Why communal violence raging

Editorial: क्यों भडक़ रही सांप्रदायिक हिंसा, दोषियों की पहचान जरूरी

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Why communal violence raging

Why communal violence raging उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र में रामनवमी के अवसर पर हिंसा का जैसा तांडव देखने को मिला है, वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। बिहार के सासाराम, नालंदा और दूसरे इलाकों में अब भी आग जल रही है, वहीं पश्चिम बंगाल में हो रही हिंसा में मौतें हो चुकी हैं।

हालांकि इस मसले पर राजनीति अपने चरम पर है। हैरानी इस बात की है कि जिस सरकार के पास व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी है, वह तथ्यों को छिपाने, दोषियों को बचाने और मामले में पक्षपात पूर्ण कार्रवाई के आरोप झेल रही है। बंगाल में राजनीतिक हिंसा का दौर रह-रह कर लौट आता है और इस बार यह रामनवमी के दिन फिर नए रूप में लौट आया। कितनी हैरानी की बात है कि पश्चिम बंगाल में सरेआम दंगा भडक़ाने, पत्थरबाजी करने और सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के बावजूद सरकार की ओर से सख्त कार्रवाई अमल में नहीं लाई गई है। ऐसा ही कई अन्य राज्यों में भी हो रहा है। बिहार में भी दंगों पर राजनीति अपने चरम पर है, हालांकि सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच बयानों के तीर चलाए जा रहे हैं, लेकिन हिंसा का तांडव अपनी जगह जारी है।

 हैरानी इस बात की भी है कि आखिर सांप्रदायिक नफरत का यह दौर कौन लौटाता है। रामनवमी के दिन बंगाल का हावड़ा हो या बिहार का नालंदा, महाराष्ट्र का औरंगाबाद हो या गुजरात का वडोदरा। भगवान राम की आराधना के लिए श्रद्धालुओं के द्वारा निकाला गया जुलूस निशाना बना दिया गया। पत्थरबाजी, आगजनी की गई, एक साजिश के तहत हिंसा को हवा दी गई। अभी हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने धर्म और राजनीति को अलग-अलग करने का आह्वान किया था। हालांकि यह सब बातें किताबी लगती हैं, क्योंकि धर्म के नाम पर कोई भी ईंट-पत्थर उठा लेता है। हथियार उठा लेता है।

खालिस्तान की बात करता है या फिर विदेशी ताकतों के जरिये देश के अंदर अमन-चैन को समाप्त करने की चाल चलने लगता है। देश के अंदर पहले ही अनुशासनहीनता का चरम नजर आता है, जब अदालतों के आदेश मानने से इनकार कर दिया जाता है और उन पर राजनीति से प्रेरित होकर काम करने के आरोप लगाए जाते हैं। अब देश धर्म के आधार पर बंटता दिख रहा है। धार्मिक कुंठा इतनी घर कर चुकी है कि दूसरे धर्म के कार्यक्रमों के आयोजन का इंतजार किया जाता है। ताकि उस कुंठा को बाहर निकाला जा सके। सवाल यह है कि क्या देश को इस आधार पर बांटेंगे कि फलां इस धर्म का इलाका है और फलां दूसरे धर्म का। अपने इलाके में दूसरे को आने से रोकना है, इस मानसिकता के लोग ही ऐसी हरकतें करते हैं।

रामनवमी पर पहली बार हिंसा नहीं हुई। पिछले साल भी रामनवमी पर निकले जुलूस निशाना बने थे। बात सिर्फ रामनवमी भर की नहीं है, दंगाइयों की नजर हिंदुओं के लगभग हर सामूहिक त्योहार पर है। पिछले साल हनुमान जयंती पर भी अनेक जगह हिंसा हुई। मध्यप्रदेश, झारखंड, आंध्र प्रदेश समेत कम से कम 10 राज्यों में कई दिन तक छिटपुट हिंसा का दौर चला। बीते माह होली के दौरान भी कुछ हिस्सों में झड़पें हुईं।

 गौरतलब है कि इस मामले में राजनीतिक दांव पेच भी खूब चल रहे हैं। भाजपा की ओर से आरोप लगाए गए हैं कि बंगाल जल रहा है, रामभक्तों पर पथराव हो रहा है, पत्रकारों को पीटा जा रहा है, और ममता दीदी चुप हैं, आखिर क्यों? प्रेस फ्रीडम की बात करने वाले ममता राज में पत्रकारों और राम भक्तों की पिटाई पर होंठ सिले बैठे हैं। आखिर क्यों? किसकी शह पर बंगाल अराजकों और दंगाइयों के हवाले है? वहीं, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दावा किया कि रामनवमी के दिन हावड़ा में हुई हिंसा के लिए कुछ दक्षिणपंथी संगठन जिम्मेदार हैं। उनके हवाले से यह बयान सामने आया है कि हावड़ा में हिंसा के पीछे न तो हिंदू थे और न ही मुस्लिम थे। उन्होंने इसके लिए कुछ हिंदूवादी संगठनों को जिम्मेदार ठहराया है। कहा कि राज्य सरकार उन सभी लोगों की मदद करेगी जिनकी संपत्तियों को झड़पों के दौरान नुकसान पहुंचा।

 जाहिर है, सांप्रदायिक हिंसा का बचाव किसी भी सूरत में नहीं किया जा सकता। भारत-पाक के विभाजन के समय सांप्रदायिक हिंसा ने जैसे जख्म दिए थे, वे अब भी रिस रहे हैं। वहीं इसके बाद से लगातार ऐसी वारदातें सामने आती रही हैं। सबसे ताज्जुब की है कि आरोपी हिंसा करके चले जाते हैं, पुलिस केस होता है लेकिन फिर सबूतों के अभाव में सब बरी हो जाते हैं। आखिर ऐसे हादसों को क्या रोका नहीं जा सकता? वास्तव में यह बेहद आसान कार्य है लेकिन राजनीतिक प्रश्रय की वजह से यह सबसे दुरूह कार्य बन गया है। हालांकि सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वह कानून और व्यवस्था की स्थिति को बिगड़ने से रोके वहीं आम जनता को चाहिए कि वह धार्मिक सद्भाव कायम रखे।  

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