फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद भी मुनीर के चेहरे पर नहीं दिखा खौफ
फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद भी मुनीर के चेहरे पर नहीं दिखा खौफ
बिजनौर में अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश डॉ. विजय कुमार ने एनआईए के डीएसपी तंजील अहमद और उनकी पत्नी फरजाना की हत्या को विरल से विरलतम की श्रेणी में माना है और दोषी गैंगस्टर मुनीर और रैय्यान को फांसी की सजा सुनाई है। न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा है कि गोलियों की 33 चोटें क्रूरता की पराकाष्ठा की द्योतक है और न्याय के शासन व धर्म को चुनौती है।
मुनीर के चेहरे पर नहीं दिखा खौफ, हंसता रहा
साढ़े तीन बजे वज्र वाहन में भारी सुरक्षा के बीच पुलिस कुख्यात गैंगस्टर मुनीर को लेकर जजी परिसर में पहुंची। करीब एक घंटा तक वाहन में ही बैठा रहा। फांसी की सजा हो जाने के बाद भी मुनीर के चेहरे पर कोई खौफ नहीं दिखाई दिया। वह वज्र वाहन में बैठा हुआ मुस्कुराता रहा, बीच-बीच में खिलखिला कर हंसता भी रहा।
बताया गया कि उसकी नजर एक जगह नहीं टिकी, वह इधर-उधर लगातार नजर दौड़ाता रहा। हालांकि सुरक्षा की दृष्टि से रैय्यान को दूसरे वाहन से लाया गया था। रैय्यान फांसी की सजा सुनने के बाद मायूस दिखाई दिया।
जिले में पांच साल बाद फिर दी गई फांसी की सजा
मुनीर और रैय्यान को फांसी की सजा सुनाए जाने का केस पहला नहीं है, इससे करीब पांच साल पहले भी तिहरे हत्याकांड में नजीबाबाद के इरफान उर्फ नाका को फांसी की सजा सुनाई गई थी।
एडीजीसी संजीव वर्मा के अनुसार अगस्त 2014 में मोहल्ला मुगलूशाह पारिवारिक विवाद के चलते इरफान उर्फ नाका ने अपने दो सगे भाइयों नौशाद और इरशाद व अपने बेटे इस्लामुद्दीन की जलाकर हत्या कर दी थी।
ये तीनों लोग मकान में सोए हुए थे। इरफान उर्फ नाका ने पेट्रोल छिड़ककर घर में आग लगा दी और बाहर से कुंडा लगाकर फरार हो गया था। तीनों लोग जलकर मर गए थे। हाईकोर्ट ने इरफान नाका की फांसी को बरकरार रखा, यह मामला इस समय सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।