Finally the e-vehicle policy had to be changed under pressure

आखिरकार दबाव में बदलनी पड़ी ई-व्हीकल पालिसी, पांच साल में चंडीगढ़ को कार्बन न्यूट्रल सिटी बनाने का रखा गया है लक्ष्य

Finally the e-vehicle policy had to be changed under pressure

Finally the e-vehicle policy had to be changed under pressure

Finally the e-vehicle policy had to be changed under pressure-चंडीगढ़ (साजन शर्मा)I बदलते पर्यावरण के मद्देनजर चंडीगढ़ प्रशासन ने सिटी ब्यूटीफुल में ईवी पालिसी लागू की थी जिसमें दोपहिया वाहनों का जुलाई के पहले सप्ताह से रजिस्ट्रेशन बंद करने की घोषणा की गई थी लेकिन प्रशासन को आखिरकार शहरवासियों व दोपहिया वाहन एजेंसियों के दबाव में आकर ईवी पॉलिसी में व्यापक बदलाव करने पड़े। ईवी पालिसी को लेकर प्रशासक के एडवाइजर धर्मपाल की अध्यक्षता में सोमवार को मीटिंग हुई जिसमें मेयर अनूप गुप्ता, होम सेक्रेट्री नितिन कुमार यादव, फाइनेंस सेक्रेट्री विजय एन जाडे, साइंस एंड टेक्नोलॉजी एंड री-न्यूएबल एनर्जी सेक्रेट्री अरुलराजन समेत अन्य प्रशासनिक अफसर मौजूद रहे। इस मीटिंग में इलेक्ट्रिक व्हीकल पालिसी 2022 की समीक्षा की गई।

कार्बन एमिशन और फुट प्रिंट घटाने के लिहाज से इस पालिसी में कई कदम उठाये गए थे। इनमें एक कदम था शहर में लोगों को इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने व प्रयोग करने के लिए प्रेरित करना। इसके पीछे मकसद था कि पांच साल, यानि 2027 तक जीरो एमिशन व्हीकल की ओर लोग चले जाएं। चरणबद्ध तरीके से इलेक्ट्रिक व्हीकल को उतारने का प्लान तैयार किया गया। इसके लिये चंडीगढ़ प्रशासन ने बाकायदा टारगेट भी सेट किये। लोगों की मांग पर इन टारगेटों और पॉलिसी में प्रशासन की ओर से कुछ परिवर्तन किये गए हैं।

-टू व्हीलर इलेक्ट्रिक व्हीकल कैटेगरी में छूट दी गई है। वर्तमान में इसका 70 प्रतिशत टारगेट कम करके 25 प्रतिशत कर दिया गया है। इसी तरह थ्री व्हीलर कैटेगरी में ई व्हीकल का टारगेट 40 प्रतिशत से घटाकर 35 प्रतिशत कर दिया गया है। चौपहिया गुड्स व्हीकल में टारगेट 40 प्रतिशत से 15 प्रतिशत जबकि ई बसों का टारगेट घटाकर 50 प्रतिशत से 25 प्रतिशत कर दिया गया है।

कमर्शियल ई-कार के टारगेट में कोई बदलाव नहीं किया गया है क्योंकि 20 प्रतिशत का सेट टारगेट पहले ही अचीव कर लिया गया है। पर्सनल ई-कार के मामले में 10 प्रतिशत का टारगेट तय था जबकि 20 प्रतिशत हासिल कर लिया गया है। वर्ष 2024 के लिए यह टारगेट 20 प्रतिशत से 25 प्रतिशत कर दिया गया है। ई-4 व्हीकल्स पर 20 लाख की कैपिंग हटा दी जाएगी लेकिन 1.5 लाख रुपये का इन पर जो इंसेटिव है वह पूर्ववत रहेगा। सभी सरकारी विभाग जिनमें लोकल बॉडी भी शामिल है, ई व्हीकलों की खरीद करेंगे। कहीं अगर दिक्कत होगी तो कंपीटेंट अथॉरटी से इसका अप्रूवल लिया जाएगा। फिलहाल ई-साइकिल के लिए यूटी, चंडीगढ़ कीमत की 25 प्रतिशत सबसिडी देता है। यह कैपिंग पहले 3 हजार थी जिसे बढ़ाकर अब 4 हजार कर दिया गया है। ऑटोमेटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया सर्टिफिकेशन अब इलेक्ट्रिक टू व्हीलर सबसिडी के लिए मान्य होगा। शहर में 53 लोकेशंस पर 418 गन के साथ चार्जिंग स्टेशन इंस्टाल किये जाएंगे। ये सब प्रयास चंडीगढ़ को 2027 तक कार्बन न्यूट्रल सिटी बनाने की दिशा में किये जा रहे हैं।

आखिर क्यों बदलनी पड़ी पॉलिसी

पहले जुलाई के पहले सप्ताह से दोपहिया वाहनों की आरएलए में रजिस्ट्रेशन बंद करने का फरमान जारी किया गया था। इसका विरोध हुआ तो अब इस निर्णय को बदल दिया गया। पहले कहा जा रहा था कि ईवी वाहनों को प्रमोट करने के लिए पेट्रोल वाले दोपहिया वाहनों का कोटा तय कर दिया गया है। चूंकि इनकी रजिस्ट्रेशन का वर्ष 2023 के लिए कोटा पूरा हो चुका है लिहाजा इनका रजिस्ट्रेशन जुलाई में ही बंद कर दिया जाएगा। अन्य श्रेणियों के पेट्रोल व डीजल वाहनों का रजिस्ट्रेशन भी साल के अंत में बंद करने की बात कही जा रही थी। प्रशासन की दलील है कि शहरवासियों को ईवी वाहनों को अपनाने व इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। प्रशासन ने पॉलिसी बनाने से पहले नहीं देखा कि अभी ईवी वाहन कितने महंगे हैं। दूसरा ईवी वाहनों के लिए अभी तक मूलभूत ढांचा भी तैयार नहीं हुआ है। चंद चार्जिंग स्टेशन ही प्रशासन अभी तैयार कर पाया है। तीसरा ईवी व्हीकल की बैटरी इतनी महंगी है कि कुछ सालों बाद ही चालकों पर अनावश्यक बोझ इससे पडऩे वाला है। चौथा प्रशासन तो प्रदूषण और क्लाइमेट चेंज की कवायद से बचने में जुटा है लेकिन इन ईवी वाहनों की खराब हुई बैटरियों को कैसे ठिकाने लगाया जाएगा इसको लेकर कोई पॉलिसी अभी तक तैयार नहीं की गई है। बैटरियों के जखीरे को कैसे समाप्त किया जाएगा यह भी अपने आप में एक बड़ी समस्या बनकर उभरने वाला है। विशेषज्ञ बता रहे हैं कि पेट्रोल व डीजल के वाहनों से तो इतना प्रदूषण नहीं होता जितना इन बैटरियों के जरिये से शुरू हो जाएगा। इनके मुताबिक खराब बैटरियों से निपटना अपने आप में प्रशासन के लिए एक बड़ी समस्या के तौर पर उपजेगा।