Divert 0.10 hectare land from forest to non-forest purpose in five years

पांच साल में 0.10 हेक्टेयर जमीन फोरेस्ट से नॉन फोरेस्ट उद्देश्य को डाइवर्ट

Divert 0.10 hectare land from forest to non-forest purpose in five years

Divert 0.10 hectare land from forest to non-forest purpose in five years

Divert 0.10 hectare land from forest to non-forest purpose in five years- चंडीगढ़ (साजन शर्मा)I चंडीगढ़ में बीते पांच वर्ष के दौरान फोरेस्ट की काफी जमीन नॉन फोरेस्ट उद्देश्य के लिये डाइवर्ट की गई। केंद्रीय  पर्यावरण, वन एवं क्लाइमेट चेंज मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने यह जानकारी देते हुए बताया कि 1 अप्रैल 2019 से लेकर 31 मार्च 2024 तक यह जमीन डाइवर्ट की गई। पांच सालों में करीब 0.10 हेक्टेयर फोरेस्ट लैंड को नॉन फोरेस्ट्री के लिये डाइवर्ट किया गया। यहां बता दें कि चंडीगढ़ का बीते तीन साल के दौरान 5 प्रतिशत ग्रीन फोरेस्ट कवर बढ़ा है जिससे शहर हरा भरा हुआ है।

नॉन फोरेस्ट्री पर्पज का मतलब है कि फोरेस्ट लैंड या इसके हिस्से को री-फोरेस्ट्रेशन के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिये इस्तेमाल किया जाए। केंद्रीय मंत्री कीर्तिवर्धन ने यह जानकारी वर्तमान में चल रहे मानसून सत्र के दौरान लोकसभा में एक प्रश्न का उत्तर देने के दौरान प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि फोरेस्ट लैंड को नॉन फोरेस्ट्री पर्पज के लिये 1 अप्रैल 2019 से 31 मार्च 2024 तक दो प्रपोजल के जरिये डाइवर्ट किया गया।

जमीन वन संरक्षण एवम संवर्धन) अधिनियम, 1980 के तहत डाइवर्ट की गई। कीर्तिवर्धन सिंह ने कहा कि 2021-22 में 25.29 हेक्टेयर जमीन जबकि 2022-23 में 0.14 हेक्टेयर जमीन कंपेंसेटरी अफोरेस्टेशन के अंडर कवर की गई। 2023-24 में ऐसी कोई गतिविधि नहीं हुई। उन्होंने जानकारी दी कि बीते तीन साल में चंडीगढ़ का फोरेस्ट कवर 5 प्रतिशत बढ़ा है। दिये  गये आंकड़ों मुताबिक शहर में बीते तीन साल में एक स्कवायर किलोमीटर का दायरा बढ़ा।

2019 में इंडिया स्टेट ऑफ फोरेस्ट रिपोर्ट (आईएसएफआर) के मुताबिक फोरेस्ट कवर 22 स्कवायर किलोमीटर था जो 2021 में बढक़र 23 स्कवायर किलोमीटर हो गया। यूटी के फोरेस्ट एंड वाइल्ड लाइफ विभाग के अलावा यूटी के अंडर कार्यरत अन्य कई एजेंसियों के सहयोग से ऐसा संभव हो पाया। चंडीगढ़ में ग्रीनरी बढ़ाने के लिये ग्रीनिंग चंडीगढ़ एक्शन प्लान (जीसीएपी) का अहम रोल है जिसका ब्लूप्रिंट वार्षिक तौर पर कई विभाग मिलकर तैयार करते हैं।

इसमें फोरेस्ट, हॉर्टीकल्चर, इंजीनियरिंग विभाग के साथ साथ नगर निगम का अहम रोल है। इस प्लान के तहत सब विभाग अपना वार्षिक टारगेट तय  करते हैं जिससे फोरेस्ट कवर में इजाफा होता है। फोरेस्ट इको-सिस्टम बरकरार रखने के लिये विभाग ने शीशम, शहतूत, खैर, बबूल के पौधे लगाने शुरू किये हैं। कई पेड़ों को लगाने की प्रक्रिया बीते कुछ बरसों से बंद कर दी गई है। योजनाबद्ध तरीके से किया गया यह विकास ग्रीन कवर को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हुआ है और इससे बेहतर बायो-डाइवर्सिटी हुई है।

फोरेस्ट विभाग कई एनजीओ, रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशनों,इको-क्लबों, पर्यावरण सोसायटियों के साथ मिलकर अहम भूमिका निभा रहा है और साथ ही जंगल की रक्षा कर रहा है। स्थानीय लोगों को भी मुफ्त में पौधे बांटे जा रहे हैं जो ग्रीन इको-सिस्टम को बढ़ावा दे रहा है। देहरादून के दी फोरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ने मॉनीटरिंग एवं रिपोर्टिंग के जरिये देश के फोरेस्ट कवर को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। रिमोट सेंसिंग डाटा और ग्राउंड वेरीफिकेशन से जारी बाइनियर रिपोर्ट का आईएसएफआर ने हवाला दिया है।