युद्ध से आएगी आर्थिक कंगाली
- By Vinod --
- Monday, 28 Feb, 2022
economic poverty will come from war
रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को सिर्फ दो देशों के बीच जंग नहीं समझा जा सकता। नाटो देशों की ओर से अपने सैनिक यूक्रेन नहीं भेजे गए हैं, लेकिन आर्थिक मदद जरूर मुहैया कराई जा रही है। इस युद्ध के दौरान रूस रोजाना 1.2 लाख करोड़ रुपये गंवा रहा है। पूरी दुनिया में इस युद्ध से आर्थिक संकट गहराने लगा है, अब कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस की कीमतों में इजाफे से महंगाई के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने का अंदेशा सताने लगा है। रूस दुनिया में कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है, यूक्रेन के साथ युद्ध के दौरान रूस पर लग रहे आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद यह तय है कि रूस इस आर्थिक संकट को झेल जाए लेकिन दुनिया के बाकी देशों का क्या, जिनकी आर्थिकी कोरोना काल के बाद मुश्किल से संभलने लगी है। भारत उन्हीं देशों में से एक है। देश में पेट्रोल के रेट इस समय 100 रुपये के आसपास हैं, इससे पहले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से पहले यह कीमत सौ रुपये को भी पार कर गई थी, मतदाता और ज्यादा नाराज न हो जाए, इस डर में तेल कंपनियों ने कुछ दिनों से तेल की कीमतों को थाम रखा है। लेकिन 10 मार्च को चुनाव परिणाम सामने आ जाएंगे, क्या उसके बाद भी कीमतें स्थिर रहेंगी।
दुनिया में कच्चे तेल के दाम 100 डॉलर प्रति बैरल के मनोवैज्ञानिक स्तर को भी पार कर गए हैं। भारत में तेल कंपनियों का घाटा बढ़ता जा रहा है। पेट्रोल-डीजल पर कंपनियां करीब 10 रुपये अंडर रिकवरी में चल रही हैं। अब माना जा रहा है कि 10 मार्च को चुनाव नतीजों के बाद पेट्रोल बम फटेगा और उसके बाद महंगाई का दानव और बड़ा हो जाएगा। पेट्रोल-डीजल के रेट में बढ़ोतरी मात्र से जहां रसेाई से जुड़े सामान की कीमतें बढ़ जाती हैं, वहीं परिवहन, किराया-भाड़ा, स्कूल बसों का किराया, दवाएं, अन्य जरूरी सामान सब कुछ महंगा हो जाता है। ऐसे में रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग में महंगाई का बम अगर भारतीयों की जेबों में भी धमाका करे तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए।
तेल उत्पादक देशों का समूह ओपेक कहलाता है, जिसमें 13 सदस्य देश शामिल हैं और यह रूस का प्रतिनिधित्व करता है। इनकी वैश्विक तेल उत्पादन में 44 फीसदी की हिस्सेदारी है। इसके साथ ही इनके पास दुनिया के प्रूवन ऑयल रिजर्व का 81.5 फीसदी हिस्सा है। यही वजह है कि ऑयल की कीमतों पर भी समूह का मजबूत प्रभाव है। यह सदस्य देशों के बीच प्राइस वार को रोकता है। पहले इनके बीच प्राइस वार होता था लेकिन वर्ष 2016 में हुए एक डील के बाद इस पर विराम लग गया। बीते 16 फरवरी को रियाद में एनर्जी सेक्टर पर हुए एक अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने सऊदी अरब से अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों को स्थिर करने के लिए कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाने के लिए कहा था। इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ने भी सऊदी किंग को इन मसलों पर बातचीत करने के लिए बुलाया था। दोनों कॉलों के बावजूद, सऊदी अरब ने पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन प्लस समूह ओपेक के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं का हवाला देते हुए अपने उत्पादन स्तर को बढ़ाने से इनकार किया था।
दरअसल, रूस के लिए, ऑयल की ऊंची कीमतों का मतलब है, ज्यादा कमाई। इससे रूसी अर्थव्यवस्था किसी भी संभावित प्रतिबंधों के प्रभाव का सामना करने में सक्षम होगी। तेल की ऊंची कीमतें रूस के विदेशी मुद्रा भंडार को भी बढ़ाएंगी और रूबल जोकि रूसी मुद्रा है, मजबूत होगी। इसके उलट, महंगे कच्चे तेल से अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर भारी असर पड़ेगा। वैसे ही वहां इन दिनों महंगाई की दर कुछ ज्यादा ही है। ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों में इजाफे से कोई इनकार नहीं कर सकता। कोरोना के दौरान लगे लॉकडाउन के बाद सिर्फ भारत नहीं अपितु पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था कमजोर हुई थी, लेकिन अब रूस की जिद ने यूक्रेन के लोगों का जीवन छीन लिया है, वहीं दुनिया के बाकी देशों के समक्ष भी आर्थिकी का संकट पैदा कर दिया है। मालूम हो, रूस यूरोपीय देशों के लिए प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन कर उभरा है। पिछले कुछ महीनों से जो प्राकृतिक गैस की कीमत बढ़ी है, उससे यूरोपीय देशों के नागरिक भी परेशान हो रहे हैं। वहीं इसका असर एशियाई देशों पर भी पड़ने लगा है।
यूक्रेन-रूस युद्ध को रोका जाना जरूरी है, यह जंग किसी भी समय वैश्विक हो सकती है, नाटो देश जोकि अभी दूर खड़े देख रहे हैं, अगर आक्रामक रूख दिखाते हुए रूस के समक्ष खड़े होते हैं, रूस फिर और ज्यादा नकारात्मक रूख अपनाएगा। रूसी राष्ट्रपति ने अपने परमाणु बम संभालने वाले बल को हाई अलर्ट पर रखा है। इसका मतलब सिर्फ डराना भर नहीं है, रूस को वैश्विक महाशक्ति बनने की सनक सवार है और वह किसी भी हद तक जा सकता है। भारत ने रूस के प्रति नरमी का रुख रखा है, लेकिन अगर वैश्विक युद्ध छिड़ता है तो भारत की भूमिका भी प्रभावित होगी। प्रधानमंत्री मोदी ने रूसी राष्ट्रपति से पिछले दिनों बात की थी और हिंसा रोकने और वार्ता शुरू करने की अपील की थी। इसके बाद यूक्रेन के राष्ट्रपति ने भी मोदी से बातचीत की और अपने देश के खिलाफ रूस के सैन्य हमले को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत से राजनीतिक समर्थन मांगा। बेशक, भारत के लिए यह कठिन परिस्थिति है, लेकिन अपने हितों का ख्याल रखते हुए उसे इस युद्ध को रोकने के लिए आगे आना चाहिए। यह जंग महंगाई और आर्थिक कंगाली का दूसरा लॉकडाउन बन जाएगी।