Distribution of tickets through survey in Haryana

Editorial: हरियाणा में सर्वे से टिकटों का वितरण पैदा करेगा नए हालात

Edit1

Distribution of tickets through survey in Haryana

Distribution of tickets through survey in Haryana will create new situation हरियाणा कांग्रेस में टिकट का वितरण मामूली बात नहीं होती है। किसी भी चुनाव में कांग्रेस के लिए स्थिति एक अनार सौ बीमार वाली होती है। साल 2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में जैसे परिणाम रहे, उनके लिए कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं ने टिकट वितरण को ही जिम्मेदार ठहराया था। उस समय एक पक्ष की ओर से कहा गया कि पार्टी की हार इसलिए हुई, क्योंकि उसकी सोच के मुताबिक टिकट नहीं बांटी गई थी, वहीं दूसरे पक्ष का कहना था कि टिकटें ऐसे लोगों को दी गई जोकि जिताऊ नहीं थे।

बेशक, इस बार के लोकसभा चुनाव में हुड्डा गुट को इसकी पूरी आजादी मिली कि अपनी पसंद के उम्मीदवार तय कराए जा सकें। इसका फायदा भी पार्टी को हुआ, जब कड़े मुकाबले में पांच सीटें उसने जीत ली। निश्चित रूप से अगर उम्मीदवारों के चयन में पार्टी की राज्य इकाई और फिर आलाकमान ने इतनी माथापच्ची नहीं की होती तो परिणाम कुछ और भी हो सकते थे। अब विधानसभा चुनाव में हुड्डा गुट फिर से अपनी पसंद के उम्मीदवारों को ही आगे करने की योजना बना रहा है तो यह पार्टी की रणनीति का हिस्सा है। हालांकि पार्टी में इस बार जिस प्रकार से सर्वे के आधार पर टिकट का वितरण किए जाने की योजना है, वह उन विधायकों एवं नेताओं के लिए चुनौतीपूर्ण है जोकि सिफारिश से या फिर अपने समर्थकों की बदौलत टिकट हासिल करने में कामयाब होते रहे हैं। इस बार पार्टी के सर्वे में पार्टी एवं जनता के बीच जिसकी छवि बेहतर होगी, उसे ही टिकट देने की बात कही गई है। 

गौरतलब है कि इस समय कांग्रेस समेत दूसरे राजनीतिक दलों में नेताओं, कार्यकर्ताओं की अदला-बदली का दौर चल रहा है। कांग्रेस और भाजपा में लगातार नई ज्वाइनिंग हो रही हैं। हालात ऐसे हैं कि कांग्रेस जहां एक दिन भाजपा से किसी नेता को अपनी तरफ लाती है, तो उसके दूसरे ही दिन भाजपा भी कांग्रेस या फिर किसी अन्य दल के प्रमुख नेता को अपने पाले में शामिल कर लेती है। यह सब इतना चौंकाने वाला भी है कि जिन नेताओं को एक दिन पहले दूसरे पाले में खड़े होकर धुर विरोधी बातें कहते सुना जाता है, दूसरे ही दिन उनके स्वर बदले हुए होते हैं और वे सत्ता पक्ष या फिर विपक्ष में बैठे होते हैं।

जाहिर है, यह राजनीतिक उठापटक अभी चुनाव की घोषणा के बाद और ज्यादा तेज होगी। बीते दिनों जब कांग्रेस की वरिष्ठ नेता एवं विधायक किरण चौधरी ने भाजपा में ज्वाइनिंग की तो इस घटना  ने सभी को चौंका दिया था। इसके कुछ दिन बाद भाजपा ने सोनीपत के कांग्रेस मेयर को भी अपने पाले में कर लिया। किरण चौधरी कांग्रेस की टिकट पर विधायक चुनी गई हैं। अब कांग्रेस ने विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष उनकी सदस्यता रद्द कराने की याचिका दायर की हुई है, यानी इन मुद्दों को लेकर राजनीति चरम पर है। हालांकि जजपा के तीन विधायकों पर कार्रवाई के लिए भी पार्टी विस अध्यक्ष के सामने अपील कर चुकी है। 

गौरतलब है कि किरण चौधरी का कांग्रेस छोडऩे का आधार  लोकसभा चुनाव के दौरान भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से उनकी बेटी को टिकट न देना रहा। यहां से वे टिकट की प्रबल दावेदार थीं लेकिन एकाएक हुड्डा समर्थक और विधायक राव दान सिंह को टिकट देकर इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार की जीत के प्रति संशय कायम कर दिया गया था। वहीं इससे पहले भाजपा से पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह, उस समय सांसद रहे उनके पुत्र बृजेंद्र सिंह एवं उनकी माता पूर्व विधायक ने भी भाजपा को छोड़ दिया था।

बीरेंद्र सिंह और बृजेंद्र सिंह का आरोप था कि भाजपा उनकी मर्जी के मुताबिक नहीं चल रही। बीरेंद्र सिंह परिवार का यह भी आरोप था कि भाजपा ने जजपा के साथ गठबंधन किया हुआ है, जिससे उनकी परंपरागत सीट उचानाकलां पर संकट है, क्योंकि इस सीट पर जजपा दावा कर रही है और पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला यहां से मौजूदा विधायक हैं। बेशक, बाद में भाजपा और जजपा के बीच अलगाव हो गया और उससे पहले ही बीरेंद्र सिंह और उनके पुत्र बृजेंद्र सिंह भाजपा से बाहर हो गए। हालांकि कांग्रेस ने भी बृजेंद्र सिंह को टिकट नहीं दी।

वास्तव में कहने का अभिप्राय यह है कि नेताओं की नाराजगी का प्रतिफल पार्टियों को भुगतना पड़ता है। अब सभी चाहवानों को टिकट नहीं मिल सकती, लेकिन जिन्हें नहीं मिलती, वे घर बैठकर रोष ही जताते हैं। इस दौरान भितरघात बढ़ता है। यह दिक्कत हर पार्टी की है। अब भाजपा, कांग्रेस एवं दूसरे दलों की जीत-हार का आधार टिकटों का वितरण ही बनने जा रहा है। बेशक, इस बार के विस चुनाव कड़ी टक्कर के होने वाले हैं। इन चुनावों के संबंध में जनता क्या सोच रही है, यह अभी जाहिर नहीं होगा। वैसे भी हरियाणा की सियासत और यहां की जनता के मन की थाह लेना किसी के लिए भी संभव नहीं है।

यह भी पढ़ें:

Editorial: अपराध पर अंकुश के लिए नायब सरकार के उठाए कदम सही

Editorial: आपातकाल का लगना अपने आप में संविधान की हत्या ही था

Editorial: मोदी की रूस यात्रा पर अमेरिका की आपत्ति का औचित्य