विकासशील देशों की कर क्षमताओं का विस्तार: वैश्विक दक्षिण के देशों को सतत विकास लक्ष्यों के वित्तपोषण में सहायता करने के लिए भारतीय अध्यक्षता का प्रगतिशील दृष्टिकोण
Expanding the Tax Capabilities of Developing Countries
रश्मि रंजन दास भारत सरकार की मुख्य आयकर आयुक्त हैं और उमा महेश्वरी आर अपर आयकर आयुक्त हैं। ये लेखिका-द्वय के निजी विचार हैं।
Expanding the Tax Capabilities of Developing Countries: साल 2023 अंतर्राष्ट्रीय कराधान के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण वर्ष है, क्योंकि बहुपक्षीय सहयोग के माध्यम से सौ साल से अधिक पुरानी कर संहिताओं को फिर से लिखा जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि मौजूदा कर कानून लगभग अप्रचलित हो गए हैं और इसलिए अर्थव्यवस्था के लगातार बढ़ते डिजिटलीकरण और वैश्वीकरण की कर संबंधी चुनौतियों का समाधान करने में सक्षम नहीं हैं। परिणामस्वरूप, अंतर्राष्ट्रीय कर सहयोग में बहुपक्षवाद की शक्तियों का उदाहरण पेश किया गया है, जिसकी शुरुआत ‘आधार-क्षय और लाभ-स्थानांतरण’ परियोजना से हुई है। डिजिटल अर्थव्यवस्था की चुनौतियों से निपटने के लिए समाधान तैयार करने के ठोस प्रयास किए जा रहे हैं। हालांकि, कर नीति में सुधार, क्षमता-बाधित और छोटे कर प्रशासनों के लिए बस शुरुआत भर है।
भारतीय अध्यक्षता ने विकासशील देशों की कर क्षमताओं में विस्तार को; अंतर्राष्ट्रीय कर-संरचना के किसी भी बदलाव की सफलता तथा घरेलू संसाधन जुटाने के लक्ष्यों में सुधार करने के प्रमुख घटकों के रूप में पहचान की। ये दोनों घटक साथ-साथ होने वाले लाभ हैं। विकासशील सदस्य देशों के सन्दर्भ में सतत विकास लक्ष्यों से जुड़ी व्यापक उपलब्धि सुनिश्चित करने के लिए कर क्षमताओं में विस्तार की रणनीति अनिवार्य रूप से कार्यान्वयन प्रयासों से पहले तैयार की जानी चाहिए। क्षमता निर्माण भी सच्चे बहुपक्षवाद का एक महत्वपूर्ण घटक है- जो यह सुनिश्चित करता है कि परिकल्पित सुधारों से लाभ उठाने में कोई भी कर क्षेत्राधिकार पीछे न छूट जाए।
अंतर्राष्ट्रीय कर-संरचना के बदलाव के शीर्ष पर होने के कारण, वर्तमान सुधार में भाग लेने वाले विकासशील सदस्य देशों के क्षेत्राधिकार के लाभों को सुधार के प्रत्येक प्रयास में प्रभावी भागीदारी के माध्यम से ही हासिल किया जा सकता है। विकासशील देशों के कर प्रशासन की भागीदारी क्षमताओं में विस्तार, यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि अंतर्राष्ट्रीय वार्ताओं के परिणामस्वरूप एक ऐसी कर-व्यवस्था तैयार की जा सके, जो निष्पक्ष, आधुनिक और न्यायसंगत हो। मूल कर नीति से आगे बढ़ते हुए, कर क्षमताओं का निर्माण क्षेत्राधिकारों को ऐसे नीति विकल्प तैयार करने की भी अनुमति देता है, जिनकी जानकारी अनुभवजन्य विश्लेषण से प्राप्त हुई हो। यह अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि अतीत में कई विकासशील क्षेत्राधिकारों ने 'खराब नीतियां' अपनाकर भारी कीमत चुकाई है– यानि, ऐसी नीतियां जो उनके न्यायक्षेत्रों के लिए उपयुक्त या उचित नहीं हैं। विशेष रूप से विकासशील सदस्य देशों के क्षेत्राधिकारों के लिए कर प्रशासन की भागीदारी क्षमताओं को बढ़ाने के साथ-साथ न्यायसंगत कर सुधार के सन्दर्भ में नीति विकल्पों को सक्षम करने की दिशा में, भारतीय अध्यक्षता ने जून, 2023 में वैश्विक दक्षिण के देशों के लिए ‘द्वि-स्तंभ समाधान’ के प्रभाव को समझने के विषय पर पहला घरेलू कार्यक्रम आयोजित किया। विकासशील देशों के जिनेवा स्थित फोरम, साउथ सेंटर के सहयोग से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था। पहले आयोजन की सफलता से प्रोत्साहित होकर, भारतीय अध्यक्षता ने एशियाई विकास बैंक और विश्व बैंक के सहयोग से एशिया प्रशांत टैक्स हब फ्रेमवर्क के तहत अंतर्राष्ट्रीय कराधान विषय पर 3 से 5 अक्टूबर, 2023 तक तीन दिवसीय क्षेत्रीय कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में एशिया प्रशांत क्षेत्र के लगभग 20 विकासशील देशों के कर प्रशासकों और नीति निर्माताओं ने भाग लिया, जिसमें ओईसीडी/जी-20 समावेशी रूपरेखा के तत्वावधान में वर्तमान वार्ता में भाग नहीं लेने वाले सदस्य देशों के प्रतिनिधि भी शामिल थे।
