इस कारण से हाईकोर्ट की तरफ से भी यह आदेश जारी किया जा चुका है कि 2002 के सर्कुलर को 2007 तक लागू ही नहीं किया जा सकता है। दीगर बात है कि आनंद मोहन को 2007 में सजा हुई है। यानि सरकार के इस परिहार कानून के दायरे से पूर्व सांसद आनंद मोहन बाहर हैं।
महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि पर एक समारोह का आयोजन / Organized a function on the death anniversary of Maharana Pratap
इधर, पटना के मिलर हाई स्कूल परिसर में 23 जनवरी को महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि पर एक समारोह का आयोजन हुआ था। इस समारोह में आनंद मोहन समर्थकों की तरफ से उन्हें रिहा करने की माँग हुई। तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी इस संबंध में इशारा किया था। उन्होंने मंच से ही इस बात की घोषणा की थी कि वह आनंद मोहन की रिहाई के बारे में सोच रहे हैं। इस पर काम किया जा रहा है। तब उन्होंने कहा था कि आनंद मोहन हमारे मित्र रहे हैं। जब वह जेल गए थे, तो उनसे मिलने वे कई नेताओं के साथ गए थे। आनंद मोहन की बेटी की शादी 15 फरवरी को होनी तय है। आनंद मोहन, बिहार सरकार के 2002 के परिहार कानून के दायरे से बाहर हैं। अगर बिहार सरकार के परिहार कानून की बात करें, तो आनंद मोहन की रिहाई इस कानून में स्थायी बदलाव से ही सम्भव थी। इसके लिए सदन में अध्यादेश लाया जाता और बदलाव पर सहमति बनाई जाती। यह प्रक्रिया थोड़ी जटिल थी। लेकिन जब आनंद मोहन इस कानून के दायरे से बाहर हैं, तो बिहार सरकार के महज एक नोटिफिकेशन से आनंद मोहन की रिहाई तय थी। सरकार के भीतरखाने से जो जानकारी हम तक पहुँची है उसके मुताबिक, पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई के लिए बिहार सरकार, तत्काल कोई भी नोटिफ़िकेशन जारी करने नहीं जा रही है। यानि अब यह पूरी तरह से यह साफ है कि आनंद मोहन की पूर्ण रिहाई पर, राजनीतिक संकट के बादल अभी भी मंडरा रहे हैं। बिहार सरकार, पूर्व सांसद आनंद मोहन को 15 दिन के पैरोल पर बाहर निकालने जा रही है। अगर आनंद मोहन और उनके परिजन चाहेंगे, तो आगे पैरोल की अवधि बढ़ाई जा सकती है। आनंद मोहन आगामी 5 फरवरी को सहरसा जेल से पैरोल पर बाहर आएंगे। सरकार का यह फैसला, पूर्वाग्रह से ग्रसित नजर आ रहा है। इसमें कोई शक नहीं है कि सारे रास्ते वैधानिक तरीके से खुल रहे हैं, तो सरकार को रिहाई में आखिर दिक्कत क्यों हुई ? अपनी हठ और जिद की राजनीति के लिए ख्यातिलब्ध बिहार के सीएम नीतीश कुमार, आनंद मोहन की रिहाई को लेकर पूरी तरह से कटघरे में खड़े नजर आ रहे हैं। इसे हम कुर्सी का दुरुपयोग और व्यतिगत स्वार्थ के साथ-साथ अहंकार की भी संज्ञा देंगे।
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