Farmer agitators

Editorial: किसान आंदोलनकारियों को अपनी आलोचना भी सुननी होगी

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Farmer agitators

Farmer protesters will have to listen to their criticism too: भाजपा सांसद एवं अभिनेत्री कंगना रनौत ने किसान आंदोलन की यह कहकर आलोचना की है कि इस दौरान उपद्रव हुआ और रेप एवं हत्या की गई। इस मामले पर अब पंजाब के किसान नेता जहां इसकी  तीखी आलोचना कर रहे हैं वहीं विपक्ष की ओर से भी कड़ी बयानबाजी सामने आ रही है। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन को खत्म हुए अब काफी समय हो चुका है, लेकिन क्या वास्तव में इससे इनकार किया जा सकता है कि जो आरोप सांसद कंगना रनौत ने लगाए हैं, वे झूठे और मनगढ़ंत हैं। आखिर आज का समाज आगे दौड़, पीछे छोड़ की प्रणाली पर क्यों चलने लगा है। यह भी सच है कि किसान आंदोलन के दौरान कुंडली बॉर्डर पर एक युवती के साथ दुष्कर्म हुआ था, वहीं यह भी सच है कि इस दौरान एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई थी। हालांकि समय के साथ यह सब घटनाएं दफन कर दी गई हैं।

किसान आंदोलन के संचालक अगर इस बात की दुहाई देते हैं कि उनका इन वारदातों से कोई लेना-देना नहीं है तो यह एक पक्ष हो सकता है। क्योंकि कुंडली बॉर्डर और वे तमाम  जगह जहां पर आंदोलनकारी जमा थे, वहां का माहौल काफी हद तक अस्तव्यस्त हो चुका था। इसके अलावा 15 अगस्त पर दिल्ली की सडक़ों और लाल किले पर जो कुछ घटा था, क्या उससे भी किसान आंदोलनकारी इनकार करेंगे। आखिर इतना बड़ा उपद्रव करके जिसमें एक ऐतिहासिक स्थल और देश की आन-बान-शान के प्रतीक स्थल को क्षति पहुंचाई गई और बाद में तिरंगे के स्थान पर एक धार्मिक ध्वज फहराया गया, क्या इससे भी इनकार किया जा सकता है। आखिर सही को सही और गलत को गलत कहने का सामर्थ्य और साहस आज के समाज के लोगों में क्यों नहीं रह गया है? क्या हर विषय में राजनीति करना उचित है।

सांसद कंगना रनौत उन लोगों की श्रेणी में आती हैं, जोकि दिल की सुनते और कहते हैं। निश्चित रूप से प्रत्येक नागरिक का वास्ता देश की घटनाओं से है। वे उनके संबंध में बोल सकते हैं। ज्यादातर लोग उचित बोलना जानते हैं, लेकिन वे हालात को समझ कर चुप रह जाना पसंद करते हैं। हालांकि कुछ लोग कुछ भी बोलते हैं और अपने निजी स्वार्थ को सामने रखकर बोलते हैं। देश में इस समय तमाम मुद्दे हैं, अब राजनीति और चुनाव को देखकर यह तय किया जाता है कि किस विषय पर कितना बोलना है और किस तरह बोलना है। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन के समय सत्ताधारी दल के नेताओं के ऐसे बयान भी आ रहे थे जिनमें किसानों की कड़ी आलोचना की जा रही थी। लेकिन अब उन बयानों का कहीं रिकार्ड भी शायद नहीं मिलेगा क्योंकि वक्त बदल चुका है।

बेशक, राजनीति कुछ ऐसी ही है, जिसमें पुरानी बातों पर मिट्टी डाल दी जाती है। ऐसा कहा जा रहा है कि सांसद कंगना रनौत के बयान से उनकी पार्टी ने पल्ला झाड़ लिया है। निश्चित रूप से हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं और भाजपा नहीं चाहती कि कोई ऐसा मुद्दा खड़ा हो जोकि विरोधियों के हाथों में हथियार बन जाए। ऐसे में सच्चाई को स्वीकार करने के बावजूद ऐसे बयानों से पल्ला झाडऩा ही बेहतर है। लेकिन किसान आंदोलनकारियों एवं विपक्ष के नेताओं को यह बताना चाहिए कि आखिर इस तरह की वारदातों से वे कैसे इनकार कर सकते हैं या फिर उनसे पल्ला झाड़ सकते हैं।

सांसद कंगना रनौत पर पंजाब में माहौल खराब करने का आरोप लगाया गया है। वहीं उनके खिलाफ एनएसए लगाने और उनके खिलाफ पुलिस कार्रवाई की मांग की जा रही है। बेशक, हो सकता है कि उनके खिलाफ किसी थाने में शिकायत दे भी दी जाए या फिर अदालत का रुख कर लिया जाए। मामला सारा यही होगा कि इन बयानों को लेकर ऐसा माहौल खड़ा किया जाए, जिसमें कोई सच बोलने से घबराए। किसान आंदोलनकारियों को यह बताना चाहिए कि  क्या वास्तव में उनका आंदोलन शांतिपूर्ण था। कुंडली बॉर्डर पर डेढ़ साल के करीब उनके जमावड़े के दौरान यातायात पूरी तरह से ठप हो चुका था और इससे कारोबार एवं जनसामान्य की सेवाओं को बहुत नुकसान पहुंचा था।

केंद्र सरकार के खिलाफ अपनी मांगों को पूरा कराने के लिए पूरे क्षेत्र की व्यवस्था को ठप करने के बावजूद क्या यह कहा जाना चाहिए कि यह सब सही था। दरअसल, यह मामला अब शंभू बॉर्डर पर किसानों के जमावड़े के संबंध में भी उजागर हो रहा है। किसान आंदोलनकारी दिल्ली जाना चाहते हैं लेकिन अपने ट्रैक्टर ट्राली के साथ। कौन नहीं जानता कि इस तरह से हालात को अव्यवस्थित करके केंद्र सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति तैयार की जाएगी। आंदोलन के दौरान 15 अगस्त पर अगर दिल्ली में लाल किले पर उपद्रव नहीं हुआ तो संभव है कि केंद्र पर इतना दबाव नहीं पड़ता। निश्चित रूप से जायज मांगें अपनी जगह हैं, लेकिन उन्हें पूरा कराने के लिए गैर कानूनी तरीके अपनाना उचित नहीं है और अगर ऐसा होता है तो फिर इसकी आलोचना सुनने के लिए भी तैयार रहना होगा। 

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