Due to the decree of 24 kg apples, the gardeners suffered loss: BJP leaders attacked the Sukhu government

24 किलो सेब के फरमान से बागवानों का नुकसान: बीजेपी नेताओं का सुक्खू सरकार पर हमला

Due to the decree of 24 kg apples, the gardeners suffered loss: BJP leaders attacked the Sukhu government

Due to the decree of 24 kg apples, the gardeners suffered loss: BJP leaders attacked the Sukhu gover

शिमला:हिमाचल प्रदेश में सेब सीजन शुरू हो गया है, लेकिन राज्य के बागवान सुक्खू सरकार के फरमान के चलते असमंजस की स्थिति में है। बागवानों को अभी तक यह भी पता नहीं कि उनको सेब बेचना कैसे है। प्रदेश सरकार ने बिना सोचे-समझे पेटी का वजन 24 किलो निर्धारित कर दिया है। बीजेपी विधायक बलबीर वर्मा और पार्टी के नेता चेतन बरागटा का कहना है कि बिना ग्राउंड वर्क, बिना तथ्यों की जानकारी जुटाए बिना किसी चर्चा के इस तरह के निर्णय बागवानों के लिए नुकसानदायक हो रहे है।

दोनों नेताओं के मुताबिक, सरकार का कहना है कि 24 किलो से अधिक पेटी न भरी जाए। बागवान सरकार का ये निर्णय मान भी ले लेकिन सरकार ये तो बताए कि 24 किलो में आढ़ती 2 किलो की कटौती क्यों कर रहे है। ये बागवानो के साथ सरेआम लूट हो रही है, जिसका हम कड़ा विरोध करते हैं।

सरकार यह निर्णय वापस ले

बीजेपी नेताओं ने कहा कि इस निर्णय को सरकार वापस ले। पेटी में 2 किलो की कटौती किस नियम के तहत की जा रही है, इसकी जानकारी सरकार द्वारा बागवानों के सामने रखनी चाहिए। बागवान को इसमें कोई आपत्ति नही है कि सेब किलो के हिसाब से बेचा जाए। सेब के प्रत्येक दाने का उचित दाम बागवान को मिले। लेकिन 24 किलो का वजन ही क्यों, यह एक बड़ा सवाल आज बागवानों के मन में है। भार तौलने की मशीन की हर बागवान को आवश्यकता रहेगी। इसकी कीमत मार्केट में 8000 से 15000 रुपये तक है। क्या सरकार सभी बागवानों को ये मशीनें उपलब्ध करवाने में सक्षम है सरकार इसका भी जवाब दे।

300 अतिरिक्त पेटियों का खर्च कौन देगा

एक गणना के अनुसार जिस बागवान के 1000 पेटी सेब होती है, अब उस बागवान को 24 किलो वजन के कारण लगभग 1250 से 1300 तक पेटियां भरनी पड़ेगी। मतलब कि बागवान को 250 से 300 पेटियां अतिरिक्त भरनी पड़ेगी। इससे बागवान का खर्चा बढ़ेगा। जैसे खाली कार्टन, उसके अंदर लगने वाला ट्रे, सेप्रेटर आदि मैटीरियल, लेबर कॉस्ट, कैरिज, ट्रांसपोर्ट इत्यादि। ऐसे में इससे बागवान को लाभ के बजाय उल्टा नुकसान हो रहा है।

फिर भी घाटा बागवानों को ही है

अगर बागवान ने 24 किलो पेटी के हिसाब से सेब मंडी तक पहुंचाया भी, तो क्या माप-तोल पर दोनों पक्षों की सहमति बन पाएगी ? यह नहीं बन पाएगी, क्योंकि 24 किलोग्राम पेटी पर 22 किलोग्राम का पैसा आज की व्यवस्था के अनुरूप बागवानों को मिल रहा है। चेतन बरागटा ने कहा कि सरकार के बिना सोचे समझे इस निर्णय से बागवान और खरीदार यानी लदानी में कलह पैदा हो रही है। जिस कारण हो सकता है कि 24 किलो के वजन वाले तुगलकी फरमान की वजह से बागवान बाहरी राज्यों की मंडियों की ओर रुख कर लें।