Dussehra is the festival of victory of Lanka and killing of Ravan

लंका विजय और रावण वध का पर्व है दशहरा, देखें क्या है खास

dashara

Dussehra is the festival of victory of Lanka and killing of Ravan

दशहरा या वियजादशमी सनातन संस्कृति का ऐसा पर्व जिसे अहंकार, अत्याचार, अमानवीयता, अपमान, दुष्टता, पाशविकता, जैसी कई बुराईयों के नाश के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है। रावण के विद्वान होते हुए भी उसको राक्षसी प्रवृत्ति का और बुराइयों के प्रतीक के रूप में बताया गया है। इसलिए परंपरा के अनुसार रावण का हर साल दशहरे के अवसर पर पुतला दहन किया जाता है और रावण का अहंकार को नष्ट करने वाला और बुराईयों को खत्म करने वाला पुतला दहन किया जाता है। विजयादशमी तिथि को दशहरा भी कहा जाता है। दशहरा का अर्थ है दशहोरा यानी दसवी तिथि। विजयादशमी को वर्ष की अत्यंत शुभ तिथियों में माना जाता है। इस तिथि का संबंध राम की विजय और रावण के वध से माना जाता है। शास्त्रोक्त मान्यता के अनुसार विजयादशमी के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने रावणवध कर लंका विजय की थी।

नौ दिनों तक चलने वाले देवी महोत्सव शारदीय नवरात्र का भी समापन दशहरे के दिन होता है। इस दिन साधक देवी प्रतिमाएं और पूजा सामग्री का विसर्जन करते हैं। शास्त्रोक्त मान्यता है कि देवी दुर्गा ने इसी दिन नौ रात्रि और दस दिनों तक चले भीषण युद्ध के बाद महिषासुर का वध किया था। यह भी मान्यता है कि आश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय ‘विजय’ नामक मुहूर्त होता है। यह सभी कामों में सिद्धी देने वाला होता है। इसलिए भी इस पर्व को विजयादशमी कहते हैं। दशहरे के दिन शिवाजी महाराज ने मुगल सम्राट औरंगजेब से युद्ध के लिए प्रस्थान किया था।

विजयादशमी को विजय का पर्व माना जाता है और यह शौर्य का प्रतीक है। सनातन संस्कृति के देव श्रीराम को समर्पित है। इस दिन पौराणिक काल से शस्त्रपूजा कर विजय की कामना की जाती रही है। इसलिए आज भी सभी देशभर में विजयादशमी के अवसर पर शस्त्र पूजा की जाती है। विजयादशमी को विजय का प्रतीक माना जाता है और पौराणिक काल से शस्त्रों के जरिए विजय प्राप्त की गई है इसलिए इस दिन शस्त्रपूजा का विधान है।

कैसे हुआ रावण का जन्म
लोग लंकापति रावण को अनीति, अनाचार, दंभ, काम, क्रोध, लोभ, अधर्म और बुराई का प्रतीक मानते हैं और उससे घृणा करते हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यहां यह है कि दशानन रावण में कितना ही राक्षसत्व क्यों न हो उसके गुणों की अनदेखी नहीं की जा सकती। रावण में अवगुण की अपेक्षा गुण अधिक थे। रावण एक प्रकांड विद्वान था। वेद-शास्त्रों पर उसकी अच्छी पकड़ थी और वह भगवान भोलेशंकर का अनन्य भक्त था। उसे तंत्र, मंत्र, सिद्धियों तथा कई गूढ़ विद्याओं का ज्ञान था। ज्योतिष विद्या में भी उसे महारथ हासिल थी। रावण के उदय के विषय में भिन्न-भिन्न ग्रंथों में भिन्न-भिन्न प्रकार के उल्लेख मिलते हैं। वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण महाकाव्य,पद्मपुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकशिपु दूसरे जन्म में रावण और कुंभकर्ण के रूप में पैदा हुए।

वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण पुलस्त्य मुनि का पोता था अर्थात् उनके पुत्र विश्वश्रवा का पुत्र था। विश्वश्रवा की वरवर्णिनी और कैकसी नामक दो पत्नियां थी। वरवर्णिनी के कुबेर को जन्म देने पर सौतिया डाह वश कैकसी ने अशुभ समय में गर्भ धारण किया। इसी कारण से उसके गर्भ से रावण तथा कुंभकर्ण जैसे क्रूर स्वभाव वाले भयंकर राक्षस उत्पन्न हुए। तुलसीदास जी के रामचरितमानस में रावण का जन्म शाप के कारण हुआ है। वे नारद एवं प्रतापभानु की कथाओं को रावण के जन्म का कारण बताते हैं। इसके अनुसार भगवान विष्णु के दर्शन हेतु सनक, सनंदन आदि ऋषि बैकुंठ पधारे परंतु भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय ने उन्हें प्रवेश देने से इंकार कर दिया। ऋषिगण अप्रसन्न हो गए और क्रोध में आकर जय-विजय को शाप दे दिया कि तुम राक्षस हो जाओ। जय-विजय ने प्रार्थना की व अपराध के लिए क्षमा मांगी।

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