Super Baby: कुदरत का माने या साइंस का करिश्मा ! देखें पहली बार 3 लोगों के DNA से पैदा हुआ अद्भुत बच्चा, नहीं होगी कोई बीमारी
- By Sheena --
- Thursday, 11 May, 2023
First Super Baby born from three people DNA in UK
Super Baby: ब्रिटेन में पहली बार तीन लोगों के डीएनए का इस्तेमाल कर एक बच्चे का जन्म हुआ है। बच्चे का अधिकांश DNA उनके दो माता-पिता से आता है लेकिन लगभग 0.1% एक तीसरे व्यक्ति-दूसरी महिला से आया है। बिना किसी आनुवांशिक बीमारी के बच्चा ब्रिटेन में हाल ही में पैदा हुआ है और भविष्य में उसे कभी कोई आनुवांशिक बीमारी नहीं होगी। और वास्तव में, शिशु के शरीर में कोई हानिकारक अनुवांशिक परिवर्तन भी नहीं होगा। न ही कोई नुकसानदेह जेनेटिक म्यूटेशन उसमें नजर आएगा। जो बीमारी होगी, उन सबका इलाज करना संभव होगा. इसे पहला सुपरबेबी (SuperBaby) कहा जा रहा है। दरअसल, यह बच्चा तीन लोगों के डीएनए से पैदा हुआ है। इसमें माता-पिता का DNA तो है ही, एक अन्य महिला का डीएनए भी लिया गया है।
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तीन लोगों के DNA से पैदा हुआ बच्चा
आपको बतादें कि ये मामला इंग्लैंड का है, जहां ये खास तरह का बच्चा पैदा हुआ है। और अगर इसे साइंस का चमत्कार कहा जाए, तो कोई गलत बात नहीं होगी। सबसे खास और दिलचस्प बात तो ये है कि ये बच्चा तीन लोगों के डीएनए से पैदा हुआ है। यानी इस बच्चे के तीन माता-पिता होंगे। दरअसल, वैज्ञानिकों ने इस बच्चे के माता-पिता के डीएनए के अलावा तीसरे इंसान का डीएनए भी डाला है। इसके लिए एक खास तकनीक का इस्तेमाल किया गया, जिसे IVF कहा जाता है।
कभी खराब नहीं होगी बच्चे की सेहत
साइंटिस्ट के मुताबिक, नवजात बच्चों को जेनेटिक बीमारियों से बचाने के लिए यह सबसे सफल उपाय है। असल में यह आईवीएफ (IVF) तकनीक का ही एक बदला हुआ रूप है। इस तकनीक से बनने वाले भ्रूण में बायोलॉजिकल माता-पिता के स्पर्म और अंडे के माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria) को मिलाया गया है। माइटोकॉन्ड्रिया किसी भी कोशिका का पावर हाउस होता है। जो भी नुकसानदेह म्यूटेशन होते हैं, वो इन पावर हाउस में जमा रहते हैं। वो बाद में बच्चे की सेहत पर असर डालते हैं। आमतौर पर इससे ग्रसित महिलाओं को प्रेग्नेंसी में दिक्कत आती है। अगर किसी तरह गर्भधारण हो भी गया तो बच्चे को कोई न कोई जेनेटिक बीमारी हो जाती है। उसकी सेहत खराब होने लगती है।
क्या है माइटोकॉन्ड्रिया?
अकसर जेनेटिक बीमारियों से जूझ रही महिलाओं को प्रेग्नेंसी में काफी दिक्कतें आती हैं। अगर बच्चा पैदा हो भी गया तो भी उसकी सेहत सही नहीं रहती। बड़े होने के साथ-साथ उसे कई बीमारियां घेर लेती हैं। इस पूरी स्टेज में माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondrial donation treatment) का अहम रोल होता है। अगर माइटोकॉन्ड्रिया सही से काम करेगा तो वो कोशिका को ऊर्जा देगा और इससे अंग बनेंगे। लेकिन अगर कोई जेनेटिक म्यूटेशन है तो माइटोकॉन्ड्रिया भी डैमेज हो जाएगा। जिससे ऊर्जा खत्म हो जाएगी। ऐसे में बच्चे का विकास ना होना जाहिर है। आमतौर पर इंसान अपनी मां से ही ज्यादातर माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondrial donation treatment) हासिल करता है। तो क्योंकि साइंस का ये करिश्मा माना गया है कि इस बच्चे को तैयार करने के लिए वैज्ञानिकों ने सबसे पहले स्वस्थ महिला के अंडों से ऊतक लेकर एक IVF भ्रूण तैयार किया। इसके बाद इस भ्रूण में बायोलॉजिकल मां-बाप के स्पर्म और अंडों के माइटोकॉन्ड्रिया को मिलाया गया। हैरानी की बात है कि माता पिता के अलावा बच्चे के शरीर में किसी तीसरी महिला के भी जीन को डाला गया। तो असल में इस बच्चे के तीन माता-पिता हैं। हालांकि, बच्चे के शरीर में 99.8 प्रतिशत डीएनए उसके खुद के मां-बाप का ही है।