हर महीने की अष्टमी को मनाई जाती है दुर्गा अष्टमी, पूजन से होगी हर मनोकामना पूरी
- By Vinod --
- Sunday, 26 Feb, 2023
Durga Ashtami is celebrated on the Ashtami of every month
Durga Ashtami is celebrated on the Ashtami of every month- हिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत रखा जाता है। इस खास दिन मां दुर्गा की विधि-विधान से पूजा करने से मां अंबे हर कष्ट से छुटकारा दिलाती हैं। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दुर्गा अष्टमी का व्रत रखा जा रहा है। इस बार दुर्गाष्टमी का दिन काफी खास है क्योंकि इस दिन सिद्धि योग के साथ उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र लग रहा है। मान्यता है कि इस खास मौके पर पूजा करने से व्यक्ति को हर कष्ट से छुटकारा मिल जाता है और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। दुर्गा अष्टमी को मासिक दुर्गा अष्टमी या मास दुर्गा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। लोग अपने मनोवांछित फल को प्राप्त करने के उदेश्य से जैसे की जीवन में चल रही किसी समस्या के समाधान के लिए या किसी भी दु:ख का निवारण करने के लिए माँ दुर्गा अष्टमी का पूजन करते है। इस दिन भक्त दिव्य आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए सख्त उपवास रखते है हिन्दू धर्म के अनुयायीयों के लिए दुर्गा अष्टमी व्रत एक महत्वपूर्ण आराधना है।
दुर्गा अष्टमी के दिन का महत्व
दुर्गा अष्टमी के व्रत को अध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने के लिए और देवी दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मनाया जाता है। संस्कृत की भाषा में दुर्गा शब्द का अर्थ होता है अपराजित अर्थात जो किसी से भी कभी पराजित या हारा नहीं हो उसको अपराजित कहते है और अष्टमी का अर्थ होता है आठवा दिन। इस अष्टमी के दिन महिषासुर नामक राक्षस पर देवी दुर्गा ने जीत हासिल की थी। हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन देवी ने अपने भयानक और रौद्र रूप को धारण किया था, इसलिए इस दिन को देवी भद्रकाली के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन का महत्व इसलिए और बढ़ जाता है क्योकि इस दिन दुष्ट और क्रूर राक्षस को उन्होंने मार कर सारे ब्रह्माण्ड को भय मुक्त किया था। साथ ही यह माना जाता है कि इस दिन जो भी पूरी भक्ति और श्रधा से पूर्ण समर्पण के साथ दुर्गा अष्टमी का व्रत करता है उसके जीवन में खुशी और अच्छे भाग्य का आगमन होता है। दुर्गा अष्टमी का महत्त्व इसलिए ज्यादा बढ़ जाता है क्योकि इस दिन देवी भक्तो पर अपनी विशेष कृपा की बरसात करती है। इस दिन देवी का उपवास करने वाले भक्तों को जीवन में दिव्य सरंक्षण, समृधि, व्यापार में लाभ, विकास, सफलता और शांति की प्राप्ति होती है। सभी बीमारियों से शरीर को छुटकारा प्राप्त होता है अर्थात शरीर रोग मुक्त और भय मुक्त होता है।
शुक्ल पक्ष के अष्टमी तिथि के दौरान हर महीने में दुर्गा अष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन भक्त शारदा दुर्गा का पूजन करके उपवास भी करते है। इस वर्ष होने वाली मासिक दुर्गा अष्टमी के दिन, तारीखों और उनके पूजन के समय को बताया गया है। जो पूजन का समय है उस समय के बीच में आप किसी भी वक्त अष्टमी पूजन कर सकते है।
दुर्गा अष्टमी कथा
प्राचीन समय में दुर्गम नामक एक दुष्ट और क्रूर दानव रहता था, वह बहुत ही शक्तिशाली था, अपनी क्रूरता से उसने तीनों लोकों में अत्याचार कर रखा था। उसकी दुष्टता से पृथ्वी, आकाश और ब्रह्माण्ड तीनों जगह लोग पीड़ित थे। उसने ऐसा आतंक फैलाया था, कि आतंक के डर से सभी देवता कैलाश में चले गए, क्योंकि देवता उसे मार नहीं सकते थे, और न ही उसे सजा दे सकते थे। सभी देवता ने भगवान शिव जी से इस बारे में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया। अंत में विष्णु, ब्रह्मा और सभी देवता के साथ मिलकर भगवान शंकर ने एक मार्ग निकाला और सबने अपनी उर्जा अर्थात अपनी शक्तियों को साझा करके संयुकत रूप से शुक्ल पक्ष अष्टमी को देवी दुर्गा को जन्म दिया। उसके बाद उन्होंने उन्हें सबसे शक्तिशाली हथियार को देकर दानव के साथ एक कठोर युद्ध को छेड़ दिया, फिर देवी दुर्गा ने उसको बिना किसी समय को लगाये तुरंत दानव का संहार कर दिया। वह दानव दुर्ग सेन के नाम से भी जाना जाता था। उसके बाद तीनों लोकों में खुशियों के साथ ही जयकारे लगने लगे, और इस दिन को ही दुर्गाष्टमी की उत्पति हुई। इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत हुई।
