fight against the epidemic intensifies

महामारी से लड़ाई हो तेज

महामारी से लड़ाई हो तेज

fight against the epidemic intensifies

देश में कोरोना संक्रमण का नया वेरिएंट ऑमिक्रॉन तेजी से फैल रहा है। यह तब है, जब अगले वर्ष पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होने हैं। अभी चुनाव आयोग ने चुनावों की घोषणा नहीं की है, लेकिन राजनीतिक दल इसकी तैयारी कर चुके हैं। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश के लगातार दौरे करते हुए शिलान्यास और उद्घाटन के बाद रैलियों को संबोधित कर रहे हैं। वहीं समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव भी यात्राएं निकाल रहे हैं, इन रैलियों, यात्राओं में हजारों की तादाद में लोग जुट रहे हैं। इस दौरान कोरोना प्रोटोकॉल का एक अक्षर तक फॉलो नहीं हो रहा। इस वर्ष की शुरुआत में पंजाब में नगर निकाय चुनाव और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव समेत दूसरे राज्यों में उपचुनाव हुए थे, जिनमें कोरोना नियमों की धज्जियां खूब उड़ी थी। उसके बाद अप्रैल-मई में जैसे हालात बने थे वे बेहद दुखदायी और देशवासियों पर संकट थे। अब जब ओमिक्रॉन अपने दायरे को बढ़ाता जा रहा है, तब यह सोचना जरूरी है कि क्या विधानसभा चुनाव कराए जाने चाहिएं। यह तब है, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि जीवन बचेगा तो रैलियां आगे भी होती रहेंगी।

अदालत ने निर्वाचन आयोग से कहा है कि चुनावी रैलियां रोकी जाएं। वहीं प्रधानमंत्री से भी सीधे आग्रह किया है कि वे चुनाव टालने पर विचार करें। अदालत ने इस दौरान कहा कि पंचायत चुनाव और पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव ने काफी लोगों को संक्रमित किया। बेशक, अदालत की राय अहम है, लेकिन सवाल यही है कि क्या चुनाव को टालने से कोरोना संक्रमण रुक जाएगा। चुनाव संवैधानिक प्रक्रिया है, चुनाव समय पर न होने की स्थिति में राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप बढ़ेंगे वहीं लोकतांत्रिक प्रक्रिया को भी नुकसान पहुंचेगा। कार्यकारी मुख्यमंत्री होने की स्थिति में जनता से जुड़ी योजनाओं को आगे नहीं बढ़ाया जा सकेगा वहीं जनहित के कार्यों पर फुल स्टॉप लग जाएगा। लॉकडाउन के दौरान देश ने किस प्रकार के आर्थिक हालात झेले हैं, वह पूरे देश को मालूम है। अब अगर राजनीति और प्रशासनिक स्तर पर भी लॉकडाउन लग जाएगा तो यह स्थिति खराब कर देगा। हालांकि कोरोना और उसके नए वेरिएंट की रोकथाम के लिए दूसरे साधनों पर काम किया जाना लाजमी हो गया है।

केंद्र सरकार ने बढ़ते मामलों के बाद सक्रियता बढ़ा दी है। राज्य सरकारों को जहां टीकाकरण में तेजी लाने को कहा गया है, वहीं रात का कर्फ्यू बढ़ाने और कोरोना प्रोटोकॉल को लेकर सख्ती दिखाने को निर्देश दिए गए हैं। राज्य सरकारों की ओर से भी कदम उठाए जा रहे हैं, अस्पतालों में विशेष वार्ड फिर से तैयार कर दिए गए हैं, वहीं दवाओं, ऑक्सीजन के प्लांट सक्रिय किए गए हैं। बेशक, इस बार कोरोना संक्रमण का विस्तार उतने बड़े पैमाने पर नहीं होगा क्योंकि अब ज्यादातर लोगों को वैक्सीन लग चुकी है, लेकिन फिर भी सावधानी और सतर्कता बढ़ाकर आने वाली मुसीबत का सामना बेहतर तरीके से किया जा सकता है। गौरतलब है कि गुरुवार को एक दिन में 89 केस सामने आए हैं। क्रिसमस और नववर्ष पर होने वाले जश्न की वजह से हालात बिगड़ सकते हैं, ऐसे में रोकथाम बढ़ाई जानी जरूरी है। इस बीच यह भी हुआ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद उच्च स्तरीय बैठक में अधिकारियों को निर्देशित किया है। उन्होंने कहा कि देश में कोरोना के खिलाफ लड़ाई खत्म नहीं हुई है। मालूम हो, इस वर्ष की शुरुआत में जब देश में कोरोना की स्थिति अनियंत्रित हुई थी तो इसके लिए प्रधानमंत्री समेत केंद्र सरकार को दोषी ठहराया गया था। आरोप लगा था कि सरकार ने इसका ध्यान नहीं दिया और राज्य सरकारों को भी सचेत नहीं किया। इसकी वजह से सभी अपनी मनमानी करते रहे। हालांकि अब दूध की जली सरकार छाछ को भी फूंक कर पी रही है। यही वजह है कि जैसे-जैसे संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं, केंद्र सरकार सचेत हो गई है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों को निर्देशित किया है कि जिन राज्यों में टीकाकरण कम हुआ है, केस बढ़ रहे हैं और स्वास्थ्य संसाधन पर्याप्त नहीं है, वहां पर टीम भेजें। इस दौरान उन्होंने सभी पात्र लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज लगाने को भी कहा। वैसे, कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जिनमें कोरोना वैक्सीन लगी होने के बाद भी संक्रमण हुआ। ऐसे में अब बूस्टर डोज की बात होने लगी है। यह तब है, जब देश में 18 साल से कम उम्र के बच्चों, किशोरों को तो टीके लगे ही नहीं हैं। दिवाली के फौरन बाद राज्य सरकारों में यह होड़ लग गई थी कि स्कूलों को खोल जाए। न जाने किस प्रभाव में स्कूलों को खोल भी दिया गया, अभिभावकों की राय का भी इस दौरान कोई मायना नहीं रख गया। स्कूल संचालकों ने ऐसा प्रतीत कराया, जैसे कि स्कूलों में आकर ही बच्चे संपूर्ण ज्ञान हासिल कर सकते हैं। हालांकि उस दौरान अदालतों ने भी ऐसी टिप्पणी नहीं की कि जीवन बचेगा तो स्कूल आगे भी चलते रहेंगे। अब चुनाव नजदीक हैं तो ऐसी टिप्पणी सामने आ रही है। क्या बच्चों का जीवन बहुमूल्य नहीं है? खैर, समय रहते स्कूलों को फिर बंद करके ऑनलाइन कक्षाएं लगाई जा रही हैं। जाहिर है, यह बहुत बड़ा संकट है और एक के बाद एक नया वायरस आने की आशंका है। ऐसे में किसी समुचित इलाज के बगैर कोरोना प्रोटोकॉल के मुताबिक ही जीवन यापन करना होगा। भीड़ पर रोक जरूरी है, लेकिन चुनावों के दौरान आदर्श प्रक्रिया अपनाई जानी जरूरी है, जिसमें वर्चुअल रैलियों की ही अनुमति हो। हालांकि ऐसा होगा, इसमें काफी संशय है। फिर भी ओमिक्रॉन से बचाव के लिए हरसंभव कदम उठाए जाने आवश्यक हैं।