Disruption in Parliament unnecessary

Editorial:संसद में व्यवधान अनावश्यक, सत्ता पक्ष-विपक्ष में हो समन्वय

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Disruption in Parliament unnecessary

Disruption in Parliament unnecessary संसद के मॉनसून सत्र में वह कौन सा दिन होगा, जोकि शांतिपूर्वक चर्चा और विमर्श में बीता हो। यह पहले से तय था कि इस बार के सत्र में कुछ ऐसा होगा, जोकि सत्तापक्ष को बेचैन करके रखेगा और विपक्ष पूरी तरह से हमलावर मुद्रा में रहेगा। अगले वर्ष लोकसभा चुनाव होने हैं और इस वर्ष विधानसभाओं के चुनाव भी प्रस्तावित हैं,ऐसे में विपक्ष की तैयारी जारी है, लेकिन प्रश्न यह है कि क्या इस हो हल्ले के लिए ही संसद है और सत्र बुलाने का मकसद यही है कि विपक्ष अपनी मांग पर अड़ा रहे और सत्तापक्ष उसकी मांगों को मैनेज करने में। मणिपुर हिंसा को लेकर विपक्ष ने जिस प्रकार से केंद्र सरकार पर आरोप लगाए हैं और अब विश्वास प्रस्ताव पेश कर मौजूदा सत्र को इसी तरह के कार्यों में प्रयोग करने का रास्ता चुना है, उसने संसदीय परंपराओं को निम्न करने का काम किया है।

विपक्ष की मांग अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सदन में रहने और उनसे जवाब मांगने की है, हालांकि राज्यसभा में उपसभापति एवं उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्पष्ट कहा है कि वे प्रधानमंत्री को सदन में उपस्थित रहने के निर्देश नहीं दे सकते। निश्चित रूप से यह व्यवस्था का प्रश्न है, सवाल यह भी है कि जब केंद्रीय गृहमंत्री जिनके अधिकार क्षेत्र में मणिपुर का मामला आता है, जब बहस करने और उसका जवाब देने को तैयार हैं, तब विपक्ष सिर्फ प्रधानमंत्री से जवाब सुनने को आतुर क्यों है? क्या इसे नाक का सवाल नहीं बना लिया गया है?

राज्यसभा में बीते दिनों आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह को पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया। वे ठीक उपसभापति के समक्ष वेल में आ गए थे। इसके बाद विपक्ष के सांसदों ने संसद के बाहर धरना दिया और अब निरंतर उनके निलंबन के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं विपक्ष के अगुवा के रूप में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे मोर्चा संभाले हुए हैं, यह तब है जब लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में विपक्ष के नेताओं को बोलने का समय मिल रहा है, लेकिन वे मणिपुर हिंसा और प्रधानमंत्री के बयान के अलावा कुछ भी कहने और सुनने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला का यह रुख अप्रत्याशित है कि जब तक सांसदों का रवैया बेहतर नहीं हो जाता, वे सदन में अध्यक्ष का काम नहीं संभालेंगे। वे लगातार दो दिन संसद में रहते हुए भी लोकसभा में नहीं पहुंचे।

लोकसभा में कार्य संचालन का दायित्व उनका है, लेकिन जिस प्रकार से लगातार संसदीय कार्यवाही में दिक्कत खड़ी हो रही है, उसके बाद उन्होंने गांधीवादी तरीके से खुद को इस कार्यवाही से दूर करके अपनी नाराजगी जाहिर की है। कमोबेश यही स्थिति राज्यसभा में भी है। यहां उपसभापति ने अपने काम से मुंह नहीं मोड़ा है, लेकिन विपक्षी सांसदों की मांग की कि प्रधानमंत्री सदन में आकर मणिपुर हिंसा पर बयान दें, के संबंध में स्पष्ट कहा है कि वे ऐसे निर्देश नहीं दे सकते, क्योंकि इससे पहले कभी भी इस तरह का निर्देश जारी नहीं किया गया है और न ही जारी किया जाएगा।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का यह कहना सर्वथा उचित है कि सदन की गरिमा कायम रखना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है और यह सामूहिक जिम्मेदारी भी है। उन्होंने इसके भी संकेत दिए हैं कि कुछ सदस्यों का व्यवहार सदन की उच्च परंपराओं के विरुद्ध है। निश्चित रूप से विपक्ष का कार्य सवाल उठाना है, इसके लिए वह सदन और सदन के बाहर हर वह कदम उठाता है, जोकि वह उठा सकता है। विपक्ष के सांसदों ने काले कपड़े पहनकर संसद के अंदर प्रवेश किया है, काले कपड़े विरोध की पहचान हैं। देश गवाह है कि कृषि कानूनों को पारित किए जाने के दौरान राज्यसभा में अनेक वरिष्ठ सांसद वेल में आकर उन मेज पर खड़े हो गए थे, जहां बैठ कर राज्यसभा सचिवालय के कर्मचारी काम करते हैं।

इसके अलावा बिल की कॉपी फाड़ना, नारेबाजी करने से लेकर तीखी बयानबाजी तक क्या सदनों में नहीं हुआ है। अगर एक लोकसभा अध्यक्ष या फिर उपसभापति सत्ता पक्ष की ओर से सदनों का प्रबंधन करने की कोशिश में रहे तो कभी भी संसद काम नहीं कर पाएगी, लेकिन यह उनकी प्रतिबद्धता है कि वे जहां सत्ता पक्ष को कार्य करने का अवसर देते हंै, वहीं विपक्ष को अपनी कहने और प्रश्न पूछने का मौका देते हैं। अगर विपक्ष उनकी नहीं सुनेगा तो यह कार्यवाही में व्यवधान ही डालेगा और इस प्रकार काम सुचारू रूप से नहीं चल सकता। मौजूदा समय में यह आवश्यक है कि सदनों की कार्यवाही सुचारू हो, आखिर विपक्ष भी तो अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे चुका है, तब प्रधानमंत्री के जवाब का उसे इंतजार करना चाहिए। वहीं सत्तापक्ष के कामकाज की प्रतिध्वनि ऐसी न हो कि विपक्ष दमित होता नजर आए। संसदीय प्रणाली में दोनों पक्षों को साथ-साथ चलना होता है, तभी देश भी आगे बढ़ता है। 

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