मासिक दुर्गा अष्टमी पूजा विधि
देवी दुर्गा जी के नौ रूप है हर एक विशेष दिन देवी के एक विशेष रूप का पूजन किया जाता है जिनके नाम शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री है। मासिक दुर्गा अष्टमी के दिन विशेष रूप से माँ दुर्गा के महागौरी रूप का पूजन किया जाता है। इस दिन महागौरी के रूप की तुलना शंख, चन्द्रमा या चमेली के सफ़ेद रंग से की जाती है, इस रूप में महागौरी एक 8 वर्ष की युवा बच्चे की तरह मासूम दिखती है, इस दिन वो विशेष शांति और दया बरसाती है। इस दिन के रूप में उनके चार हाथ में से दो हाथ आशीर्वाद और वरदान देने की मुद्रा में होते है तथा अन्य दो हाथ में त्रिशूल और डमरू रहता है साथ ही इस दिन देवी को सफ़ेद या हरे रंग की साड़ी में एक बैल के ऊपर विराजित या सवार होते दिखाया गया है। दुर्गा अष्टमी के दिन देवी दुर्गा के हथियारों की पूजा की जाती है और हथियारों के प्रदर्शन के कारण इस दिन को लोकप्रिय रूप से विराष्ट्मी के रूप में भी जाना जाता है। दुर्गा अष्टमी के दिन भक्त सुबह जल्दी से स्नान करके देवी दुर्गा से प्रार्थना करते है और पूजन के लिए लाल फूल, लाल चन्दन, दीया, धूप इत्यादि इन सामग्रियों से पूजा करते है, और देवी को अर्पण करने के लिए विशेष रूप से नैवेध को तैयार किया जाता है। साथ ही देवी के पसंद का गुलाबी फुल, केला, नारियल, पान के पत्ते, लोंग, इलायची, सूखे मेवे इत्यादी को प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाता है और पंचामृत भी बनाया जाता है। यह पंचामृत दही, दूध, शहद, गाय के घी और चीनी इन पांचो सामग्रियों को मिलाकर बनाया जाता है, और एक वेदी बनाकर उसपर अखंड ज्योति जलाई जाती है, और हाथों में फूल, अक्षत को लेकर इस मंत्र का जाप किया जाता है जो कि निम्नलिखित है-
‘सर्व मंगलाय मांगल्ये, शिवे सर्वथा साधिके
सरन्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते’
इसके बाद आप उस फूल और अक्षत को माँ दुर्गा को समर्पित कर दें, फिर बाद में आप दुर्गा चालीसा का पाठ कर आरती करके पूजा करे। दुर्गा अष्टमी व्रत का उपवास स्त्री और पुरुष दोनों समान रूप से रख सकते है। कुछ भक्त बिना अन्न और जल के उपवास रखते है, तो कुछ भक्त दूध, फल इत्यादी का सेवन करके इस व्रत का उपवास करते है। इस दिन मांसाहारी भोजन करना या शराब का सेवन करना वर्जित होता है। व्रत करने वाले भक्तो को आराम और विलासिता से दूर रहते हुए नीचे सोना चाहिए। पश्चिमी भारत के कुछ क्षेत्रों में बीज बोने की परम्परा है जोकि मिट्टी के बर्तन में बोये जाते है, जिसमे बीज आठ दिन के पूजन तक 3 से 5 इंच तक बढ़ जाता है। अष्टमी के दिन उसको देवी को समर्पित करने के बाद में परिवार के सभी सदस्यों में इस बीज को वितरित कर दिया जाता है। इसे लोग प्रसाद स्वरूप अपने पास रखते है ऐसा माना जाता है कि इसको रखने से समृधि आती है। अन्य भी बहुत सारे तरीके है जिनसे देवी दुर्गा को खुश करने की कोशिश की जाती है, जिसमे शामिल है घंटी बजाना, शंखनाद करना या शंख बजाना। इस दिन को ऐसा माना जाता है कि घर को पुरे दिन के लिए खाली नहीं छोडऩा चाहिए। इस दिन देवी की पूजा दो बार की जाती है और सूर्यास्त के बाद पूजा की समाप्ति हो जाती है। दुर्गा अष्टमी के दिन कुवांरी लड़कियों को भोजन कराने की परम्परा है माना जाता है कि इस दिन विशेष कर जो 6 वर्ष से 12 वर्ष के आयु वर्ग की लड़कियां हैं। वे पृथ्वी पर माँ दुर्गा का प्रतिनिधित्व करती है। इस दिन 5, 7, 9 और 11 लड़कियों के समूह को भोजन के लिए आमन्त्रित कर उनके स्वागत में उनके पांव को पहले धोया जाता है, फिर उनका पूजन किया जाता है तत्पश्चात उन्हें भोजन में खीर, हलवा, पुड़ी, मिठाई इत्यादि खाद्य पदार्थ दिए जाते है और उसके बाद कुछ उपहार देकर उन्हें सम्मानित किया जाता है। इन सारे विधि कार्यों को करने के बाद पूजा समाप्त हो जाती है और अंत में माता का आशीर्वाद आपको प्राप्त हो जाता है।