Editorial : हरियाणा में बिछने लगी चुनावी बिसात, आकार ले रही सियासत
- By Habib --
- Thursday, 09 Mar, 2023
Election board started laying in Haryana
Election board started laying in Haryana हरियाणा में अगले वर्ष होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव की तैयारियां तेज हो गई हैं। राजनीतिक पदयात्राएं कर रहे हैं, रैलियां होने लगी हैं और बैठकों का दौर भी शुरू हो चुका है। हालांकि इस बार प्रदेश में आम आदमी पार्टी ने अपनी भरपूर सक्रियता दिखाई है, जोकि लोकतंत्र के लिए सही है। पार्टी नेताओं की ओर से लगातार जनहित के मुद्दों को उठाया जा रहा है। वहीं इनेलो की ओर से भी पदयात्रा आरंभ की गई है।
जाहिर है, बीते विधानसभा चुनाव में पार्टी को उस समय बड़ा झटका लगा था, जब उससे अलग होकर पूर्व सांसद अजय चौटाला और उनके पुत्र डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी का गठन किया। यह अपने आप में उल्लेखनीय था कि जजपा ने अकेले 10 सीटें जीत कर अपने शानदार आगाज का परिचय दिया था। जजपा को इनेलो का विकल्प माना जा रहा है, हालांकि बीते साढ़े चार सालों में जजपा ने अपने आप को एक स्वतंत्र और सुदृढ़ पार्टी के रूप में स्थापित कर लिया है। यह पार्टी नेतृत्व की सूझबूझ और प्रदेश के हितों के लिए उसके संघर्ष की कहानी है। लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की भूमिका कभी निम्न नहीं होगी, नए से नए दल आते रहेंगे, लेकिन ठहराव उसी का होगा, जोकि जनता के मानक पर खरा उतरेगा।
हरियाणा में कांग्रेस पुरजोर तरीके से अपनी वापसी का ताना-बाना बुन रही है। पार्टी हाईकमान ने प्रदेश में नेतृत्व को बदला है और पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा अब फ्री हैंड होकर काम कर रहे हैं। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान प्रदेश में कांग्रेस के प्रति सकारात्मक रूझान नजर आया था। इसके बाद पार्टी ने हाथ से हाथ जोड़ो अभियान शुरू किया हुआ है, वहीं अब पूर्व सीएम हुड्डा सोनीपत में रैली करने वाले हैं। यह रैली इसी माह आयोजित की जाएगी।
हुड्डा ने आधिकारिक रूप से अभी तक किसी बड़ी रैली में शिरकत नहीं की है, लेकिन सोनीपत जिसे कांग्रेस का गढ़ भी माना जाता है, में अगर वे रैली करने जा रहे हैं तो इसका अभिप्राय यह है कि कांग्रेस चुनाव का डंका बजा चुकी है। जाहिर है, यह सत्ताधारी दल भाजपा-जजपा के लिए भी सजग हो जाने का समय है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल अपनी सभाओं के जरिये पहले ही सक्रियता दिखा चुके हैं। पार्टी ने जनवरी में केंद्रीय गृहमंत्री एवं पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की रैली का आयोजन किया था, लेकिन खराब मौसम की वजह से वे रैली स्थल गोहाना में नहीं पहुंच सके। हालांकि इसके बाद फरवरी में शाह ने करनाल में एक सरकारी कार्यक्रम में शिरकत करके हरियाणा के प्रति भाजपा की संजीदगी का परिचय दे दिया था।
कांग्रेस के लिए यह समय आंतरिक और बाह्य रूप से भारी परिवर्तन का है। पूर्व सीएम एवं नेता विपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा की पार्टी हाईकमान से यह शिकायत रही है कि उन्हें प्रदेश में खुलकर काम करने का अवसर नहीं मिला। इसके बाद पूर्व अध्यक्ष कुमारी सैलजा को जहां प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया वहीं पूर्व सीएम हुड्डा की पसंद के मुताबिक चौ. उदयभान को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। अब पार्टी में पूर्व सीएम हुड्डा ही सभी निर्णय ले रहे हैं, लेकिन उनकी चुनौतियां कम नहीं हुई हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा को बेशक प्रदेश की राजनीति से दूर करने की कोशिश की गई है लेकिन उन्होंने प्रदेश को नहीं छोड़ा है।
बीते दिनों उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस और पार्टी संगठन खड़ा होने में देरी का मुद्दा उठाया था, सैलजा ने संगठन नहीं बन पाने के लिए स्वयं के साथ-साथ हुड्डा समेत अन्य नेताओं को दोषी ठहराया था। बेशक, यह सब राजनीतिक दांव-पेच हैं, जोकि नेताओं के बीच चलते रहते हैं। सबसे आवश्यक एक पार्टी का स्टैंड करना और चुनाव महायुद्ध में उतर कर जीत हासिल करना होता है, जोकि सभी की चाहत होती है।
दरअसल, पूर्व सीएम हुड्डा ने साफ किया है कि कांग्रेस का इनेलो या आप के साथ कोई राजनीतिक गठजोड़ नहीं होगा। पिछले कुछ समय से इनेलो और कांग्रेस नेताओं के बीच दूरियां खत्म होती दिखी हैं, यह सब सामाजिक कार्यक्रमों में ही देखने को मिला है। इसके बाद से ऐसे कयास लग रहे थे कि दोनों दलों में राजनीतिक गठजोड़ संभव है। यह भी खूब है कि आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष के दलों का गठजोड़ बनाए जाने के हक में है, हालांकि कांग्रेस इस गठजोड़ में कहीं नजर नहीं आ रही। ऐसे में हरियाणा में कांग्रेस और आप नजदीक आएंगे, संभव नहीं लगता।
प्रदेश में कांग्रेस के रणनीतिकार शायद ही किसी अन्य दल से गठजोड़ की संभावनाओं पर विचार भी करेंगे। प्रदेश में कांग्रेस प्रमुख विपक्षी दल है और वह सत्ताधारी गठबंधन को लगातार चुनौती पेश कर रहा है। जनता के मन में किसके प्रति कब अनुराग पैदा हो जाए, यह कोई नहीं जानता। लोकतंत्र की खूबी भी यही है, हालांकि हर हालत में सही निर्णय ही आवश्यक होता है।
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