Editorial: दक्षिण पूर्व एशिया में आए भूकंप ने मानवता को हिलाया
- By Habib --
- Saturday, 29 Mar, 2025

Earthquake in Southeast Asia shook humanity
Earthquake in Southeast Asia shook humanity: दक्षिण पूर्व एशिया में आए भूकंप ने जैसी तबाही मचाई है, वह रोंगटे खड़े कर देने वाली है। म्यांमार और थाईलैंड में भूकंप ने सबसे ज्यादा तबाही मचाई है और हजारों की तादाद में लोग हताहत हो गए हैं। उन दृश्यों को देखना बेहद खौफनाक है, जब इमारतें ताश के पत्तों की भांति हवा में झूल रही हैं और फिर धड़ाम से नीचे गिर रही हैं। म्यांमार में इस भूकंप ने जो तबाही मचाई है, उसकी भरपाई होने में अब अगले कई वर्ष लग जाएंगे। म्यांमार पहले ही आंतरिक समस्याओं से जूझ रहा है, और इस भूकंप की वजह से उसकी अर्थव्यवस्था और सामाजिक स्थिति और ज्यादा तनावपूर्ण हो गए हैं। वहीं थाईलैंड भी अपने अब तक के दौर के सबसे बुरे हालात झेल रहा है। इस खूबसूरत देश की सुंदरता को जैसे ग्रहण लग गया।
गौरतलब है कि दुनिया में साल 2023 में तुर्किये और सीरिया में ऐसा भूकंप आया था, जिसकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 7.8 मापी गई थी। इसके बाद अब दक्षिण पूर्व एशिया में जो भूकंप आया है, उसकी तीव्रता 7.7 आंकी गई। हालांकि इसी दौरान अनेक और भी झटके आए। जाहिर है, यह मानवता के लिए बहुत संकट की घड़ी है, भारत ने म्यांमार को राहत सामग्री और बचाव दल भेजकर श्रेष्ठ कार्य किया है।
दरअसल, म्यांमार 2021 से ही संकट में है। उस समय सेना ने आंग सान सू की की निर्वाचित सरकार को हटाकर सत्ता पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों को सेना ने हिंसक तरीके से दबा दिया, जिसके बाद बड़ी संख्या में लोग हथियार उठाने को मजबूर हो गए। आज देश के कई हिस्से गृहयुद्ध की चपेट में हैं। म्यांमार में चीन का भी प्रभाव है, जो 2023 के अंत में सीमा पर संगठित अपराध को रोकने की कोशिश में सैन्य गतिविधियों का समर्थन करता दिखा। इस बीच संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के हवाले से सामने आ रहा है कि देश में भूकंप से पहले ही 30 लाख से ज्यादा लोग अपने घरों से बेघर हो चुके थे। देश में 1.86 करोड़ लोगों को मानवीय सहायता की जरूरत है, लेकिन विदेशी सहायता में कटौती के कारण हालात और बिगड़ गए हैं।
अमेरिका की तरफ से 90 दिनों के लिए म्यांमार में विदेशी सहायता रोक दी गई है।इससे यहां शरणार्थियों के लिए चिकित्सा सुविधाएं भी बंद हो गई हैं। वहीं वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के अनुसार, म्यांमार में 1.52 करोड़ लोग अपनी बुनियादी खाद्य जरूरतें पूरी नहीं कर पा रहे हैं, जबकि 23 लाख लोग भुखमरी के गंभीर स्तर पर पहुंच चुके हैं। अप्रैल से खाद्य सहायता रोकने की चेतावनी दी गई है, क्योंकि फंड की कमी है। म्यांमार में स्वास्थ्य सेवाएं भी ठप होती जा रही हैं। यूएन मानवाधिकार परिषद की रिपोर्ट है कि यहां टीबी और एचआईवी मरीजों को हफ्तों से दवाएं नहीं मिल रही हैं। विकलांग बच्चों को पुनर्वास केंद्रों से बाहर कर दिया गया है। खाने और पीने के पानी की आपूर्ति में भी कटौती हुई है। म्यांमार पहले से ही गंभीर संकट में था, लेकिन अब भूकंप ने हालात को और बदतर बना दिया है। राहत और बचाव कार्यों के लिए वैश्विक सहायता की सख्त जरूरत है।
साल 2023 में तुर्किये और सीरिया में भूकंप की प्राकृतिक आपदा ने जो कहर बरपाया था, उसने भी मानवता को झिंझोड़ कर रख दिया था। प्रकृति के रौद्र रूप की वजह से उस समय 3 हजार से ज्यादा लोगों की मौतें हो गई। साल 2021 में हैती में 7.2 तीव्रता का भूकंप आया था, जिसमें 2200 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। वहीं 2018 में इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप में 7.5 तीव्रता के भूकंप ने तबाही मचाई थी। इससे पहले 2015 में नेपाल में 7.8 तीव्रता का भूकंप आया था, इसमें लगभग 9 हजार लोगों की मौत हो गई थी।आज का विज्ञान अपने चरम पर पहुंच गया है, लेकिन ऐसी कोई तकनीक विकसित नहीं हुई है जोकि सुनामी को रोक सके या फिर धरती के कांपने को रोक दे। विपदा और संत्रास का यह दर्द इंसान के नाम लिख दिया गया है। जरूरत इसकी है कि ऐसी घड़ी में सभी मिलकर आपदाग्रस्त देश और उसके लोगों की मदद करें।
प्रकृति से खिलवाड़ का प्रतिफल आज पूरी दुनिया भुगत रही है और भविष्य बेहद असुरक्षित हो गया है। बढ़ती जनसंख्या की वजह से कंक्रीट के जंगल बढ़ते जा रहे हैं और हर तरफ निर्माण ही नजर आता है। भारत भी भूकंप से सुरक्षित नहीं है। जब भूकंप, बाढ़, सुनामी आती है तो यही कहा जाता है कि इंसान अपने लालच पर नियंत्रण लगाए, हालांकि इस तरह की बातें फिर हवा हो जाती हैं। क्या प्रकृति से हो रहे खिलवाड़ को हम रोक पाएंगे?
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