क्षमता निर्माण से संबंधित विभिन्न घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक आयोजित करने के बाद, भारत की अध्यक्षता ने क्षमता निर्माण और दो-स्तंभ वाले समाधान से संबंधित उच्चस्तरीय नीतिगत संवाद में जी-20 के सदस्यों को शामिल करने के महत्व को पहचाना। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ साझेदारी करते हुए, क्षमता निर्माण और दो-स्तंभ वाले समाधान से संबंधित जी20-आईएमएफ उच्चस्तरीय संवाद को वास्तव में सभी क्षेत्राधिकारों में कर संबंधी क्षमताओं को बढ़ाने के उद्देश्य से बहुपक्षीय रणनीति विकसित करने हेतु डिजाइन किया गया था। अक्टूबर 2023 में जी-20 वित्त मंत्रियों एवं केन्द्रीय बैंक के गवर्नरों की चौथी बैठक के मौके पर आयोजित नीतिगत संवाद में जी-20 के सभी सदस्य देशों, आमंत्रित देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के सहायकों व प्रतिनिधियों को एक मंच पर लाया गया।
इस कार्यक्रम में बोलते हुए, आईएमएफ ने अंतर्राष्ट्रीय कर सुधारों को लागू करने, सरलीकरण, कर प्रोत्साहनों को फिर से डिजाइन करने और व्यापक सुधार प्राथमिकताओं को कार्यान्वित करने के आधारों से जुड़े महत्वपूर्ण सूचकांकों पर कर क्षमताओं को बढ़ाने की दिशा में बातचीत की शुरुआत करने का पक्ष लेने के साथ-साथ सुधार एवं इसके कार्यान्वयन का समर्थन करने के लिए सभी हितधारकों के साथ साझेदारी करने की मुद्रा कोष की प्रतिबद्धताओं पर भी जोर दिया। अपने संबोधन में, ओईसीडी ने सही ही कार्यान्वयन के समर्थन के मामले में सभी के लिए एक ही दृष्टिकोण उपयुक्त नहीं होने के तथ्य को स्वीकार किया और टैक्स इंस्पेक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (टीआईडब्ल्यूबी) पहल के माध्यम से कार्यान्वयन के समर्थन की दिशा में किए गए प्रयासों का विस्तृत ब्यौरा दिया। संयुक्त राष्ट्र, यूनाइटेड किंगडम, इंडोनेशिया और विश्व बैंक के वक्ताओं ने दो-स्तंभ वाले अंतरराष्ट्रीय कर पैकेज के संबंध में क्षमता निर्माण के व्यापक एजेंडे पर चर्चा की और विकासशील देशों में रणनीतिक प्रतिक्रियाओं की व्यवहार्यता व संभावित प्रभाव पर प्रकाश डाला। इन रणनीतिक प्रतिक्रियाओं में दो-स्तंभ वाले पैकेज में वैकल्पिक प्रावधानों को अपनाने एवं डिजाइन करने, कॉरपोरेट कर आधार (क्षमता के आधार पर) की रक्षा के लिए सरलीकृत दृष्टिकोण का उपयोग करने और निवेश कर प्रोत्साहनों को नया स्वरूप देने की बातें शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र ने महत्वपूर्ण रूप से यह टिप्पणी की कि विकासशील देशों को जो चाहिए, उसे विदहोल्डिंग टैक्स जैसे उपकरणों के माध्यम से आसानी से पूरा किया जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र ने यह भी कहा कि सभी सदस्य देशों के क्षेत्राधिकारों में कर क्षमता संबंधी व्यापक भिन्नता को देखते हुए किसी भी अंतरराष्ट्रीय कर सुधार के कार्यान्वयन की गति आवश्यक रूप से भिन्न होनी चाहिए।
भारत की अध्यक्षता ने एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता के रूप में विकासशील क्षेत्राधिकारों की कर क्षमताओं में वृद्धि के साथ, पूरे वर्ष भर अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ साझेदारी करके वास्तविक प्रशिक्षण के साथ-साथ सभी हितधारकों के साथ मिलकर कर क्षमताओं को बढ़ाने की रणनीति बनाकर सभी स्तरों पर क्षमता निर्माण की दिशा में प्रयास किया। विकासशील देशों की कर क्षमता बढ़ाने के महत्व को आईएमएफ के सितंबर, 2023 के स्टाफ चर्चा नोट द्वारा रेखांकित किया गया है। उक्त नोट में यह कहा गया है कि विशेष रूप से कम आय वाले विकासशील देशों (एलआईडीसी) के संदर्भ में ‘कर प्रणाली में सुधार और संस्थागत क्षमता निर्माण के संयोजन के माध्यम’ से कर-से-जीडीपी अनुपात में 9 प्रतिशत अंक की आश्चर्यजनक वृद्धि संभव है। वर्ष 2023 तक क्षमता निर्माण पर समान प्राथमिकता के साथ कर नीति में सुधार करने की भारत की अध्यक्षता की रणनीति ने विकासशील देशों के लिए राजस्व बढ़ाने का एक संरचनात्मक प्रोत्साहन तैयार किया है। भारत की अध्यक्षता ने विकासशील सदस्य देशों की कर क्षमताओं के निर्माण में अच्छा खासा ध्यान किया है ताकि विकासशील देश बाहरी मदद के बिना अपने स्वयं के सतत विकास लक्ष्यों को वित्तपोषित कर सकें।
भारत, अध्यक्षता की समयावधि के बाद भी, विकासशील देशों की कर क्षमताओं को समग्र रूप से बढ़ाने हेतु सभी संस्थागत हितधारकों एवं इच्छुक सदस्य देशों के साथ साझेदारी करना जारी रखेगा। कराधान हमारी विकास कहानी का एक अभिन्न अंग होगा और यह मानव-केन्द्रित विकास के लिए घरेलू संसाधन जुटाने के प्रयासों में ग्लोबल साउथ की कुंजी होगी।
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